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Monday 28 May 2018

बस्ती बस्ती परबत परबत गाता जाए बंजारा

   

     एक ईमानदार व्यक्ति को उसके हिस्से का अमृत जीवनकाल में कहां प्राप्त होता है, हलाहल पीना ही उसकी नियति है। यह जो भौतिक एश्वर्य है न बंधुओं, वह हम जैसों के लिये कहां है। इनके करीब जाने के लिये छल और स्वांग रचना होगा । साथ ही सफेद नकाब में अपने वास्तविक चेहरे को छुपाने की कला भी आनी चाहिए। इतनी बाजीगरी के साथ झूठ सच  बोल जो नेताओं सा दांत निपोरता रहे, समझ ले कि इस अर्थयुग का अमृत कलश उसे मिलना ही है और हम जैसों के हिस्से में सहानुभूति है इस समाज की । फिर भी हम मस्त फकीर हैंं । मैं भले ही लेखक ,साहित्यकार और कवि नहीं हूं , एक पथिक तो हूं न ! जो कुछ अपनी इस यात्रा में देखा -पाया , उसे हुबहू आपसे रूबरू करवाता रहा । मैं पढ़ता नहीं हूं , सिर्फ देखता हूं और लिखता हूं। मैं तो स्वयं में ही एक किताब हूं। उस आम आदमी की पुस्तक हूं, जिसके बीच सुबह से रात गुजरती है। उसकी बुझी बुझी सी टिमटिमाती आंखें , उदास चेहरे और पीट से चिपके पेट ही मेरी लेखनी है। मेरे अखबार के पाठक की मुझसे बड़ी उम्मीद रहती है। यह जानते हुये भी कि जिस समाचार पत्र से मैं जुड़ा हूं, उसका चादर तंग है। मेरा बहुमूल्य समय क्राइम की खबर लपकने में ही गुजर जाता है। हत्या , दुराचार , चोरी , टप्पेबाजी की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। आज के लड़के बिना मेहनत किये ही स्मार्ट बाइक और महंगे रेस्टोरेंट में गर्लफ्रैंड के साथ मौज मस्ती चाहते हैं। जिस मीरजापुर से मैं जुड़ा हूं, वहां किशोरियों और बच्चों संग दुष्कर्म की घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं। यह कैसी हैवानियत है, मासूम बच्चियों तक को नहीं छोड़ रहे हैं , ये भेड़िये ! रही बात किशोरियों और युवतियों की तो कड़ुवा सच यही है कि अधिकांश मामलों में मधुर संबंध का राज जब परिजनों के समक्ष खुल जाता है, तो बेचारा आशिक दुराचारी ठहरा दिया जाता है। पैसा के लोभ में भी ऐसे आरोप लग जा रहे हैं। यह जानते हुये कि फलां ने दुष्कर्म नहीं किया है। यह मुकदमा झूठा है। अखबार वाले बढ़ा-चढ़ा कर खबर छापते हैं। कुछ पत्रकार तो  आरोपी के पिता तक का नाम खबर में डाल देते हैं। ताकि उसके पूरे परिवार को ही शर्मिंदा होना पड़े। पर मेरी अलग सोच है यदि मेरे अंदर की आवाज यह कह रही होती है कि लड़का निर्दोष है, तो समचार भले ही पेपर में देना मेरी मजबूरी हो, परंतु युवक का नाम - पता तो मैं नहीं ही देता हूं।  यह ठीक है कि मजनूओं की तादाद बढ़ती ही जा रही है। वे कन्या विद्यालयों के मार्ग में बाइक स्टंट करते मिलेंगे। पर कभी अभिभावकों ने किशोरावस्था पार कर रहींं अपनी पुत्रियों से यह पूछा है कि सुबह तो धूप भी नहीं है, फिर चेहरे पर नकाब बांध और कान में मोबाइल लगाये, वे घर से स्कूल जाने की राह में किससे वार्तालाप कर रही थीं। पिता- भाई तक नहीं पहचान पता रास्ते में इन्हें। मैं पत्रकार हूं, इसलिए जानता हूं कि वे बाइक सवार के पीछे बैठ कहां जाती हैं । हमारे पवित्र विंध्याचल धाम के कतिपय होटल इसी के लिये बदनाम हैं। वापसी पर इन युगल के हाथों में देवी मां का प्रसाद नारियल चुंदरी होता है। मन व्याकुल हो उठता है, अपनी नयी पीढ़ी का यह नया संस्कार देख कर । अखबार के कालम में अभिभावकों को सावधान ! होशियार !! करता रहता हूं। वे जगते तब हैं जब थाने पर जाकर सिर झुकाये गुहार लगानी पड़ती है कि दरोगा जी मेरी बिटिया को फलां... अब चले पुलिस सब काम छोड़ उन्हें ढ़ूंढने , इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस से इनके मोबाइल फोन से  लोकेशन का पता लगा प्रेमी युगल को पकड़ कर लाया जाता है।  लड़का को जेल मिलता है और लड़की के ऊपर से  मोहब्बत का नशा उतर जाता है। आशनाई को लेकर ही आज सुबह ही एक अविवाहित युवक की निर्मम हत्या कर फेंका शव मिला है। मन ऐसी घटनाओं से व्यथित हो उठता है, पर दबाव यह रहता है कि किसी एंगल से खबर कमजोर ना पड़ने पाए। अजीब हालात है इस जिले का , यहां जितने भी कत्ल हो रहे हैं, उसमें से दो तिहाई इसी प्रेम रोग का परिणाम है। अवैध संबंध में बलि सदैव पुरुष की ही चढ़ती है ! कौन इन्हें राह दिखाएं ? यह प्रेम कितना सच्चा होता है ! कभी इस दर्द को मैंने भी जाना- समझा है। सारे मेले पीछे छूट गये तो गुनगुनाए जा रहा हूं...

        बस्ती बस्ती परबत परबत गाता जाए बंजारा
         लेकर दिल का एकतारा

     जानता हूं आज ब्लॉग पर, जो लिखा, यह बकवास आपकों पसंद नहीं आया होगा, पर जो लिखा हूं  उससे युवा पीढ़ी को हमें बाहर निकालना ही होगा..
   (शशि)