Followers

Thursday 7 June 2018

इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास...





     
     निःसन्देह ब्लॉग लेखन का मेरे व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव दिख रहा है। जो भी मैंने लिखा था, वह आज मुझे ही नसीहत दे रहा है । देखो रंग मत बदलों मेरे यार ! कल तो आत्मबोध कर रहे थें और आज तनिक सी बात पर यूं क्यों उद्वेलित हुये जा रहे हो । अंदर की ये आवाज अब कुछ तो साफ सुनाई पड़ती है। यहां मेरे भी कुछ मित्रों का कहना है कि दिन भर समाचार तलाशते तुम अपनी बातें ना कर पाते थें। सो, मन हल्का करने का यह अच्छा ठिकाना है। सो, एक बात तो साफ कर दूं कि आत्मावलोकन ही मेरे ब्लॉग लेखन का मकसद है।
          अब देखेंं न कल रात और आज सुबह भी दो बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं कि यदि पूर्व की स्थिति में होता, तो मन को अति आघात पहुंचना निश्चित था। परंतु अब किसी के द्वारा किया कटाक्ष भी कबीर की वाणी लगती है। अपना कर्मक्षेत्र ही ऐसा है कि जाने अनजाने में मित्र भी शत्रु बन जाता हैंं।  इसका मतलब यह तो नहीं की हम भी तलवार भांजने लगे। विनम्रता ही हमारी पहचान है, पूर्व में लिखी बातें यह हर वक्त याद दिलाती हैं। गलतियों को बतलाती हैं और नेकी की राह दिखलाती हैं। सो, आज जो कुछ हुआ, उसे लेकर मन नहीं तनिक मलीन हुआ। ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि यह सुधार मुझमें जारी रहे। पत्रकारिता छोड़ते समय न रहे किसी से दुश्मनी बस यारी हमारी रहे। भूख, गरीबी, बेरोजगारी, बेगारी, बदहाली पर तो कब का नियंत्रण पाया हूं। अब वाणी संयम की जब बार है। कल रात से आज सुबह जो दो कड़ी परीक्षा देनी पड़ी है, उम्मीद यही है कि पास जरुर उसमें हुआ हूं।  मान-अपमान  से जब तक ऊपर नहीं उठेगा हमारा मन , तब तक यह व्याकुलता जारी है , यह हमें और आपको भी पता है।  फिर भी आज अपने में इस परिवर्तन पर मन ही मन आनंदित हूं। हां, मानव अभी मुझे बनना है ! एक बात बताऊं, कम्पनी गार्डन में भी कभी "मानव जी"  मिला करते थें। मैं निठल्ला उस समय उनकी कविताओं का मोल ना समझ सका था। वे पांखड से दूर बेहद ही सज्जन इंसान थें । बुजुर्ग थें और हाई ब्लडप्रेशर के शिकार थें। काशी की धरती थी,  सो कर्मकांडी उन्हें खिसियाते थें। फिर भी बीड़ी के धुएं में मानव जी की कड़क आवाज दूर तक उनकी मौजूदगी का एहसास दिलाती थी। सत्य को भला कौन दबा सकता है, मुझे बार बार वे सिखलाते थें। आज अचानक आंखें नम हो आयी हैं। काश ! कुछ दिन और उनके समीप गुजारा होता, संसार के इस भुलभुलैया से कब का मोक्ष पाया होता।  बस इस प्यारी सी प्रार्थना...

             "इतनी शक्ति हमें देना दाता
           मन का विश्वास कमजोर हो ना
            हम चले नेक रस्ते पे हमसे
             भूलकर भी कोई भूल हो न"

  के साथ आप सभी को शुभरात्रि कहता हूं।

(शशि)
       चित्र गुगल से साभार