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Thursday 7 March 2019

जग जननी-जग पालक हूँ , मैं नारी हूँ


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर जिले की पाती
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शराबबंदी, नशाबंदी, पर्यावरण, स्वच्छता अभियान एवं कन्याओं की शिक्षा जैसे मोर्चे पर गांव की महिलाएं पुरुष समाज को आईना दिखला रही हैं।
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     अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को एक बार फिर मनाने जा रहे हैं। जनपद में भी अनेक कार्यक्रम इस अवसर पर होते हैं । मंचों पर राजनैतिक, सामाजिक और संस्कृतिक क्षेत्रों में सक्रिय महिलाओं का सम्मान होता है। कभी कभी मंच को नाटकीय रूप भी दिया जाता है। फोकस में वो महिलाएँ रहती हैं,जिन का जुगाड़ तगड़ा होता है ।जबकि जमीनी स्तर पर सामाजिक कार्यक्रमों को करने वाली महिला कार्यकत्री नेपथ्य में चली जाती हैं। इसी का परिणाम है कि अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर चाहे जितनी भी बड़ी- बड़ी बातें हो,परंतु आधी आबादी फिर भी अंधेरे में है।
   जो उजाले में हैंं ,वे खास लोगों में से हैं। अतः जब तक गांव की महिलाओं को जागरूक नहीं किया जाएगा,बात बनेगी नहीं। हक अधिकार तो उन्हें सरकार ने अनेक दिए हैं। परंतु उनका पावर उनके परिवार के पुरुषों के हवाले हैं।
आलम यह है कि ग्राम प्रधान ,सभासद, जिला पंचायत सदस्य और उससे भी ऊपर की कुर्सियों पर जो महिला जनप्रतिनिधि हैं । उनमें से अनेक की पहचान, उनको मिला हुआ अधिकार और उनके कार्य कितने सार्थक हुए हैं ,इस पर भी एक सवाल इस दिन होना चाहिए। आज भी जहां महिला प्रधान हैंं ,वहाँ उनके पति को प्रधान जी कहा जाता है। जहां वे ब्लॉक प्रमुख हैं, वहां उनके पति को ही बोलचाल की भाषा में यह सम्मान मिलता है। कभी-कभी तो हम पत्रकारों को भी समाचार संकलन में यह पूछना पड़ता है कि वह स्वयं प्रधान है अथवा उनकी पत्नी प्रधान है, यह विचित्र विडंबना आज भी है । जहां तक अपने जनपद का सवाल है तो यहां की सांसद व केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने महिला सम्मान के लिहाज से अपनी पहचान बनायी है और इसमें अतिशयोक्ति नहीं है कि अब तक जनपद में जितने भी सांसद हुए हैं ,सबसे अधिक होमवर्क  अनुप्रिया पटेल का रहा है । वैसे, इसका श्रेय केंद्र में बैठी मोदी सरकार को भी है, क्योंकि यदि सरकारी मंशा ना होती तो फिर आज अनुप्रिया पटेल सहयोगी दल से सांसद होने के बावजूद भी जनपद में इतने बड़े- बड़े कार्य जो विकास,जो  शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन से जुड़े हैं नहीं करवा पातींं । सहयोगी दल से निचले स्तर पर मनमुटाव के बावजूद भी आज अनुप्रिया पटेल की अलग पहचान है और उनकी भाषण शैली भी अन्य महिला जनप्रतिनिधियों के मुकाबले बेहतर है। हाँँ, सहायक की भूमिका में उनके पति अपना दल ( एस ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व विधान परिषद सदस्य आशीष पटेल का भी योगदान रहता है। वैसे तो राजनीतिक नजरिए से यहां पर जिला पंचायत परिषद अध्यक्ष प्रमिला सिंह भी हैं। लेकिन फ्रंट पर यदि नाम आता है तो उनके पति पूर्व एमएलसी श्याम नारायण उर्फ विनीत सिंह का।  रामलली मिश्र यहां की विधान परिषद सदस्य हैं,उनकी पहचान भी उनके विधायक पति विजय मिश्रा से है।वर्तमान में मझवां विधायक शुचिस्मिता मौर्य का नाम भी इस क्रम में है। हालांकि उनकी पहचान किसी पुरुष सदस्य के कारण नहीं है । वह स्वयं ही अपने क्षेत्र में आती जाती हैं। फिर भी अभी और अधिक सक्रियता की जरूरत है ।