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Wednesday 25 April 2018

व्याकुल पथिक

व्याकुल पथिक

     यदि हम निजी लाभ, संबंध बिगड़ने के भय अथवा दबाव में जनहित से जुड़ी समस्याओं को लिखना बंद कर देंगे , तो फिर पत्रकार तो दूर एक रिपोर्टर कहलाने की पात्रता भी नहीं रखते हैं हम । जबकि समस्यात्मक समाचारों से संस्थान को भी कोई आपत्ति नहीं होती है। हां, संस्थान से मधुर संबंध रखने वाले किसी खास व्यक्ति  के हितों के विरूद्ध हम पत्र प्रतिनिधियों की  कलम कभी चल गयी हो, तो बात दूसरी है। दूसरे के अखबार में आप नौकरी करेंगे, तो इतना तो सहना ही होगा।  जैसा कि मैंने पहले बताया भी था कि मेरे साथ सिर्फ एक बार ही ऐसा हुआ है, फिर भी आपत्ति तो नहीं ही हमारे प्रेस के मालिकान ने जताई थी। समाजसेवा के क्षेत्र में बस उनके द्वारा किये गये एक उपकार की बात बताई गई थी, जिन माननीय पर मैंने तब खबर लिखी थी।  लेकिन, संस्थान को यह भली भांति पता था कि  मैंने जो कुछ लिखा , उसे पूरी ईमानदारी से लिखा था। मिसाल के तौर पर जनपद में ट्रैफिक जाम की समस्या भयावह होती जा रही है। मैं स्वयं भी इसका भुक्तभोगी हूं और शास्त्रीपुल पर खड़ा तमाम लोगों को परेशान देख रहा हूं। मेरा मत है कि वर्तमान सरकार में जिस तरह से यातायात व्यवस्था बेपटरी हुई है, ऐसा बुरा हाल पिछली सरकारों में  नहीं ही हुआ करता था। इसका जो प्रमुख कारण मुझे जो लगता है , वह है अफसरों की नेतागिरी । सबसे अधिक जाम टेढ़वा और औराई मार्ग पर लग रहा है। दोनों जनपदों का सीमा क्षेत्र होने के कारण चील्ह और औराई पुलिस एक दूसरे को इसके लिये जिम्मेदार मानती है। जबकि कड़ुवा सत्य यही है कि औराई पुलिस चतुराई का परिचय दे रही है। वह अपना चौराहा जाम मुक्त बतलाती है। लेकिन, जरा वह यह तो बताये कि माधोसिंह रेलवे स्टेशन के आसपास का क्षेत्र क्यों जाम रहता है। वहीं , जनता समझ नहीं पा रही है कि टेढ़वा जैसी पुलिस चौकी पर बुजुर्ग दरोगा क्यों पोस्ट है। यहां सड़क भी अर्द्ध निर्मित है, हालांकि मैं यह जानता हूं कि जब भी जाम की खबर छापता हूं, वर्दी वालों की नाराजगी बढ़ने लगती है। परंतु यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं इसपर कलम चलाता रहूं। बतौर पत्र प्रतिनिधि यह मेरा कर्तव्य है। सो, मुझे जनता की पीड़ा लिखनी ही है। वैसे भी,अब ढ़ाई दशक की पत्रकारिता में मैं उस स्थान पर पहुंच गया हूं कि अपने मिशन के लिये जेल भी मेरे लिये एक आश्रम होगा , क्योंकि मुझे तो अब दो जून की रोटी की भी आवश्यकता नहीं रहती, बस एक बार ही  यह  मिल जाए , उतने से ही पेट की ज्वाला शांत हो जाएगी।  जिस भी दिन मैं अखबारी रिपोर्टिंग से मुक्त हो जाऊंगा, उसी क्षण से सोशल मीडिया पर मेरी असली पत्रकारिता शुरू हो जाएगी। आज का हर नौजवान सोशल मीडिया पर पत्रकार ही तो है। बस उनका उचित मार्गदर्शन होना चाहिए। अर्थ युग की चकाचौंध में उनके समक्ष हम बड़ों को एक आदर्श प्रस्तुत करना ही होगा। आज मैं जहां हूं, उससे संतुष्ट इसलिये हूं , क्यों हर क्षेत्र के अच्छे और बुरे भी लोग इतना तो जरुर कहते हैं कि शशि भैया ने अपने संघर्ष से एक अलग पहचान कायम किया है। यह पहचान पैसे और ताकत से नहीं खरीद सकते हैं। कुछ तथाकथित बड़े पत्रकार कहते हैं कि मैंने तहलका मचाने वाली खोजी पत्रकारिता नहीं की है। ऐसे मित्रों से मैं बस इतना ही कहना ,चाहता हूं कि मेरी पत्रकारिता आमजन के लिये है,उनकी समस्याओं से  जुड़ी है। साथ ही जनपद की राजनीति पर भी मेरी कलम खूब चली है। अखबार का बंडल लाने, उसे  बांटने के बाद जो कुछ भी समय मेरे पास शेष होता है। वह में अखबर के लिये समाचार लेखन में लगाता जरूर हूं। फिर भी जो पत्रकार मित्र मुझे नसीहत दे रहे है , उनसे विन्रम शब्दों में पूछना चाहता हूं कि क्या उन्होंने एक सच्चे पत्रकार के रुप में जनता में अपनी कुछ भी पहचान बनाई है ? जबकि मैं किसी भी मंच से पूरे आत्मविश्वास के साथ यह उद्घोष करने को तैयार खड़ा हूं कि मैंने प्रलोभन मुक्त पत्रकारिता की है और इसके अतिरिक्त अन्य कोई व्यवसाय नहीं किया हूं। हां ,अखबार बांटना और संस्थान के लिये थोड़ा बहुत विज्ञापन कोटा पूर्ति के लिये जरुर किया हूं।

शशि(25/4/18)

 क्रमशः