रेणु दी..
******
" शशि भाई , यदि आप चाहते हैं कि आपकी बात अन्य पाठकों तक पहुँचे, तो आपको अपने ब्लॉग में काफी कुछ सुधार करना पड़ेगा । "
...यह रेणु दी ही थीं , जिन्होंने " व्याकुल पथिक " को गत वर्ष सर्व सुलभ बना दिया था। मेल पर भेजे गये उनके संदेश ने आभासीय दुनिया में प्रथम बार मुझे उस पवित्र स्नेह का आभास करवाया जो " बहन- भाई " के मध्य होता है।
कहना नहीं होगा कि अब जबकि पथिक का ब्लॉग सूना पड़ा है, उसकी लेखनी ठहर गयी है , उसकी चिन्तन शक्ति , उसकी पहचान और उसका आत्म सम्मान सब-कुछ इसी आभासीय दुनिया में नष्ट हो चुका है। ऐसे में उसके हृदय के रिसते हुये घाव पर किसी ने मरहम का फाहा रखने का प्रयास किया है , तो वे श्रीमती रेणुबाला सिंह ही हैं, जिन्हें मैं स्नेह से रेणु दी बुलाया करता हूँ।
ब्लॉग पर मौजूद इस साहित्यिक जगत में जब भी यह लगता है कि यहाँ निखालिस कुछ भी नहीं है। इस तथाकथित संवेदनशील मंच पर निर्मल अश्रुओं का कोई मोल नहीं है। ऐसे में रेणु दी मेरे लिये वह आदर्श साहित्यकार हैं , जिनके हृदय में कृत्रिमता तनिक भी नहीं है।
मुझे उनकी रचानाओं, उनकी लेखनी और ब्लॉग जगत में उनकी विशिष्ट पहचान से कहीं अधिक उनका व्यवहारिक पक्ष पसंद है।अपने अंदर के पत्रकार अथवा बहन के प्रति प्रेम भाव में ऐसा मैं कदापि नहीं कह रहा हूँ । उनमें अनजाने लोगों के प्रति भी जो सहयोग की भावना है, वे उन्हें एक साहित्य प्रेमी से ऊपर मानव की विशिष्ट श्रेणी में ला खड़ा करता है। जो वास्तविक साहित्यकार का श्रृंगार है ।
मैंने देखा कि उन्होंने निश्छल एवं निस्वार्थ भाव से "शब्द नगरी " , " प्रतिलिपि " और " ब्लॉग " पर कनिष्ठ रचनाकारों का न सिर्फ उत्साहवर्धन किया है, वरन् उनकी कविता एवं लेख की त्रुटियों को भी मधुर संबोधन के साथ सुधारने का कार्य किया है। ऐसा करने में समयाभाव के कारण वे अपनी रचना न लिख पाती हो, फिर भी इस आभासीय जगत के अनजाने लोगों के सहयोग के लिये सदैव तत्पर रहती हैं। जिनमें से एक मैं भी था । यूँ कहूँ तो इस " व्याकुल पथिक " ब्लॉग पर मुझसे कहीं अधिक उनका ही अधिकार बनता है और इस ब्लॉग के सूनेपन से यदि कोई आहत है , तो वे रेणु दी हैं । वे ब्लॉग पर मेरी वापसी चाहती हैं । हाँ ,मीना शर्मा दी भी इसके लिये मेरा उत्साह बढ़ा रही हैं। परंतु दुर्भाग्य के प्रहार को बदलने में इस बार असमर्थ-सा हूँ । अस्वस्थता के कारण पुनः आश्रम जीवन संभव नहीं है। अतः एकांतवास ही एकमात्र विकल्प है। इस आभासीय जगत की पाठशाला में मैंने जीवन का वह अंतिम कष्टप्रद अध्याय पढ़ा है । जिसने स्वास्थ्य से कहीं अधिक मेरे उस अपनत्व -भाव पर प्रहार किया है, जिसके लिये मैं आजीवन भटकता- फिसलता रहा। सो, अब यह काया ढांचा मात्रा है। जिसमें स्पंदन नहीं है।यह मेरे हृदय की दुर्बलता रही कि इस आभासीय संसार में वर्षों बाद स्नेह और अपनत्व की भूख पुनः जगा बैठा।
