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Saturday 9 June 2018

यह जो तुम्हारा छल है !



 

 
      मौत का यह तरीका मुझे बिल्कुल नापसंद है। यह भी कोई बात हुई कि सीधे आकर गटक गयी। शत्रु को भी एक अवसर मृत्युदंड से पूर्व अंतिम इच्छा बताने का मिलता है। यहां हम तुम्हारे कोप से बचने के लिये देवी देवता को मनाते रहे हैं ,  ग्रहों की शांति के लिये क्या-क्या नहीं करते हैं और तुम हो की हम इंसान की जिंदगी का सारा गणित  बिगाड़ जाती हो। अरे निर्मोही , जीवन के लिये संघर्ष का एक तो अवसर  दिया होता ।  तनिक भी नहीं सोचा तुमने  कितने श्रम से हमने अपने जीवन का आशियना बुना है । बीवी, बच्चों और यार दोस्तों से हमारा नाता जुड़ा है। हाय ! यह कैसा घोर अन्याय है हम प्राणियों के संग तुम्हारा ! अभी कल की ही तो बात है सुबह पेपर लेकर निकला था, तभी गिरधर चौराहे पर विनोद ऊमर से यह सुन करेंट सा झटका लगा था कि अपने गोवर्धन भैया नहीं रहें। मैं स्तब्ध सा रह गया था, क्यों कि मेरा ब्लॉग उन्होंने उस दिन भी पढ़ा था । जिस रात वे बिन बताएं सबसे नाता तोड़ चले थें। ब्लॉग का शीर्षक था आनंद की खोज ...और वे स्वयं ही खो गये थें। क्या पूरी हुई खोज उनकी, या यूं ही छोड़ हम सबको चले गये हैं ..
       क्या बताऊं मैं जब मीरजापुर आया था। मुझसे पेपर लेने वालों में वे पहली कतार में खड़े थें, लिया ही नहीं साथ चल औरों को भी गांडीव का ग्राहक बनवाया था। तभी से मेरा उनका एक अनजान सा रिश्ता था। और फिर मैं जब असाध्य मलेरिया से पीड़ित हुआ था , तो भी मेरे गिरे मनोबल को उन्होंने यह कह कर उठाया था कि अब तो बिल्कुल ठीक हो भाई , क्या लोगे चाय-नमकीन । व्यवसायी थें वे और घर पर विद्यालय भी चलता है। स्वाभिमानी इतने थें कि कांग्रेस की राजनीति मे यहां के आंका के चौखट पर नतमस्तक होते उन्हें किसी ने नहीं देखा है । उनकी अपनी कांग्रेसी गद्दी थी, छोटी थी या बड़ी थी। हां, पार्टी में पक्षपात जब अधिक होता था, तो मुझसे उम्मीद उनको होता था कि शशि है, तो मेरा भी कुछ लिख पढ़ देगा जरूर।  सो, अभी तो और लड़ाई थी, लेकिन उस रात घर अपनी जीवनसंगिनी के समक्ष ही बेचैन निगाहों से चल दिये। पिछले माह भी एक और जान पहचान के व्यापारी ने इसी बेचैनी में ट्रेन में अपने युवा पुत्र के कंधे पर सिर क्या रखा बदन ठंडा पड़ गया था। बच्चे ने पिता की ऐसी मौत की भला कहां कभी कल्पना की थी ।  ऐसा पहले कभी- कभी होता था, पर अब रोज होता है। ऐसी पहली मौत मैंने अपने आंखों से कोई 22 वर्ष पूर्व देखी थी, जब पत्रकार चाचा के घर एक अधेड़ व्यापारी आया था। देर शाम बिस्तरे पर चंद मिनटों में ही वह ठंडा पड़ गया था।  न कोई बीमारी, ना ही दुर्घटना और समय से पूर्व यूं चल देना।  मौत के इस अजब ढ़ंग से मन विकल हो जाता है। तो मेरी चुनौती स्वीकार करों हे मौत की रानी ! माना कि मैं तुम्हें हरा नहीं पाऊंगा, पर तुमसे आंखें ना चुराऊंगा । पथिक हूं और मुसाफिरखाना अभी ठिकाना है आओ संग चले
पिय के घर  जाना है।

(शशि)

चित्र साभार गुगल से