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Sunday 1 December 2019

सजदा ( जीवन की पाठशाला )

न कभी सजदा किया
ना दुआ करते हैं हम
दिल से दिल को मिलाया
बोलो,ये इबादत क्या कम है।


दर्द जो भी मिला
ख़ुदा ! तेरी दुनियाँ से
कोई शिकवा न किया
बोलो,ये बंदगी क्या कम है ।


कांटों के हार को समझ
नियति का उपहार
हर चोट पे मुस्कुराया
बोलो,ये सब्र क्या कम है।


अपनों से मिले ज़ख्म पे
ग़ैरों ने लगाया नमक
बिन मरहम काट लिये वक्त
बोलो,ये सजा क्या कम है ।


बारिश में छुपा अपने "अश्क़ "
मिटा असली-नकली का भेद
सावन में दिल को जलाया
बोलो ,ये तप क्या कम है।


शूल बन चुभते रहे वो बोल
राज यह भी किया दफ़न
फ़क़ीर बन होकर मौन
बोलो, ये वफ़ा क्या कम है।


सजदे का क्यों करते मोल
ये मेरे गुनाहों की माफी है
अल्लाह की तारीफ और
पैग़ाम इंसानियत का है !


रिश्ते में भी होते हैं सजदे
मतलबी इंसानों की बस्ती में
इसे कोई करे न करे क़ुबूल
सुनो,ये तो अपनी क़िस्मत है ।

व्याकुल पथिक