फिर भी रेणु दी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त किये बिना , इस आभासीय दुनिया से विदाई , उनके ही जैसे उन भद्रजनों का अपमान करना होगा , जिनमें दूसरों के प्रति सहयोग की भावना है।
रेणु दी के ब्लॉग पर जाने से और उनके द्वारा लिखी श्रेष्ठ रचनाओं को पढ़ने से ,यह आभास होना कठिन है कि यह ऐसी गृहणी के द्वारा लिखा गया लेख अथवा कविताएँ हैं, जो सुबह से रात्रि तक अपने पारिवारिक दायित्वों में व्यस्त रहती हैं और इसके पश्चात भी अपने साहित्य प्रेम के कारण देर रात कम्प्यूटर पर बैठ इस सीमित समयावधि में ही नयी रचनाओं का सृजन करती हैं साथ ही दूसरों की रचानाओं पर अपनी प्रतिक्रिया भी देती हैं। ऐसे अनेक नये रचनाकार जिनका " कमेंट बाक्स " खाली पड़ा रहता है, उसके उत्साहवर्धन के लिये रेणु दी की प्रथम टिप्पणी उसपर निश्चित ही दिखाई पड़ती है। कभी इन्हीं में से एक मैं भी था।
" रेणु दी वह संपूर्ण आर्य नारी हैं ,जो साहित्यकार होने से पहले एक कुशल गृहणी हैं । अपने प्रियजनों संग रिश्तों की खुशबू को बरकरार रखने के लिए वे गृहस्थ धर्म का अनवरत निष्ठा पूर्वक पालन करते हुए, रात्रि में साहित्य सृजन के लिए सहर्ष तत्पर रहती हैं । जैसा कि प्रबुद्ध वर्ग के लिए कहा जाता है कि जिस तरह शरीर का खाद्य भोजनीय पदार्थ है, उसी तरह से मस्तिष्क का खाद्य साहित्य है। सच कहूं तो रेणु दी में वह संवेदना और सहानुभूति है ,जो साहित्य की सृष्टि करती है। "
परिस्थितिजन्य कारणों से परास्नातक की शिक्षा उन्होंने किसी कालेज जाकर न भी ग्रहण की हो, तब भी उनकी यह डिग्री गांव की बेटी की शिक्षा के प्रति समर्पण और संघर्ष की दास्तान है।
रेणु दी की कविताओं में प्रकृति, सौंदर्य एवं मानव मन का सम्मिश्रित चित्रण है। हर शब्द बोलता है और व्यर्थ यहाँ कुछ भी नहीं है। वहीं, गद्य की बात करे ,तो उनका हर लेख विषय वस्तु को विस्तार के साथ समाहित किये हुये है। उसमें सम्पूर्णता है और सार्थकता भी।
ब्लॉग पर रचनाओं की अधिक संख्या एवं पेज व्यूज के पीछे भागने वाले लेखकों के लिये रेणु दी का ब्लॉग " स्पीड ब्रेकर " है। जिस तरह से "गति अवरोधक" असावधान वाहन चालकों को सजग करता है। उसी तरह उनका ब्लॉग भी ऐसे लेखकों को सावधान करता है कि वे जरा ठहर कर अपनी रचनाओं की स्वयं समीक्षा करे ।
स्वयं अपने कार्यों का मूल्यांकन करना ही मनुष्य के लिये सफलता की दिशा में बढ़ता वह पहला कदम है , जो उसे शीर्ष पर ले जा सकता है। आत्मावलोकन कर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
रेणु दी ऐसी ही रचनाकार हैं , जिन्हें यह पता है कि गृहस्थ धर्म ही उनकी प्राथमिकता है। सो, वे अपने कवि हृदय को अपने पारिवारिक दायित्व पर बोझ बनने नहीं देती हैं। जो एक कुशल गृहिणी का प्रथम कर्तव्य है।