वैसे उनकी पहचान  उनके ससुर पूर्व विधायक स्वर्गीय रामचंद्र मौर्य से हैं। जिन्होंने इस मझवां क्षेत्र से प्रतिनिधित्व किया था और अपनी पराजय के बाद , अपनी पुत्रवधू को राजनीति में लाने के लिए प्रयासरत रहें ।उनकी मृत्यु के बाद भाजपा ने उनकी पुत्रवधू शुचिचिस्मिता मौर्य को इस विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया था और मोदी लहर में बीते लोकसभा चुनाव में शुचिस्मिता मौर्य तीन बार से लगातार विधायक होते आ रहे डा० रमेश चंद्र बिंद को पराजित करने में सफल रहीं। मिर्ज़ापुर में सामाजिक क्षेत्रों में भी महिलाओं की बड़ी सहभागिता है। परंतु किसी बड़े सम्मानित क्लब के बैनर तले सामुहिक  विवाह करना, सिलाई मशीन देने जैसे कोई कार्यक्रम करवा देने से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की सार्थकता को कितना बल मिलेगा यह भी बड़ा सवाल है।
   महिलाओं में राजनीतिक जागरूकता लाने के लिए महिला संगठनों ने फ्रंट पर आकर बेटिंग की होती तो आज महिला ग्राम प्रधान ,सभासद और ब्लाक प्रमुख स्वयं अपना होमवर्क पूरा कर रही होतीं।
  बात शिक्षा क्षेत्र शुरू करें तो यहां आधी आबादी की बड़ी पहचान है ।केबीपीजी कॉलेज छात्र संघ की अध्यक्ष एक छात्रा है । फिर भी क्या कोई ऐसा महिला संगठन सुर्खियों में है जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर वहां की महिलाओं को उनके हक अधिकार के विषय में अधिक से अधिक जानकारी दे सके। सरकार ने बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ जैसे अनेक कार्यक्रम आधी आबादी के कल्याण के लिए शुरू कर रखे हैं।
फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में उसका व्यापक प्रचार-प्रसार महिला संगठनों के द्वारा नहीं हो पा रहा है।
चिकित्सा क्षेत्र की बात करें तो आज भी कन्या भ्रूण हत्या लुक चुप कर हो ही रही है। इस कार्य में संलिप्त लोगों  में  महिलाएं स्वयं अपनी भूमिका क्या हो , तह तय करें । कभी किसी महिला संगठन क्या ऐसा कोई बड़ा धमाका किया  कि भ्रूण परीक्षण करने वाले पैथोलॉजी केंद्रों को उन्होंने स्वास्थ्य विभाग की मदद से पकड़ा हो।
    इसके बावजूद भी जनपद में आज भी अनेक जागरूक  महिलाएं हैं। परंतु विडंबना यह है कि इन प्रतिभाओं की तलाश नहीं की जाती । अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मंच सजते हैं ,पर उस पर वे महिलाएं ही दिखती हैं जो पहले से नगरी क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से , प्रचारतंत्र  के अपनी सक्रियता बनाये रहीं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों से नई महिला प्रतिभाओं को ऐसे मंचों पर विशेष स्थान, विशेष पहचान और विशेष पुरस्कार दिया जाना चाहिए। हम पत्रकारों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि ऐसी महिलाएं जो ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रही हैं और आधी आबादी के लिए संघर्षरत हैं, उनकी तलाश हम भी करें और प्रोत्साहन में दो शब्द समाचार पत्रों में लिखें।
वैसे तो यहाँ पुलिस ने एक बड़ी पहल  करते हुए नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में महिला ग्रीन ग्रुप का गठन किया है ।जिसका कार्य अनैतिक कार्यों को पर नजर रखना एवं मादक द्रव्य पदार्थों के विरुद्ध जन जागरूकता अभियान है। यह महिलाएं जहां भी अवैध शराब निर्मित होती हैं। वहां वहां स्वयं ही एक्शन मोड में आ जाती हैं। शराबबंदी, नशाबंदी, पर्यावरण, स्वच्छता अभियान एवं कन्याओं की शिक्षा जैसे मोर्चे पर गांव की महिलाएं पुरुष समाज को आईना दिखला रही हैं।
  बीएचयू की एक संस्था द्वारा गांव की इन महिलाओं के रचनात्मक कार्य और उनके शौर्य पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी तैयार किया जा रहा है।