ये क़रार तो न था..
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क़रार जिनसे था , थी बे-क़रारी
झुकी नज़रों में थी,किस्मत हमारी
कहा था जो,किसी ने सुनाते रहेंगे
ताउम्र वो लफ्ज़, तेरी जिंदगी के
दोस्ती से आगे , हममें क्या न था
लबों पे मुस्कान, मयखाना तो न था
नशा इश्क़ का,थे अरमान ज़िंदगी के
ग़फ़लत हुई,वो कत्लखाना तो न था
सजदे में थें जब , वो देते थें दस्तक
हैं रोजे में अब , जाने कहाँ गये सब
ग़म-ए-ज़िंदगी हम, मिटाने चले थें
ख़्वाबों के लहू में ,नहा के चले हम
साथ चलने का , क़रार हममें न था
यादें भुलाने की,बे-क़रारी थी कैसी
लफ़्ज़ों का वह खेल और ये तन्हाई
शहनाई तेरी, कैसी जहर घोल गई
यतीमों को मिलता , कहाँ ठिकाना
दोस्ती वो दो पल की,क़रार तो न था
थी सुकून भरी सांसें, लबों पे मुस्कान
चिराग बुझाना था ,जलाया क्यों था
दर्द जुदाई का उनसे , बूराभी न था
मगर बेवफ़ाई का, क़रार तो न था
छीन कर,किसी का सब्र-ओ-क़रार
विदाई तेरी , कोई फ़रेब तो न था
-व्याकुल पथिक
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क़रार जिनसे था , थी बे-क़रारी
झुकी नज़रों में थी,किस्मत हमारी
कहा था जो,किसी ने सुनाते रहेंगे
ताउम्र वो लफ्ज़, तेरी जिंदगी के
दोस्ती से आगे , हममें क्या न था
लबों पे मुस्कान, मयखाना तो न था
नशा इश्क़ का,थे अरमान ज़िंदगी के
ग़फ़लत हुई,वो कत्लखाना तो न था
सजदे में थें जब , वो देते थें दस्तक
हैं रोजे में अब , जाने कहाँ गये सब
ग़म-ए-ज़िंदगी हम, मिटाने चले थें
ख़्वाबों के लहू में ,नहा के चले हम
साथ चलने का , क़रार हममें न था
यादें भुलाने की,बे-क़रारी थी कैसी
लफ़्ज़ों का वह खेल और ये तन्हाई
शहनाई तेरी, कैसी जहर घोल गई
यतीमों को मिलता , कहाँ ठिकाना
दोस्ती वो दो पल की,क़रार तो न था
थी सुकून भरी सांसें, लबों पे मुस्कान
चिराग बुझाना था ,जलाया क्यों था
दर्द जुदाई का उनसे , बूराभी न था
मगर बेवफ़ाई का, क़रार तो न था
छीन कर,किसी का सब्र-ओ-क़रार
विदाई तेरी , कोई फ़रेब तो न था
-व्याकुल पथिक