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Wednesday 13 June 2018

सबको सन्मति दे भगवान, कोई नीच ना कोई महान

               चित्र गुगल से साभार
       
          हम साथ- साथ रहते हैं, हंसते -बोलते हैं और अगले ही क्षण जातीय, मजहबी और राजनीति के दलदल में जा फंसते हैं। जबकि हम प्रबुद्ध नागरिक हैं ,फिर भी ऐसा कर बैठते हैं कि अपने क्षणिक आत्मसंतुष्टि के लिये औरों को आहत कर देते हैं। आज सुबह मेरी इच्छा थी कि इस मीरजापुर- भदोही क्षेत्र से सांसद रहीं पूर्व दस्यु सुंदरी स्वर्गीय फूलन देवी के बारे में ब्लॉग पर कुछ लिखूंगा। वे भले ही एक डैकत रहीं, परंतु मुझे एक पत्रकार की जगह एक सम्वेदनशील इंसान वे समझती थीं। उन्हें विश्वास था कि मैं उनकी भी भावनाओं को समझूंगा, न कि सिर्फ बेहमई कांड की खलनायिका। औरों के साथ उनका व्यवहार जैसा हो मुझे नहीं पता। हां, मैं जब भी उनसे मिला वे खुले दिल से  अपनी बातें रखती थीं। अब आज इसपर चर्चा नहीं कर पाऊंगा, क्योंकि दोपहर बाद एक ऐसा अनावश्यक विवाद हमारे व्हाट्सअप ग्रुप के कारण उठ खड़ा हुआ, जिससे मन भी बेहद आहत है। मेरी इस मानसिक वेदना को वहीं समझ सकेगा, जो राजनीति से ऊपर हो, क्यों कि स्थिति यह है कि नेता तो राजनीति करते ही हैं, प्रबुद्ध वर्ग से लेकर आम जनता यहां तक मीडिया में भी दलगत राजनीति की उबाल है। हम पत्रकार आखिर ऐसा क्यों करते हैं नहीं समझ पाता। मुझे आज अपने व्हाट्सअप ग्रुप को लेकर जिस कष्ट की अनुभूति हो रही है, उसे स्पष्ट रूप से बता भी नहीं सकता । सभी मेरे ही मित्र- बंधु हैं। दुख- दर्द के साथी हैं। लेकिन , फिर भी एक राजनैतिक समाचार के पोस्ट होते ही भूचाल सा आ गया ग्रुप में। इतने वर्षों से ग्रुप चला रहा हूं मैं ,ऐसी अप्रिय स्थिति तो कभी नहीं आई। ग्रुप में विभिन्न दलों के  जनप्रतिनिधि, राजनेता, शिक्षक, चिकित्सक, व्यवसायी से लेकर आमलोग हैं। ठसाठस भरा है यह ग्रुप। ये सभी मुझपर विश्वास  करते हैं कि शशि भाई निष्पक्ष हैं, तो मैंने भी खुल्लमखुल्ला खुल्ला सभी से बोल रखा है कि न मैं हिन्दू हूं  ना मुस्लमान, बस इंसान बनने की शक्ति दो मुझे मेरे दोस्तों। मैं किसी राजनैतिक दल के दर्पण में अपना प्रतिबिंब नहीं देखना चाहता हूं। कोई बहरा हो तो भोंपू लगा कर कहूं। जिस गली- चौराहे पर चाहों मैं इस बात पर यकीन दिलाने के लिये अपनी नुमाइश लगा सकता हूं। परंतु हाथ जोड़ कर पुनः प्रार्थना करता हूं कि जिस ग्रुप का सृजन मैंने आपस में भाईचारा कायम करने के लिये किया था, उसे बदनाम मत करों मेरे साथियों। आज जो हुआ इस दर्द को मुझे दुबारा न दो। कामरेड सलीम भाई से कोई ढाई दशक मेरा पुराना संबंध रहा है। लेकिन, वे रुठ कर ग्रुप से चल दियें। आखिर जाति, मजहब और राजनीति की यह बड़ी खाई कब तक हमें आपस में एक दूसरे से दूर रखेगी। यह "साम्प्रदायिक " और "सेकुलर" शब्द क्या इंसानियत से भी ऊंचा है या हम बिल्कुल बावले हो गये हैं। टेलीविजन खोलते ही जिस भी चैनल पर जाएं डिबेट के नाम नेताओं का एक दूसरे के प्रति जहर उगलना समाज के पूरे वातावरण को विषाक्त किये हुये है और आज यही तो मेरे उस व्हाट्सअप ग्रुप में भी हो गया, जिसका सृजन मैंने कितने ही परिश्रम से किया है। हमारे प्रिय मित्र देवमणि त्रिपाठी यहां से गोंडा चले गये, फिर भी खबर लगातार पोस्ट करते हैं अन्य सदस्य भी कहीं भी कोई घटना उनके संज्ञान में आई नहीं  कि तुरंत बतलाते हैं। ग्रुप का हर सदस्य मुझे प्रिय है। किसी को यदि मैं निकालता हूं, तो उसकी जो पीड़ा मुझे होती है आप नहीं समझेंगे। ये जो ग्रुप हैं न मित्रों यह मेरा परिवार है। क्या हुआ जो गृहस्थ आश्रम वाला घर-संसार मेरे पास नहीं है। यहां तो एक नहीं अनेक मित्र मेरे संकट में दौड़े आते हैं। मैं इसे बिखरने नहीं देना चाहता हूं। सो, मित्रों इस सार्वजनिक घर में राजनीतिक न करें। बस इतना कहूंगा बंधुओं..
       ये तेरा घर ये मेरा घर , ये घर बहुत हसीन है।