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Monday 14 May 2018

प्रणाम बंधुओं

व्याकुल पथिक

       जीना उसका जीना है , जो औरों को जीवन देता है
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        हमारे एक मित्र हैं अश्वनी भाई। न्यूज, व्यूज और म्यूजिक का अच्छा कलेक्शन रखते हैं। यू़ं समझे कि आलराउंडर हैं जनाब ! ईश्वर की कृपा उनपर है। सो, सुखी गृहस्थ जीवन का भरपूर आनंद ले रहे हैं। आर्थिक व्यवस्था कुछ उनके पास ऐसी है कि झमाझम लक्ष्मी की बरसात भले ही ना हो रही हो, पर ठन ठन गोपाल भी नहीं हैं बंधु मेरे। सो, दिन चढ़ते- चढ़ते मोबाइल हाथ में लिये और कान में ईयरफोन लगाये मीडिया सेंटर में आ बैठते हैं। यहां काम उनका बस यही है कि आते जाते हुये मैं सब पे नजर  रखता हूं ...

   सो, मेरी मनोस्थिति भी उनसे छिपी नहीं है। अश्वनी भाई जानते हैं कि सुबह के 5 बजे से रात्रि 12 बजे तक मानसिक और शारीरिक कार्य करने वाले मुझ श्रमिक को  देर रात्रि बिस्तरे (शैय्या) पर जाते समय थकान मिटाने की कौन सी दवा चाहिए। लिहाजा, मेरे एकाकी जीवन में रंग बिखेरने के लिये वे इन दिनों पुराने गानों का कोई ना कोई खुबसूरत गुलदस्ता रात्रि में मुझे सेंट करना नहीं भूलते हैं। एक ऐसा ही चुनिंदा सदाबहार नगमा कल उन्होंने मेरे व्हाट्सएप पर डाला था । जिसके बोल रहे ---

मधुबन खुशबू देता है, सागर सावन देता है
जीना उसका जीना है, जो औरों को जीवन देता है...
   
      अब क्या बताऊं आपको तन चाहे कितनी भी थकान से टूट रहा हो पर मन को भावनाओं, सम्वेदनाओं और कल्पनाओं के पंख लग जाते हैं। वह दिन भर के कैदखाने से मुक्त आजाद पक्षी की तरह फुदकने लगता है। जीवन को सार्थक करने के लिये कितना सरल सूत्र इस गाने में छिपा है। हमसभी ऐसा कर सकते हैं, औरों को जीवन दे सकते हैं। जेब से हमारा कुछ भी बर्बाद नहीं होना है । बस झूठी जुबां चलाने की जगह दिल का खजाना हमें थोड़ा लुटाना है। तभी हमें मन की बात समझ में आएगी !
     अब देखें न हम जिस छोटे से शहर मीरजापुर में रहते हैं, यहीं माता विंध्यवासिनी का धाम भी है। कहां- कहां से नहीं आस्था में बंधे दर्शनार्थी यहां खींचें चले आते हैं। मार्ग में पड़ने वाले शास्त्रीपुल को पार कर ही दर्शनार्थियों और यात्रियों सभी को नगर में प्रवेश करना होता है। हां ,गैर प्रांत जाना हो तो सीधे निकल जाएं। परंतु  स्थिति क्या है यहां की ट्रैफिक व्यवस्था की , यही न की यात्री दो- दो घंटे तक खुले आसमान से बरस रहे अंगारे के मध्य देवीधाम पहु़ंचने से पूर्व जाम में फंस अग्नि परीक्षा देने को विवश हैं। अभी किसी वीआईपी के आगमन की सूचना आ जाए, तो फिर देखिए न साहब कैसे कुछ ही मिनटों में हमारे ये ही बहादुर वर्दीवाले भाई फटाफट सड़क को ट्रैफिक विहीन सा कर देगें। हमारे राजनेता भी स्वागत के लिये इस पुल के समीप आ डट जाएंगे। वहीं ,जब आम जनता की बारी आती है, तो उसे  इसी भीषण जाम में बिलबिलाते रहने के लिये तब तक छोड़ दिया जाता है, जब तक होहल्ला नहीं मचता है। सरकारी खटारी बसों में बैठीं माताओं, बहनों और जाम में गर्मी से बिलखते उनके बच्चों की गुहार सुनने फिर भला कौन माननीय यहां आता है। जनसमस्या स्थल पर जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी देखने के लिये आम आदमी की आंखें तरस जाती हैं। ऐसे में 20 से 30 लाख की मंहगी लग्जरी गाड़ियों में घुमने वाले ऐसे माननीयों को फिर कौन याद करेगा पांच साल बाद! जो हैं तो जनप्रतिनिधि पर क्या जन के लिये कितना  !
       इसीलिये तो मुझ जैसे साधारण पत्रकार को जाम में फंसे लोग संदेश भेजते रहते हैं कि शशि जी व्हाट्सएप ग्रुप में चला दें न ! हम सभी बहुत परेशान हैं। मैं जानता हूं कि मेरा यह कार्य यहां के सत्ताधारी राजनेताओं और अफसरों को सदैव ही अप्रिय लगता रहा है। पर सवाल यह है कि सभी अमृत कलश के दौड़ में जुट जाये, तो जहर कौन पिएगा ! सो, जीवन के संध्याकाल आने से पूर्व कुछ तो अपने पेशे का मान रख लूं, फिर तो अंधेरी रात ही मिलेगी ! हमें भी और आपकों !

शशि 15/5/18