आज जब ब्लॉग जगत से दूर विकल हृदय लिये एकांतवास पर हूँ। मानसिक तनाव एवं अस्वस्थता के कारण " नेत्रों की ज्योति " बुझने को है। न्यूरो सर्जन के माध्यम से उचित उपचार होने तक ऐसे में लिखने- पढ़ने में असमर्थ रहूँगा। फिर भी प्रयत्न कर रेणु दी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये इन चंद शब्दों को लिख सका हूँ । साहित्यकार तो मैं हूँ नहीं ,अतः मेरी यह धृष्टता वे अवश्य क्षमा कर देंगी, ऐसा मुझे विश्वास है।
-व्याकुल पथिक
20 जून 2019
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" शशि भाई , यदि आप चाहते हैं कि आपकी बात अन्य पाठकों तक पहुँचे, तो आपको अपने ब्लॉग में काफी कुछ सुधार करना पड़ेगा । "
...यह रेणु दी ही थीं , जिन्होंने " व्याकुल पथिक " को गत वर्ष सर्व सुलभ बना दिया था। मेल पर भेजे गये उनके संदेश ने आभासीय दुनिया में प्रथम बार मुझे उस पवित्र स्नेह का आभास करवाया जो " बहन- भाई " के मध्य होता है।
कहना नहीं होगा कि अब जबकि पथिक का ब्लॉग सूना पड़ा है, उसकी लेखनी ठहर गयी है , उसकी चिन्तन शक्ति , उसकी पहचान और उसका आत्म सम्मान सब-कुछ इसी आभासीय दुनिया में नष्ट हो चुका है। ऐसे में उसके हृदय के रिसते हुये घाव पर किसी ने मरहम का फाहा रखने का प्रयास किया है , तो वे श्रीमती रेणुबाला सिंह ही हैं, जिन्हें मैं स्नेह से रेणु दी बुलाया करता हूँ।
ब्लॉग पर मौजूद इस साहित्यिक जगत में जब भी यह लगता है कि यहाँ निखालिस कुछ भी नहीं है। इस तथाकथित संवेदनशील मंच पर निर्मल अश्रुओं का कोई मोल नहीं है। ऐसे में रेणु दी मेरे लिये वह आदर्श साहित्यकार हैं , जिनके हृदय में कृत्रिमता तनिक भी नहीं है।
मुझे उनकी रचानाओं, उनकी लेखनी और ब्लॉग जगत में उनकी विशिष्ट पहचान से कहीं अधिक उनका व्यवहारिक पक्ष पसंद है।अपने अंदर के पत्रकार अथवा बहन के प्रति प्रेम भाव में ऐसा मैं कदापि नहीं कह रहा हूँ । उनमें अनजाने लोगों के प्रति भी जो सहयोग की भावना है, वे उन्हें एक साहित्य प्रेमी से ऊपर मानव की विशिष्ट श्रेणी में ला खड़ा करता है। जो वास्तविक साहित्यकार का श्रृंगार है ।
मैंने देखा कि उन्होंने निश्छल एवं निस्वार्थ भाव से "शब्द नगरी " , " प्रतिलिपि " और " ब्लॉग " पर कनिष्ठ रचनाकारों का न सिर्फ उत्साहवर्धन किया है, वरन् उनकी कविता एवं लेख की त्रुटियों को भी मधुर संबोधन के साथ सुधारने का कार्य किया है। ऐसा करने में समयाभाव के कारण वे अपनी रचना न लिख पाती हो, फिर भी इस आभासीय जगत के अनजाने लोगों के सहयोग के लिये सदैव तत्पर रहती हैं। जिनमें से एक मैं भी था । यूँ कहूँ तो इस " व्याकुल पथिक " ब्लॉग पर मुझसे कहीं अधिक उनका ही अधिकार बनता है और इस ब्लॉग के सूनेपन से यदि कोई आहत है , तो वे रेणु दी हैं । वे ब्लॉग पर मेरी वापसी चाहती हैं । हाँ ,मीना शर्मा दी भी इसके लिये मेरा उत्साह बढ़ा रही हैं। परंतु दुर्भाग्य के प्रहार को बदलने में इस बार असमर्थ-सा हूँ । अस्वस्थता के कारण पुनः आश्रम जीवन संभव नहीं है। अतः एकांतवास ही एकमात्र विकल्प है। इस आभासीय जगत की पाठशाला में मैंने जीवन का वह अंतिम कष्टप्रद अध्याय पढ़ा है । जिसने स्वास्थ्य से कहीं अधिक मेरे उस अपनत्व -भाव पर प्रहार किया है, जिसके लिये मैं आजीवन भटकता- फिसलता रहा। सो, अब यह काया ढांचा मात्रा है। जिसमें स्पंदन नहीं है।यह मेरे हृदय की दुर्बलता रही कि इस आभासीय संसार में वर्षों बाद स्नेह और अपनत्व की भूख पुनः जगा बैठा।
