Followers

Tuesday 5 June 2018

पथिक ! किस छांव की अब तुझे तलाश...


  केंद्रीय राज्यमंत्री ,भारत सरकार व मीरजापुर सांसद अनुप्रिया पटेल एवं जिलाधिकारी अनुराग पटेल पौधा लगाते
--------------------------------------------
   स्टोर बाबू की चाकरी ने मेरे कल्पनाओं के पंख कब के कतर दिये है। सो, मुझे सपना बेचना आता नहीं। ज्ञान गंगा के लिये व्हाट्सअप ग्रुप वैसे ही पटे हैं। मैं तो बस वहींं लिखता हूं, जो सहा हूंं और देखता हूं। देखें न आज एक बार फिर विश्व पर्यावरण दिवस का शोर चहुंओर मचा है , पर मेरा मित्र कम्पनी गार्डेन अपने सिकुड़ते अस्तित्व पर सिसक रहा है । आग उगल रहे सूर्य की तेज किरणों से बचने के लिये हर राहगीर पेड़ की छांव तलाश रहा है। पर वृक्ष हैं कहां मेरे भाई , जो उसके नीचे तनिक ठहर अपने तन की तपिश को शांत कर  पाओगे।यातायात सुगम बनाने के लिये जिन मार्गों पर फोरलेन  सड़कें बन रही हैं, वहां उनके दोनों किनारे लगे हजारों वृक्षों को चंद घंटों में काट धाराशायी कर दिया गया है। जो सैकड़ों वर्ष से खड़े थें। हम मुनष्यों को आम, अमरुद और जामुन देते थें। जो फलदार नहीं भी थें , वे भी हमें छांव तो निश्चित ही देते थें। हमारे ही जीवन रक्षा के लिये भूगर्भ जलस्तर को बढ़ा रहे थें। फिर भी हम मनुष्यों ने उन्हें असमय मौत दे दी क्यों ...स्वयं के विकास के नाम पर यह कैसी हमारी कृतघ्नता है। जरा भी नहीं विचार किया किसी ने कि जब फोरलेन सड़क की प्लानिंग बनी थी तो फिर इन वृक्षों को काटने से पहले नये पौधों को क्यों नहीं लगे थें। शास्त्रीपुल पर बसों की प्रतीक्षा करने वाले यात्रियों से पूछे इन वृक्षों के कटने का दर्द, तेज धूप में झुलसते व्याकुल हुआ जा रहा है उनका तन- मन । इस ओर सड़क तक नहीं बनी है अभी , अतिक्रमण दूर तक दुकानदारों ने कर रखा है। लेकिन , करीब दो वर्ष पूर्व सबसे पहले वृक्षों का गर्दन ही रेता है यहां हमने । इंसान की इनसे ऐसी क्या दुश्मनी थी कि एक पेड़ भी नहीं छोड़ा है। मैंनें जिन दो वृक्षों के नीचे औराई के लिये बस की प्रतीक्षा में दो दशक गुजारे थें। वे भी नहीं रहे यहां, पथिक किस छांव को अब तलाशोगे । हैं अब तो धुआं उगलते अनगिनत विशालकाय वाहन यहांऔर एक यात्री शेड जो सांसद ने लगवाया है।  कोई बाईस वर्ष इस मीरजापुर- औराई मार्ग पर सफर रही हमारी। बस से सड़क किनारे दोनों और हरे-भरे वृक्ष मन को कितना आनंदित किये हुये थें । यदि ट्रैफिक लोड के कारण जब कभी जाम लगता था। हम यात्री इन वृक्षों के नीचे ही तो शरण लेते थें। याद है मुझे जाम लगने पर माधोसिंह से औराई कितनी ही बार इन वृक्षों की छांव तले ही मैं पैदल चला था। नहीं तो अंगारे बरसाता यह सूर्य का तेज मृत्यु का देव बना खड़ा था। हाय ! जीवनदाता वृक्ष पर इतना अत्याचार  कर, फिर विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधे लगाने का स्वांग क्यों। कहीं माननीय, तो कहीं पत्रकार व सामाजिक संगठन ताम झाम से फरसा चला पौधे लगा रहे हैं। फोटो  खिंचवाने की होड़ यहां भी उनमें लगी है । सोशल मीडिया का नेटवर्क सुबह से ही ओवरलोड है। उधर अपना विंध्य पर्वत पुकार रहा है, कोई हमारे नंगे बदन का फोटो भी तो लो ना भाई। दशकों से अवैध खनन ने मेरी भी हरियाली छीनी है। मुझे पत्थर का ढ़ांचा इन्हीं लोगों ने बना खड़ा किया है। अनगिनत वृक्षों को विस्फोट के धमाके में दफन कर मेरा कलेजा अनेको बार फटा है। फिर आज के दिन चंद पौधे लगा इन्हें दी जा रही यह कैसी श्रद्धांजलि है । यह कैसा ढ़ोग है , कुछ तो बोलों बंधुओं ! जो जेठ की दुपहिया में तुम ये पौधे लगा रहे हो...
(शशि)