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Monday 11 May 2020

ड्रिंकिंग डे

ड्रिंकिंग डे

     इस लॉकडाउन में जब धनी-निर्धन सभी आर्थिक रुप से पस्त हैं। रोज़ी- रोटी को लेकर परेशान हैं। ऐसी स्थिति में भी मैं निठल्ला बिना किसी चिन्ता-फ़िक्र के संदीप भैया के प्रतिष्ठान के सामने स्थित देशी- विदेशी मदिरा की दुकानों पर अँगूर की बेटी के प्रभाव और उसके रहस्योद्घाटन में उलझा हूँ।
   मैंने देखा कि भोलेनाथ के प्रिय दिवस सोमवार को जैसे ही लॉकडाउन के तीसरे चरण के प्रथम दिन (4 मई) मदिरालयों का कपाट खुला लम्बी कतार में खड़े पियक्कड़ों में जो पहला ग्राहक था, वह प्रथम पूज्य गणेश बन गया। माला पहना कर उसका स्वागत  शराब विक्रेता द्वारा किया गया। और फ़िर जो यहाँ अद्भुत दृश्य देखने को मिला, उसका वर्णन संभव नहीं है । कोई पैंट के दोनों  ज़ेब सहित कमीज़ के अंदर और दोनों हाथों में बोतल थामे दिखा, तो कोई झोले में भरकर ले जा रहा था। किसी ने अपनी बाइक की डिग्गी को बोतलों से इस प्रकार सजा लिया, जैसे वह शराबी चित्रपट के महानायक की कार की डिग्गी हो। एक ऐसा व्यक्ति भी दिखा, जो मोटर साइकिल से अपनी दस वर्षीया बच्ची के साथ आया था। बच्ची के कंधे पर एक ख़ूबसूरत बैग था। मैंने देखा कि दारू की बोतलें उसके बैग में रखते देख जिज्ञासा वश मासूम लड़की ने सवाल किया था-" पापा ! यह क्या है? " 
  सम्भवतः उससे सोचा हो कि कोल्डड्रिंक है।
   जिसके प्रतिउत्तर में उस व्यक्ति को यह कहते सुना- " चुप कर ! मम्मी को मत बताना, चल तुझे चाकलेट दिलवाता हूँ।"
   हाँ, विदेशी मदिरा के पड़ोस में स्थित देशी शराब की दुकान पर, जहाँ निम्न वर्ग के ग्राहक आते हैं,पहले की तरह चहल-पहल नहीं थी।
इस वर्ग का ज़ेब जो खाली है। अतः जो भी आते दिखा, समझ लें कि वह अपने ही घरवालों के पेट पर डाका डाल कर , हौली पर आया है । 
      सत्य यही है कि शासन से लेकर श्रमिक तक जिसके समक्ष नतमस्तक हैं,उसका नाम शराब है। देश और प्रदेश में भगवान राम को अपना आदर्श मानने वालों की सरकार के लिए भी इस संकटकाल में यह वारुणी ' धनदेवी' बनी हुई है। उसने एक बार पुनःसिद्ध कर दिया है कि सत्ता और समाज पर वर्चस्व उसका ही है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि इस लॉकडाउन में जहाँ देवालयों के कपाट बंद हैं, वहीं मदिरालयों पर रौनक़ क़ायम है।
      अपने मीरजापुर जनपद में चार मई को मदिरालय खुलते ही लोग लगभग एक करोड़ का शराब गटक गये। पियक्कड़ों की एकजुटता के समक्ष सोशल डिस्टेंस का पालन करवाने वालों की ज़ुबान लॉक हो गयी । इस सोमरस के मद का ही प्रभाव है कि ज्ञानी पुरुषों की संवेदनाओं और नैतिकता की परिभाषा बदल गयी है। जिनके हाथों में शासन की शक्ति है और जो उनके अनुयायी हैं,वे शराब की दुकानों को इस वैश्विक महामारी में खोले जाने का यह कहकर समर्थन कर रहे हैं कि यदि सरकारी  ख़ज़ाने में धन नहीं आएगा, तो देश की अर्थव्यवस्था डाँवाडोल हो जाएगी। 
  ख़ैर, शासन ने तो अपने राजस्व प्राप्ति का मार्ग निकाल लिया, किन्तु व्यापारी और जनता के लिए भी क्या मदिरा जैसी कोई जादुई छड़ी है , जिससे इस तालाबंदी में उन्हें भी अर्थ अर्जन का कोई स्त्रोत मिल जाए ?