फिर भी रेणु दी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त किये बिना , इस आभासीय दुनिया से विदाई , उनके ही जैसे उन भद्रजनों का अपमान करना होगा , जिनमें दूसरों के प्रति सहयोग की भावना है।
रेणु दी के ब्लॉग पर जाने से और उनके द्वारा लिखी श्रेष्ठ रचनाओं को पढ़ने से ,यह आभास होना कठिन है कि यह ऐसी गृहणी के द्वारा लिखा गया लेख अथवा कविताएँ हैं, जो सुबह से रात्रि तक अपने पारिवारिक दायित्वों में व्यस्त रहती हैं और इसके पश्चात भी अपने साहित्य प्रेम के कारण देर रात कम्प्यूटर पर बैठ इस सीमित समयावधि में ही नयी रचनाओं का सृजन करती हैं साथ ही दूसरों की रचानाओं पर अपनी प्रतिक्रिया भी देती हैं। ऐसे अनेक नये रचनाकार जिनका " कमेंट बाक्स " खाली पड़ा रहता है, उसके उत्साहवर्धन के लिये रेणु दी की प्रथम टिप्पणी उसपर निश्चित ही दिखाई पड़ती है। कभी इन्हीं में से एक मैं भी था।
" रेणु दी वह संपूर्ण आर्य नारी हैं ,जो साहित्यकार होने से पहले एक कुशल गृहणी हैं । अपने प्रियजनों संग रिश्तों की खुशबू को बरकरार रखने के लिए वे गृहस्थ धर्म का अनवरत निष्ठा पूर्वक पालन करते हुए, रात्रि में साहित्य सृजन के लिए सहर्ष तत्पर रहती हैं । जैसा कि प्रबुद्ध वर्ग के लिए कहा जाता है कि जिस तरह शरीर का खाद्य भोजनीय पदार्थ है, उसी तरह से मस्तिष्क का खाद्य साहित्य है। सच कहूं तो रेणु दी में वह संवेदना और सहानुभूति है ,जो साहित्य की सृष्टि करती है। "
परिस्थितिजन्य कारणों से परास्नातक की शिक्षा उन्होंने किसी कालेज जाकर न भी ग्रहण की हो, तब भी उनकी यह डिग्री गांव की बेटी की शिक्षा के प्रति समर्पण और संघर्ष की दास्तान है।
रेणु दी की कविताओं में प्रकृति, सौंदर्य एवं मानव मन का सम्मिश्रित चित्रण है। हर शब्द बोलता है और व्यर्थ यहाँ कुछ भी नहीं है। वहीं, गद्य की बात करे ,तो उनका हर लेख विषय वस्तु को विस्तार के साथ समाहित किये हुये है। उसमें सम्पूर्णता है और सार्थकता भी।
ब्लॉग पर रचनाओं की अधिक संख्या एवं पेज व्यूज के पीछे भागने वाले लेखकों के लिये रेणु दी का ब्लॉग " स्पीड ब्रेकर " है। जिस तरह से "गति अवरोधक" असावधान वाहन चालकों को सजग करता है। उसी तरह उनका ब्लॉग भी ऐसे लेखकों को सावधान करता है कि वे जरा ठहर कर अपनी रचनाओं की स्वयं समीक्षा करे ।
स्वयं अपने कार्यों का मूल्यांकन करना ही मनुष्य के लिये सफलता की दिशा में बढ़ता वह पहला कदम है , जो उसे शीर्ष पर ले जा सकता है। आत्मावलोकन कर अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा जा सकता है।
