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Tuesday 28 May 2019

न मिले मीत तो...

न मिले मीत तो...
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न कोई मीत मिले तो फ़क़ीरी कर ले
जलती शमा को बुझा के जुदाई सह ले

मिलती नहीं खुशियाँ तन्हाई जब होती
स्याह रातों में ग़मों से फिर दोस्ती कर ले

लोग ऐसे भी हैं उजाले में नहीं दिखते
आज़माएँ उनको भी ग़र अँधेरा कर ले

देके दर्द अपनों को जो वाह-वाह करते
वो अपनी ही निगाहों में कभी गिरते हैं

यतीमों की दुनिया में तू अकेला भी नहीं
राह में जो मिलते हैं वो हमदर्द तो नहीं

आँखें भर आई क्यों इक सहारा ढ़ूंढे ?
है इंसान तो मज़लूमों से दोस्ती कर लें

ख़ुदा के घर देर हो और अंधेर भी सही
ज़ख्म दिल का न भरे पर जिया करते हैं

कैसे समझाऊँ तड़पते नाज़ुक दिल को
उम्मीदों की चिता में यूँ न जला करते हैं

राह वीरान हो मुसाफ़िर तो चला करते हैं
दुनिया के  तमाशे में वो न रमा करते हैं

दर्द  को यूँ  ही सीने में दबाए रख ले
तेरी बिगड़ी है तक़दीर, वे नसीबा वाले ।

                       - व्याकुल पथिक