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Sunday 15 March 2020

दोहरा मापदंड

   
दोहरा मापदंड
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" पैसे तो पूरा लेते हो और दूध बिल्कुल गंगाजल।  तुम्हें रोज़ाना टोकते हुये अब मुझे ही लज्जा आती है। बंद करो ये मिलावट या फिर कल से दूध मत देना । " 
 -- मालती ने झल्लाते हुये एक ही साँस में ग्वाले को आज खूब खरीखोटी सुनाई थी। 

     और उधर ग्वाला रामू सिर झुकाए बड़ी दीनता से चिरौरी किये जा रहा था कि मालकिन  इस महंगाई में चालीस रुपये लीटर भैंस का शुद्ध दूध वह कहाँ से लाकर दे। इससे कहीं अधिक तो उसे दूध की दुहाई देनी पड़ती है। उसके भी अपने बाल-बच्चे हैं। सुबह-शाम दोनों व़क्त गांव-शहर साइकिल से एक किये रहता है। तब किसी तरह से उसके परिवार के पाँच जनों के पेट की आग बुझती है । 

    उसका कथन सत्य था , फिर भी पचास रुपया लीटर में दूध लेने को मालती तैयार नहीं थी और शुद्धता की गारंटी भी चाहती थी ।

     वह बड़बड़ाए जा रही थी कि न जाने कब ऐसे लोगों की धन-लिप्सा कम होगी। अब ये गरीब कहाँ रहे, पूरे ठग हैं ठग..। न मालूम कब इन मिलावटखोरों की ख़बर लेगा प्रशासन। ये अपने को भगवान कृष्ण का वंशज कहते हैं। लेकिन ,दूध-पानी एक करने से बाज नहीं आते, मिलावटखोर कहीं के.. ! 

      और तभी उसकी पुत्री स्नेहा हाँफते हुये तेजी से घर में प्रवेश करती है। 

   " अरे ! स्नेह क्या हुआ ? इतनी घबड़ाई क्यों हो ? कालेज में कुछ हुआ तो नहीं  ? " 
  -- मालती स्वयं भी पुत्री की यह दशा देख चिंतित एवं तनिक भयभीत भी हो उठी थी । 

   स्नेहा -- " मम्मी  ! वो ताऊजी की दुकान है न। वहाँ रेड पड़ा है । निखिल भैया को वे लोग साथ ले गये हैं । वहाँ तमाशाइयों की बड़ी भीड़ लगी हुई है।" 
  
मालती --  " पर.. क्यों, कुछ बताओगी भी अब !"

  स्नेहा - " वे लोग कह रहे थे कि भैया की दुकान से ढेर सारे मिलावटी और नकली सामान पकड़े गये हैं । कई बड़ी कम्पनियों के अधिकारियों ने यह शिकायत की थी कि भैया काफी दिनों से डुप्लीकेट सामान बेचकर उनकी कंपनी को ही नहीं,  सरकार को भी राजस्व की क्षति पहुँचा रहे हैं और ग्राहकों को ठग रहे हैं।अच्छा हुआ कि मेरी सहेलियों को नहीं मालूम था कि यह मेरे चचेरे भाई की दुकान है, नहीं तो मुझे बहुत लज्जा आती। तभी तो वे लोग इतनी जल्दी अमीर हो गए हैं न मम्मी ? " 

   " अरे ! चुप कर , तू अब एक शब्द भी नहीं कहेगी। जानती नहीं है क्या कि सोसायटी में जगह बनाने के लिए कुछ इधर-उधर करना ही पड़ता है। सत्यवादी हरिश्चंद्र बनने से काम नहीं चलता। भूल गयी क्या पिछले रक्षाबंधन पर्व पर निखिल ने तुझे सोने का कंगन दिया था। और हमें  भी जब आवश्यकता होती है तो उसकी कार मंगा लेते हैं। वे तेरे विवाह में भी कम मदद नहीं करेंगे। दोनों परिवार में तू ही इकलौती लड़की है । हाँ ,और सुन इसे बड़े लोग मिलावटखोरी नहीं बिजनेस कहते हैं। बड़ा आदमी बनने के लिए बड़ा दांव लगाना पड़ता है। "
    -- पुत्री को तनिक झिड़कते हुये मालती ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कर दिया था। 

   " परंतु मम्मी अभी तो थोड़ी देर पहले ही आप  रामू काका को मिलावटखोर कह डाँट रही थी। मैंने घर में प्रवेश करते हुये सुना था। कठिन परिश्रम के कारण काका के ढीले पड़े कंधे, आँखों के नीचे गड्ढे और माथे पर शिकन भी आपको भला कहाँ दिखे थे। क्या उनकी धन-लिप्सा निखिल भैया से अधिक है। यह कैसा दोहरा मापदंड है आपका.. !"

    -- यह बुदबुदाते हुये स्नेहा अपने कक्ष की ओर बढ़ चली, क्योंकि शब्द नहीं अनेक प्रश्न टंगे हुये थे उसके चेहरे पर । निखिल के लिए मालती का यह प्रशस्तिगान उसके कानों को भारी पड़ रहा था।

          -व्याकुल पथिक