रेणु दी ऐसी ही रचनाकार हैं , जिन्हें यह पता है कि गृहस्थ धर्म ही उनकी प्राथमिकता है। सो, वे अपने कवि हृदय को अपने पारिवारिक दायित्व पर बोझ बनने नहीं देती हैं। जो एक कुशल गृहिणी का प्रथम कर्तव्य है।
आज जब ब्लॉग जगत से दूर विकल हृदय लिये एकांतवास पर हूँ। मानसिक तनाव एवं अस्वस्थता के कारण " नेत्रों की ज्योति " बुझने को है। न्यूरो सर्जन के माध्यम से उचित उपचार होने तक ऐसे में लिखने- पढ़ने में असमर्थ रहूँगा। फिर भी प्रयत्न कर रेणु दी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिये इन चंद शब्दों को लिख सका हूँ । साहित्यकार तो मैं हूँ नहीं ,अतः मेरी यह धृष्टता वे अवश्य क्षमा कर देंगी, ऐसा मुझे विश्वास है।
-व्याकुल पथिक
20 जून 2019
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रेनू जी का व्यक्तित्व ब्लॉग जगत में ऐसा ही है ... कई बार न जानते हुए भी किसी न किसी से इंसान जुड़ जाता है ... इसे स्नेह का बंधन कहो ये कुछ भी पर ऐसे रिश्ते सुकून देते हैं ... मधुर होते हैं और पोजितिविटी ले कर आते हैं ...
ReplyDeleteआप भी अपना ख्याल रखिये ... सामाजिक रिश्तों और बंधनों को निभाना और कर्तव्यों को साधना ही जीवन है ...
रेणु जी जैसे टिप्पणीकारों से ही चिट्ठा जगत जीवंत है । चिट्ठाकारी दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteऔर आप के स्वास्थलाभ के लिये दुआ करेंगे। जल्दी वापसी करें कलम के साथ यही कामना है।
Deleteआप शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ हों ईश्वर से यही प्रार्थना है, मैं भी इसी दौर से गुजर रही हूं।आप जैसे महान रचनाकारों का सान्निध्य अभी-अभी पाया है और रेणु बहन तो संजीवनी बूटी के समान है।उनकी स्नेहिल प्रतिक्रियाए
ReplyDeleteसभी के हृदय में ऊर्जा उत्पन्न करती हैं।
आपके शीध्र स्वास्थ्य लाभ की ईश्वर से प्रार्थना है । प्रिय रेनू जी के विषय में आपके द्वारा लिखी गई एक-एकबात सोलह आना सच है । वो है ही इतनी प्यारी ।
ReplyDeleteरेणु जी के व्यक्तित्व और कृतित्व की जितनी सराहना की जाए उतनी कम होगी । उनका स्नेहिल व्यवहार सदैव मुग्ध करता है । आपके स्वास्थ्य लाभ की कामना करती हूँ आप शीघ्रातिशीघ्र स्वस्थ हो कर लेखन कार्य जारी करें .. आपके लेख बहुत सुन्दर होते हैं ।
ReplyDeleteव्याकुल पथिक जी,
ReplyDeleteनमस्कार। आज आपने रेणु जी के बारे में जो लिखा उससे मैं बहुत खुश हूँ और खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूँ। रेणु जी कमाल की साहित्यकार है, उससे बढ़कर एक आर्य नारी है। उन्होंने ने कई साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया, सीखाया और एक मुकाम तक पहुचाया।
इतना कुछ करके भी रेणु जी बिलकुल साक्षी भाव में रहती है।
आपको बधाई। रेणु जी को मेरा अपार स्नेह आशीर्वाद।
पंकज त्रिवेदी
संपादक - विश्व गाथा
व्वाहहहह..
