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Tuesday 2 April 2019

स्वांग

स्वांग
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हैं रातें रंगीन जिनकी
  वे  वाह-वाह किया करते हैं
किसी की उदासी पर क्यों ?
 वे  मुस्कुराया  करते हैं

सम्वेदनाओं की झोली उनकी 
 फिर भी है  क्यों खाली  ?
   शब्दों  की   चाशनी में
   जो जहर पिलाया करते हैं

नियति ने  दे रखी  है
  जिन्हें  अपनों  का  साथ
  यतीमों  के दर्द पर क्यों ?
 वे  खिलखिलाया  करते हैं

बनते  तो हैं  वे सभी
  सकारात्मकता के पुतले
 फिर अपने ग़म में यूँ
क्यों  छटपटाया करते हैं ?

खुशियों का मुखौटा जिन्होंने   
  लगा  रखा  है  सुहाना
दिल के आईने में चेहरा उनका
  क्यों  बुझा- बुझा होता है ?

 दर्द छुपा बैठें हैं वे भी कई
   उजालों का मगर स्वांग रचते हैं
 सच से मिलती जब भी निगाहें
   वे क्यों तिलमिलाया करते हैं ?

ठहर पथिक तू तनिक  ठहर
   इन मीठी बोलियों को तौल
 मौसम चुनाव का है गंभीर
  नेताओं सा ढ़ोग ये किया करते हैं
         - व्याकुल पथिक