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उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? व्हाट्सअप ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।" यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक..
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Shashi Gupta जी बधाई हो!,
आपका लेख - (शब्दबाण) आज की सर्वश्रेष्ठ रचना के रूप में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है |
धन्यवाद, शब्दनगरी संगठन
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राग-रंग, प्रेम-विवाह और वासना- विलासिता से दूर हो चुके इस व्यक्ति के जीवन में पिछले कुछ महीनों में न जाने क्या परिवर्तन आया कि मन और मस्तिष्क दोनों पर से वह नियंत्रण खोता चला गया.. उसकी आँखोंं के नीर कहीं इस संवेदनहीन सभ्य समाज के समक्ष उसकी वेदना को उजागर न कर दें , इसलिये उसे एक हठयोग नित्य करना पड़ रहा है..वह है दूसरों के समक्ष सदैव मुस्कुराते रहना..उसने "मेरा नाम जोकर" के किरदार राजू के दर्द को स्वयं में महसूस किया है। अतः माँ की मृत्यु का समाचार मिलने पर स्टेज पर जिस तरह से उस राजू ने अपने रुदन को अभिनय से दर्शकों के लिये मनोरंजन में बदल दिया.. ठीक उसी तरह वह भी जेंटलमैनों के मध्य ठहाका लगाने का प्रयास कर रहा है। वह कहा गया है न..
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब , बांटी न लेंहैं कोय ।।
लेकिन शाम ढलते जैसे ही एकांत मिलता है , यह हठयोगी उस मासूम बच्चे की तरह सुबकने लगता था ,मानों माँ के स्नेह भरे आँचल से किसी ने उसे निष्ठुरता से अलग कर दिया हो। उसे दण्डित करने से पहले उसके कथित अपराध पर सफाई देने का एक अवसर तक नहीं दिया गया.. इस नयी वेदना की सूली पर चढ़ते हुये भी न्याय की गुहार लगाते रहा वह..।
ऐसी मनोस्थिति में उसे लगता है -
" वह न मानव रहा , न दावन बन सका..न कोई उसका मित्र रहा , न वह पुनः किसी से मित्रता का अभिलाषी है..।"
वेदना, तिरस्कार, उपहास एवं ग्लानि से न जाने क्यों उसका हृदय कुछ अधिक ही रुदन कर रहा है.. वह जिस मित्रता को अपने उदास जीवन का सबसे अनमोल उपहार समझा था..उसका वह विश्वास काँच की तरह चटक कर बिखर गया.. मानों यह "पवित्र मित्रता" कच्ची मिट्टी का खिलौना था..।
मयंक ने ऐसा क्या कुकर्म किया ..?
वार्तालाप के दौरान सदैव संयमित रहता था, ताकि उस विदूषी मित्र को कभी यह न लगे कि उसका संवाद अमर्यादित है..इस लक्ष्मण रेखा का उलंघन उसने मित्रता टूटने तक नहीं किया..।
किसी अपने द्वारा तोहफे में दिये गये " भूल, अपराध, पाप और गुनाह " जैसे कठोर शब्द जो उसके कोमल मन को छलनी कर देते थें , उसे भी सिर झुका सहन कर लेता था .. न जाने क्यों वह व्याकुल हो गया उस दिन कि अधिकार भरे शब्दों में तनिक उलाहना दे दिया .. परिणाम ,यह रहा कि इस तन्हाई में इन आँसुओं के सिवा और कोई दोस्त उसके साथ न रहा..।
व्यथित हृदय के घाव को भरने का उसका " हठयोग " निर्रथक प्रतीत होता रहा.. मन ऐसा डूबा जा रहा है कि मानों अवसाद उसके जीवन के अस्त होने का संदेश लेकर आया हो..ऐसे में वह अपने व्यर्थ जीवन का क्या मूल्यांकन करे.. ? उसकी निश्छलता का कोई मोल न रहा, सरल और निर्मल मन का होकर भी वह कभी भी स्त्री के हृदय को जीत न सका..उसके निर्मल आँसुओं का उपहास हुआ और वह अपना आत्म सम्मान खो बैठा है..जीवन भर स्नेह लुटा कर भी वह अपने हृदय को दुखाता रह गया..।
उसने कभी कल्पना भी न की थी कि उसके जीवन में आया वह मधुर क्षण उसे उस अवसाद के दलदल में ले जाएगा..जहाँ न कोई " योग "और न यह " हटयोग " काम आएगा ..!