ReplyDeleteसादर..
व्याकुल पथिक जी, ईश्वर से प्रार्थना हैं कि आपको जल्द ही स्वास्थ्य लाभ हो और ब्लॉग जगत में आपकी वापसी हो...मैं ने आपकी रचनाएं पढ़ी हैं ...बहुत अच्छा लिखते हैं आप!
ReplyDeleteरेणु दी के बारे में क्रा कहूं...वो हैं ही बहुत प्यारी!
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteएक अति सतर्क, सत्यानंवेषी, साहित्यानुरागी और सचेत समीक्षक के संक्षिप्त और परोक्ष साक्षात्कार का आभार और स्वास्थ्य एवं आत्म-विश्वास-लाभ की अशेष शुभकामनाएं!!!
ReplyDeleteआदरणीय शीश भाई बहुत ही सुन्दर लिखा आप ने प्रिय रेणु दी जी के विषय में, वो बहुत ही सुलझी हुई और समझदार है उनकी समीक्षा में हमेशा अपने पन की महक विध्यमान रहती है उनका स्नेहिल स्वभाव मेरे लिए हमेशा ही प्रेणा का विषय रहा है रेणु दी का लेखन बहुत ही प्रभावी है उन के उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ, आप का स्वास्थ भी शीघ्र ही ठीक हो और आप की लेखनी हमेशा की तरह अपने गंतव्य की अग्रसर हो |
ReplyDeleteसादर
प्रिय शशिभैया,रेणुबहन के बारे में इस छोटे से लेख में आपने जो भी कहा है वह उनके प्रति कृतज्ञता दर्शाता है। कृतज्ञता सच्चे मनुष्य का गुण है। कृतज्ञता के आँसू मोतियों से भी कीमती होते हैं और फरिश्ते भी इन आँसुओं की चाह रखते हैं। आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखिए। ईश्वर से दुआ करूँगी कि आपके नेत्रों की ज्योति बनी रहे, आप यूँ ही लिखते रहें । आभासी जगत में बहुत सारे अच्छे लोग हैं जो आपके लेखन के प्रशंसक हैं। इलाज कराइए, जल्दी स्वस्थ होइए। और रेणु से तो यही कहूँगी कि जैसी हो वैसी ही रहना, कभी बदलना मत। सादर, सस्नेह, दुआओं के साथ....
