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Wednesday 19 December 2018

अनजान गुनाहों के लिये मुस्काता हूँ




अनजान गुनाहों के लिये मुस्काता हूँ
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कागज के रुपयों के  वास्ते नहीं ,
चंद टुकड़े रोटी के लिए मुस्काता हूँ;
  आवारा,भूखे  पशुओं सा ,
तेरा जूठन पाने के लिए मुस्काता हूँ।


स्नेह पाने के लिए नहीं मैं ,
बेगाना कहलाने के लिए मुस्काता हूँ;
बेशुमार दर्द को सह कर भी ,
निगाहों में तेरी बेरुख़ी के लिए मुस्काता हूँ।


जिस पथ पर पहचान मिली ,
नहीं मंजिल,तिरस्कार के लिए मुस्काता हूँ;
कुछ रातें सड़क पर गुजरीं ,
अब  "पथिक" कहलाने के लिये मुस्काता हूँ।

  शहनाई बजी न साथी मिला ,
अब तो   तन्हाई  के लिए मुस्काता हूँ;
  तेरी जुदाई का  ये महीना है  माँ !
 आंचल तेरा पाने  के लिये मुस्काता हूँ।


भूख ने छीने शब्द मेरे ,
चूर किये स्वप्न तेरे ,
बन न सका  तेरा  मैं ''राजाबाबू '',
अनजान इन गुनाहों के लिये मुस्काता हूँ।


शब्द नहीं पास तुझे पुकारने को ,
पास अब तेरे आने के लिये मुस्काता हूँ ;
फर्क नहीं जहाँ इंसान और हैवान में ,
उस जहां से जाने के  लिये  मुस्काता हूँ।


(व्याकुल पथिक)