जीवन की यह कैसी विडंबना है कि वह जिस विदूषी मित्र में अपनी माँ की छाया ढ़ूंढता रहा, उसी देवी को उसके उस पवित्र स्नेह पर एक दिन न जाने क्यों संदेह हो गया.. ?
और उसके वह कठोर शब्द - " कौन हूँ मैं ..प्रेमिका समझ रखा है.. ? व्हाट्सअप
ब्लॉक कर दिया गया है..फिर कभी मैसेज या फोन नहीं करना.. शांति भंग कर रख दिया है ।"
यह सुनकर स्तब्ध रह गया था मयंक.. जिसे वह मृदुभाषिणी एवं स्नेहमयी देवी समझता था.. जिसने स्वयं उसे अच्छा मित्र बनने का वचन दिया था.. जो माँ की भांति महीनों उसकी खोज-खबर लेती रही.. जो स्वयं को उसका अभिभावक कहती थी.. जिसका तनिक भी नाराज होना मयंक के लिये असहनीय रहा..जिसे खुश करने के लिये वह एक मासूम बच्चे सा मनुहार करता था.. उसी विदूषी की वाणी में आज क्यों तनिक दया भाव भी न था.. ?
शाब्दिक बाण के इस प्रहार ने उसके निश्छल हृदय को मर्मान्तक पीड़ा पहुँचाई ..लज्जा से वज्राघात- सा हुआ मयंक पर.. उसने डबडबाई आँखों से उस भद्र महिला को अंतिम प्रणाम किया.. और फिर कभी इस आत्मग्लानि से बाहर नहीं निकल सका वह.. ।
वो, कहते हैं न - " देखन में छोटन लगे घाव करे गम्भीर । ". . शब्दबाण ऐसा ही होता है..।
- व्याकुल पथिक
जीवन की पाठशाला
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इंसान को अपने शब्द तोलकर बोलने चाहिए क्योंकि सामने वाला कोई भी हो आपके शब्दों के बाण उन्हें चुभ सकते हैं। यहां शशी गुप्ता जी ने शब्दबाण पर अच्छा लेख लिखा है और इसे 'आर्टिकल ऑफ द डे' के रूप में चयनित किया गया है। बधाई....😊🙏💐
https://shabd.in/post/110856/shabdban
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एक संवेदनशील मन को शब्दों के बाण मर्नांन्तक पीड़ा तक धकेल देते हैं, और व्यक्ति शायद ही कभी आत्मग्लानि से निकल कर सामान्य हो पाता होगा। वह खुद से भी नजर चुराता है, और सदा अपने आप से हीन भावना में उलझा रहता है, चाहे ऊपर से कितना भी मुस्कुरा दें।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेखन है, शब्दों को भावनाओं से ऐसा गूंथा है जो अतुल्य बेजोड़ है ।
बहुत शानदार हृदय स्पर्शी सृजन भाई ।
आपको पसंद आया , मुझे बहुत खुशी हुई दी।
ReplyDeleteप्रणाम।
बिना वजह जब अपना करीबी दिल को अपनी वाणी से आघात पहुंँचाता है।तो उस पीड़ा को भूलना नामुमकिन हो जाता है। बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति भाई
ReplyDeleteजी दी , आपने बिल्कुल सही कहा..
ReplyDeleteआपने पढ़ा और सुंदर प्रतिक्रिया भी दी मुझे प्रसन्नता हुई।
प्रणाम
बेहद उम्दा लेख । शब्दों की कठोरता हृदय को तीर से अधिक वेदना देती है..हृदय चाह कर भी उस पीड़ा को भूल नही पाता । हृदयस्पर्शी..अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteजी दी
ReplyDeleteतिरस्कार से भरी वेदना को भुला पाना किसी भी संवेदनशील मनुष्य के लिये आसान नहीं होता।
प्रणाम और आभार
इस बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए।
इसीलिए कहा जाता है अति सर्वत्र वर्जयेत्. हर विधा में जीवन के हर पहलू में हद बेहद जरूरी है.जिससे ऐसे कडुवे अनुभवों से बच सकें.