ReplyDeleteनिःशब्द हूँ! सभी को स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए सादर सस्नेह आभार। 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteआदरणीय शशि जी ,सबसे पहले तो मैं दुआ करती हूँ कि आप जल्द से जल्द स्वस्थ हो जाये और फिर से ब्लॉग जगत में आप की पुरजोर वापसी हो। सखी रेणु के लिए आप के अंतर्मन में जो भाव हैं वो मैं समझ सकती हूँ क्योकि उनके लिए मेरी भी भावनाये कुछ ऐसी ही हैं। उनके स्नेहिल व्यवहार के लिए मेरे मन में जो भाव थे आपके एक एक शब्द मेरे भी उन भावो की अभिव्यक्ति कर रहा हैं। ब्लॉग जगत से मेरा परिचय भी उन्होंने ही करवाया था। ये आभासी दुनिया के रिश्ते भी बड़े अजीब हैं अनजाने में ही कही बहुत सुकून दे जाते हैं तो कही मन को आहत कर देते हैं। मेरी नजरिये से तो जो स्नेह मिले उसे दामन में समेत ले और जो दुःख दे जाये उसे बुरा स्वप्न समझ भूल जाना चाहिए। आप अपने सेहत पर ध्यान दे ,मेरी दुआ हैंकि ये भाई बहन का प्यार हमेसा बना रहे। सादर नमस्कार
ReplyDeleteआजकल कुछ पारिवारिक उलझनों के वजह से मेरी भी मानसिक स्थिति कुछ ठीक नहीं हैं इस वजहसे ब्लॉग जगत में मेरी भी सक्रियता थोड़ी कम हो गई हैं इसीलिए प्रतिक्रिया देने में थोड़ा विलम्ब हुआ क्षमा चाहती हूँ। लेकिन जब फेसबुक पर सखी रेणु के बारे में आप का लेख दिखा तो खुद को रोक नहीं पाई,सखी रेनू को भगवान हर वो ख़ुशी दे जिसकी वो हकदार हैं। सादर
ReplyDeleteआशा और स्नेह से भरी पोस्ट वो भी स्नेह के बहाने.... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआप दोनों को नमन... पथिक के जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना करती हूँ !
आप सभी को इस स्नेह और उत्साहवर्धन के लिये प्रणाम, धन्यवाद।
ReplyDeleteआप जल्दी स्वस्थ होकर वापस आएँ यही ईश्वर से प्रार्थना है रेणु जी के बारे में आपने मेरे दिल की बात लिख दी रेणु जी की प्रतिक्रियाएँ हमेशा मन में उत्साह भर देती हैं। रेणु जी को हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteBhai Shashi sarvpratham
ReplyDeleteIshvar se prarthana hai ki
aap jald svasth ho jayen,
aapki aankhon ki roshni
ke bare me Jan kar aur
bhi adhik peeda hui,asha
hai ki ilaj ke Baad aap punah purvvat lekhan ke
silsile Ko aage barhate najar aayenge.
Aapki ,aur ab hamari bhi,
Renu didi ke bare me Jan
kar abhibhut Hun,vatsalya
bhav aur aatmiyata se otprot beti me bhi matritva
Bodh chhalakta najar aata
hai,Renu di ek Aadarsh
Grihini hain aur usse bhi
adhik ek smvedshanshil
Shabd shilpi bhi hain yah
Jan kar main bhitar tak
Spandit Hun,bhav vihval
hun,Shashi bhai Ko to
Maine apni nangi aankhon
se parvan charh kar shunya se Shikhar ki manjil tai karte dekha hai
aur Shashi bhai ke antarman ki udasiyon me
Jivantata ka rang bharne
Vali Renu didi ke prati main bhi natmastak Hun
Unhe kotishah Naman.
