धर्म
******
तुझसे सीखा हे पुरुषोत्तम
है संघर्ष ही जीवन- धर्म ।
विमाता को दे कर सम्मान
पुत्र धर्म का किया निर्वहन ।
सिंहासन की चाह न की
कह, वन भी है अपना स्वर्ग।
अनुज केलिये छोड़ा अयोध्या
दिया विभिषण को स्वर्णमहल।
पुष्पक कुबेर को लौटा के
कहा पर सम्पत्ति का लोभ न कर।
छल से पाषाण बनी अहिल्या
रखा तब तूने उसका भी धर्म ।
बैर भीलनी के खाकर जूठे
तुमने,समरसता का दिया संदेश।
द्वापर में कृष्ण बन कर तूने ही
रोका कृष्णा का चीरहरण ।
मान बढ़ाया नारी का तब
बोला ,छोड़ दुर्योधन ये अधर्म ।
फिर बोलो हे पुरूषोत्तम
क्यों अग्निपरीक्षा है नारी -धर्म ?
सती सीता का परित्याग
क्या यही था , तेरा राज- धर्म ?
राम के तुलसी थें फिर भी
ठहर गयी,क्यों उनकी कलम ?
पत्नी के निर्वासन को कहते
कैसे वे राम का धर्म ?
-व्याकुल पथिक
******
तुझसे सीखा हे पुरुषोत्तम
है संघर्ष ही जीवन- धर्म ।
विमाता को दे कर सम्मान
पुत्र धर्म का किया निर्वहन ।
सिंहासन की चाह न की
कह, वन भी है अपना स्वर्ग।
अनुज केलिये छोड़ा अयोध्या
दिया विभिषण को स्वर्णमहल।
पुष्पक कुबेर को लौटा के
कहा पर सम्पत्ति का लोभ न कर।
छल से पाषाण बनी अहिल्या
रखा तब तूने उसका भी धर्म ।
बैर भीलनी के खाकर जूठे
तुमने,समरसता का दिया संदेश।
द्वापर में कृष्ण बन कर तूने ही
रोका कृष्णा का चीरहरण ।
मान बढ़ाया नारी का तब
बोला ,छोड़ दुर्योधन ये अधर्म ।
फिर बोलो हे पुरूषोत्तम
क्यों अग्निपरीक्षा है नारी -धर्म ?
सती सीता का परित्याग
क्या यही था , तेरा राज- धर्म ?
राम के तुलसी थें फिर भी
ठहर गयी,क्यों उनकी कलम ?
पत्नी के निर्वासन को कहते
कैसे वे राम का धर्म ?
-व्याकुल पथिक