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Thursday 21 February 2019

ये क़रार तो न था..

 ये क़रार तो न था..
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क़रार जिनसे था , थी बे-क़रारी
झुकी नज़रों में थी,किस्मत हमारी

कहा था जो,किसी ने सुनाते रहेंगे
ताउम्र वो लफ्ज़, तेरी जिंदगी के

दोस्ती से आगे , हममें क्या न था
लबों पे मुस्कान, मयखाना तो न था

नशा इश्क़ का,थे अरमान ज़िंदगी के
ग़फ़लत हुई,वो कत्लखाना तो न था

सजदे में थें जब , वो देते थें दस्तक
हैं रोजे में अब , जाने कहाँ गये सब

ग़म-ए-ज़िंदगी हम, मिटाने चले थें 
ख़्वाबों के लहू में ,नहा के चले हम

साथ चलने का , क़रार हममें न था
यादें भुलाने की,बे-क़रारी थी कैसी

 लफ़्ज़ों का वह खेल और ये तन्हाई
 शहनाई तेरी, कैसी जहर घोल गई

यतीमों को मिलता , कहाँ ठिकाना
दोस्ती वो दो पल की,क़रार तो न था

थी सुकून भरी सांसें, लबों पे मुस्कान
चिराग बुझाना था ,जलाया क्यों था

दर्द जुदाई का उनसे , बूराभी न था
मगर बेवफ़ाई का,  क़रार तो न था

छीन कर,किसी का सब्र-ओ-क़रार
विदाई तेरी , कोई फ़रेब तो न था

                         -व्याकुल पथिक