अधिदर्शक चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार
पथिक को पता होता है राहें आसान नही और उन पर चलते हुए कई अप्रत्याशित प्रारब्ध और मोड़ आते हैं, पथिक को यह भी पता होता है कि उसका आत्मबल उसे हर रुकावट से पार कराएगी।
ReplyDeleteजीवन में ये समय बहुत कठिन है पर ये निकल जायेगा पुरा विश्वास है भाई। आप को स्वस्थ और सहज होकर जल्दी आना है।
समाज को नव चेतना के कितने आयाम देने हैं कितने स्वेच्छा से अपनाए दायित्व पूरे करने हैं।
बस जल्दी से आकर अपने अधुरे चिंतन को गति दिजीये।
शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की हार्दिक शुभकामनाएं।
हम सभी आप के शीघ्र स्वस्थ होने की मंगल कामना करते हैं।
ReplyDeleteआदरणीय पथिक जी, आज ही आपके इस अंक को पढने का अवसर मिला। आदरणीया रेणु जी की सशक्त लेखनी और स्नेहिल स्वभाव से मैं शब्दनगरी के माध्यम से परिचित हूँ । उन्हें नमन है हमारा। परन्तु मैं आपके स्वास्थ के बारे में जानकर दुखित हूँ । आप जैसे सशक्त रचनाकार का स्वस्थ होना, साहित्यिक जगत को आगे ले जाने हेतु, अत्यन्त आवश्यक है। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है।
ReplyDeleteविलम्ब से प्रतिक्रिया हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ ।
भाई साहब आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ, यह मायने रखता है, मेरे लिये।
ReplyDeleteआदरणीय शशि जी आपके स्वास्थ्य के बारे में जानकर बहुत दुख हुआ भगवान से प्रार्थना है कि वे आपको शीघ्र स्वास्थ्य लाभ दें...और आपसे कहना चाहुँगी कि आप सकारात्मक सोचें अपने को निरा पथिक अकेला सोचकर दुखी न रहें माना कि बहुत कष्टप्रद रहा है आपका जीवन ...जो मैंनें आपके हर लेख में आपकी व्यथा पढी और कई बार इसी तरह प्रतिक्रिया भी दी फिर भी काफी कुछ दिया प्रभु ने आपको जैसे ये अद्भुत लेखन शक्ति, रेणुजी जैसे अच्छे लोगों का सानिध्य और यहाँ तक का जीवन सफर तय करने का माध्यम ये शरीर) उसका शुकराना कर खुश रहना शुरु करें
ReplyDeleteसब ठीक होना शुरू हो जायेगा ...अपने अनुभव के आधार पर लिख रही हूँ आपकी स्वस्थता की कामना करती हूँ....रेणु जी के विषय में आपने अक्षरशः सत्य कहा है उनकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है...भगवान उन्हें हमेशा खुश रखे और हम सभी को उनका सानिध्य इसी तरह मिलता रहे....
मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूँ, सुधा जी ..
ReplyDeleteक्यों कि ब्लॉग जगत में आपही की तरह और भी शुभचिंतक सदैव मुझे यह भरोसा दिलाते रहते हैं कि सबकुछ अच्छा ही होगा।
रेणु दी पर मैंने जो कुछ लिखा, इसे मेरी श्रद्धा समझे,उनके प्रति।
Renu ji ko kuch hi dino se janti hu....pr jab bhi unse bat ki aisa lga ki bahut purani pahchan hai...unki sab se acchi bat jo mujhe lagti hai ki wo ek acchi lekhika ke sath ek acchi pathika bhi hai...wo jab bhi kisi rachna pr pratikriya deti hai tab unki pratikriya se rachna ki gahrai ka andaza lag jata hai....rachna ka marm bakhubi samajhti hai...aur nidar hokar likhti bhi hai ....blog jagat me unke saral aur acche vyavhar ke karan wo sabhi ko apni si lagti hai....bhagwan unki har manokamna purn kare....aap ne bahut acchi jankari di....bahut accha lga unke bare me padhkar....dhanyawad 🙏🙏🙏
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया मुझे बहुत ही अच्छी लगी ।आप सभी बहनों को सादर प्रणाम। ब्लॉक पर मैं आप सभी की रचनाएं बहुत तो नहीं पढ़ पाता। फिर भी उन्हें समझने का प्रयास अवश्य करता हूं।
ReplyDeleteआप सभी बहनों को सादर अभिनन्दन आप सभी की रचनाएं यथाशक्ति
ReplyDeleteपढ़ने का प्रयास करती हूँ। बहुत सुन्दर प्रेणना वर्धक रचनाएँ होती हैं।