ReplyDeleteजी आपने बिल्कुल उचित कहा, नमन आपको।
ReplyDeleteShashi bhai,jahan sambandh aatmik dharatal
ReplyDeletepar abhinn hote hain vahan tanik bhi khinchav
aane par marmantak pida
hoti hai,anubhav ki baat hai।
Aaj Pt Nehru par do video
post kiye hain ,samay nikal
saken to dekhiyega।
-श्री अधिदर्शक चतुर्वेदी , वरिष्ठ साहित्यकार
लिखते रहें । शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजी आपका आशीर्वाद मिला है , तो निश्चित ही आत्मबल बढ़ा है, प्रणाम।
Deleteजी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteआदरणीय शशि जी प्रणाम आपका लेखन एक सच्चे अनुभव पर आधारित प्रतीत होता है। शब्दों में सजीवटता आपके उत्कृष्ट लेखन की एक अमिट पहचान बनकर उभरी है। ईश्वर से प्रार्थना है कि मयंक इस मिथ्या संसार के मायाजाल से स्वतंत्र हो और अपने कर्त्तव्य मार्ग पर पुनः लौट आये। मोबाईल और वाट्सअप का यह छद्दम क्रीड़ा रिश्ता ज़्यादा देर नहीं टिकता ज़ल्द ही इसमें कीड़े पड़ जाते हैं अतः जहाँ तक संभव हो सके आभासी दुनिया वाले रिश्तों से हमें बचना चाहिए और समाज में प्रत्यक्ष रूप से संवाद स्थापित करना चाहिए नहीं तो एक समय में योग भी मयंक के लिए एक असाध्य रोग बन जायेगा। सादर
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सत्य कहा।
ReplyDeleteआप जैसे प्रतिभासंपन्न साहित्यकार की प्रतिक्रिया पाकर मुझे अत्यंत हर्ष हुआ।
मेरे ब्लॉग पर जो भी सामग्री है, काल्पनिक नहीं है, यह मैं शपथपूर्वक कह सकता हूँ।
प्रणाम।
जी, आपका कथन उचित हो सकता है मीना दी, मैं तो बस जो देखा वह लिखा है।
ReplyDeleteकोई परिपक्व कथाकार हूँ भी नहीं..।
मैंने तो बस "शब्दबाण" को परिभाषित करने का प्रयास किया।
वह भी ब्लॉग जगत की राजनीति से दुखी होकर ।
प्रणाम।
रही आभासीय दुनिया की बात तो मुझे भी भाई के रुप में यहाँ अत्यधिक स्नेह मिला है, मैं इनसभी बहनों का बहुत आभारी हूँ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख
ReplyDeleteआपका बहुत-बहुत आभार, आपके ये शब्द मुझे भविष्य में और भी कुछ अच्छा लिखने को प्रेरित करेंगे।
Deleteप्रणाम, आपको प्रथम बार ब्लॉग पर देख मैं बहुत ही हर्षित हूँ।
आपके एक एक शब्द में व्यथा की अभिव्यक्ति दिल को छू जाती है।
ReplyDeleteआभार भैया,
Deleteधन्यवाद
बड़ेभाई आपके हर लेख में अपनत्व के साथ साथ एक उत्कर्ष लेखनीय की झलक भी मिलती है।
ReplyDeleteराजू भैया
Deleteआपका बहुत- बहुत आभार।
शशि भाई, शब्दों के बाण बहुत ही तिष्ण होते हैं। बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteजी आभार आपका,
ReplyDeleteवाणी का प्रहार बाण से भी कठोर होता है।
बहुत सुंदर भैया।आपकी रचनात्मक शैली अद्वितीय है।🙏
ReplyDelete-मनीष कुमार खत्री, मीरजापुर
शब्दबाण के घाव का मरहम मिलना बहुत मुश्किल है इसलिए शब्द की शक्ति धारण करते हम मनुष्यों को अपने शब्दों पर अंकुश रखते हुए सदा सदुपयोग ही करना चाहिए।
ReplyDeleteआपकी इस संवेदना से परिपूर्ण सार्थक संदेश देती हृदयस्पर्शी रचना और आपको मेरा सादर नमन आदरणीय सर।
शुभ संध्या 🙏
जी आभार
Deleteआपकी इस बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए , क्योंकि आपके ब्लॉक पर आपकी रचनाएँ धर्म के मर्म को स्पष्ट करती हैं।
प्रणाम..।
शशि भाई, शब्दों के बाणों के घाव किसी भी मलहम से ठीक नहीं होते। आपने शब्द बाण से दुखी दिल की व्यथा को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं।
ReplyDeleteArticle of the day के लिए चयनीत होने के लिए बूट बहुत बधाई।
जी आभार ,ज्योति दी।
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