  मेरा तो मानना है कि चार मई जिसने सरकारी खजाने को भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है , इसे तो निश्चित ही " ड्रिंकिंग डे " का सम्मान मिलना चाहिए। किन्तु ऐसा करने से पूर्व  गृहणियों से भी संवाद कर लेना चाहिए। वे हमारे देश के रहनुमाओं को बताएँगी कि लॉकडाउन के मध्य ज़ब वे घोर आर्थिक संकट का सामना कर रही थीं, इस दिन घर की लक्ष्मी का किस प्रकार अनादर हुआ है। घर में जो कुछ धन शेष था, उसमें से भी एक बड़ा हिस्सा ऐसे पुरुषों ने "अंगूरी" की भेंट चढ़ा दिया। 
   मसलन,जनधन खाते में आये पाँच सौ रूपये को ही लें। जिसे बैंक से निकालने के लिए ऐसी महिलाओं ने भगवान भास्कर के प्रचंड ताप को चुनौती देते हुये गृहस्थी का सारा कार्य त्याग कर लम्बी कतारें लगायी थीं। किन्तु चार मई को हुआ क्या ? इस छोटी सी धनराशि में से जो भी पैसा शेष था, उसपर उनके पियक्कड़ पतिदेव ने बलपूर्वक अपना अधिकार जमा लिया। श्रमिकों के बैंक खाते में  सरकार ने जो एक हजार रूपया डाला था, यदि उसमें से कुछ शेष बचा था ,तो वह भी हौली की भेंट चढ़ गया। क्या लॉकडाउन में खुली शराब की दुकानों से पीड़ित ऐसी गृहलक्ष्मियों के प्रति सरकार की कोई संवेदना नहीं है ? भाकपा के वरिष्ठ नेता मो० सलीम जैसे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि घर-परिवार चलाने के लिए उन्होंने जिन ग़रीबोंं का आर्थिक सहयोग किया था, उसमें ऐसे भी निकले जो हौली पर दिखें।
    मज़दूरों और महिलाओं को शासन से मिला हजार-पाँच सौ रूपया भी यदि नशे की भेंट चढ़ जाए, तो सरकार की यह उदारता फ़िर किस काम की ? सत्य ही कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति हर कार्य को निज स्वार्थ की तराजू पर तौलता है। जिसके लिए समाज और शासन दोनों ही बराबरी  का दोषी है। 
   फ़िर भी कथनी और करनी में एकरूपता की परख तभी होती है ,जब चुनौती सामने हो। हिम्मती तो वे लोग ही कहे जाएँगे,जो मझधार में पड़े हो, फिर भी तूफ़ानों को झेलने का हौसला रखते हो।अन्यथा मानवीय कल्याण की बड़ी-बड़ी लच्छेदार बातें करना किसे नहीं पसंद है। इस युग में सबसे बड़ा परोपकारी आदमी पुरोहित  और संत नहीं, वरन् राजनीतिज्ञ होता है, क्यों कि शास्त्रों के जानकार तो हमें स्वर्ग भेजने का आश्वासन मात्र देते हैं, किन्तु राजनेता धरती पर ही स्वर्ग उतार लाने का दावा करता है। 
   आम चुनाव में ग़रीबी हटाओ, शाइनिंग इंडिया और अच्छे दिन जैसे जुमलों के माध्यम से राजनीतिज्ञ धरती पर स्वर्ग के आगमन का आश्वासन ही तो देता है ? लक्ष-लक्ष मानव मन की आकाँक्षाओं के प्रतीक अब ये राजनेता ही हैं, इन्हीं में से किसी एक को योग्य समझ कर जनता उसके हाथों में अपना नेतृत्व सौंपती है। अब चाहे विपत्ति में वे मदिरा पिलाए अथवा दूध ?
   अपने जनपद में 4 से 9 मई के मध्य लगभग दो हजार पेटी अंग्रेजी शराब मूल्य  1 करोड़, चार हजार पाँच सौ पेटी देशी शराब ,मूल्य 1करोड़ 30लाख 50 हजार रूपया और ग्यारह सौ पेटी बियर मूल्य 29 लाख 70 हजार बिकी है।अथार्त अनुमानित मूल्य 2 करोड़ 60 लाख 20 हजार की शराब छहः दिनों में बिकी है। जिसमें से लगभग एक करोड़ की मदिरा 4 मई को ही बिक गयी थी और शेष 1.60 करोड़ की पाँच दिनों में ,अतः इस आंकड़े से स्पष्ट है कि जब पूरा विश्व कोराना जैसी महामारी से जूझ रहा था, उसी लॉकडाउन के मध्य 4 मई 2020 को पियक्कड़ों ने नया इतिहास रच दिया। ऐसे में इस दिवस को " ड्रिंकिंग डे " के नाम से पुकारा जाए, तो इसमें बुरा क्या है ?
   लेकिन, हौली की ओर बढ़ते कदम भी हौले-हौले थमने लगे हैं, क्यों कि ज़ेब फ़िर से खाली हो गया है। और ऐसे में एक बड़ा ख़तरा यह भी है कि नशे की सस्ती और हानिकारक सामग्रियों का प्रयोग किया जाएगा।

  - व्याकुल पथिक