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Sunday 8 March 2020

सच्चा सम्मान

   
सच्चा सम्मान
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     अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नगर के कई स्थानों पर सम्मान समारोह आयोजित था। ऐसी गोष्ठियों में नारी सशक्तिकरण पर बढ़-चढ़कर चर्चा हो रही थी।  समाजसेवा सहित अन्य क्षेत्र में पहचान रखने वालीं महिलाएँ,  आयोजक एवं मंच संचालक पूरी तैयारी से आये हुये थे। आधी आबादी के समर्थन में , उनके विकास, समानता के अधिकार और मान-सम्मान पर हो रहे आघात के लिए शेष आधी आबादी के तथाकथित दोषियों के विरुद्ध आग उगलते एक से बढ़कर एक शब्दबाणों ने कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिये थे। जिससे तालियों की गड़गड़ाहट से कार्यक्रम स्थल गुंजायमान हो उठा था। 

   मुख्य अतिथि से सम्मान पत्र लेने के लिए कार्यक्रम में सभ्य समाज की आमंत्रित महिलाओं के चेहरों पर मुसकान था। संचालक  प्रत्येक का नाम पुकारता और फिर जैसे ही वह उनके सामाजिक कार्यों का  वर्णन करता; कक्ष एक बार पुनः इनके जयघोष से गूंज उठता था। इस सफल कार्यक्रम से सभी हर्षित थे। सेल्फी और ग्रुप फोटोग्राफी के माध्यम से इन यादगार पलों को तत्क्षण सोशल मीडिया में साझा किया जा रहा था।

    इन महिलाओं के मध्य एक भी स्त्री ऐसी नहीं दिखीं, जो श्रमिक वर्ग से हो, जिनके श्रमजल अश्रु बन मुसकाते हो , क्योंकि यहाँ भी जुगाड़तंत्र का कड़ा पहरा था, तो फिर इस वर्ग की महिलाओं की खोज की आवश्यकता ही किसे थी कि उन्हें भी महिला दिवस पर सम्मान मिले।

   उधर, इस आयोजन से दूर शहर के मध्य स्थित सभ्य जनों की रैदानी कालोनी के समीप एक अस्सी वर्षीया वृद्धा गिट्टी तोड़ रही थी। ऐसे किसी समाजसेवक की दृष्टि उसकी ओर नहीं गयी थी। उसके श्रम को पुरस्कृत करना तो दूर, सम्भवतः किसी ने उसे सम्मान से पुकारा भी न होगा। इनमें से किसी को भी उसमें कोई रुचि नहीं थी। वह बुढ़िया सिर झुकाएँ पत्थर तोड़े  ही जा रही थी।

   अचानक आज का दिन उसके लिए तब विशेष  हो गया, जब मंडलीय  अस्पताल चौकी प्रभारी  रामवंत यादव की नज़र पड़ गयी । धूप में ईंट-पत्थर तोड़ती वृद्धा को पूरे जोश के साथ अपने बुढ़ापे को चुनौती देते देखकर वे बिल्कुल चकित रह गये।

  यह सोचकर कि वह निराश्रित होगी, इसी जिज्ञासा में उन्होंने उससे प्रश्न किया- " मैया , क्या घर पर कोई नहीं है ? "

"नाही दरोगा बाबू , सबलोग हैय अउर ऊ हमके मानत भी हैन  ..।"

  वृद्धा की ये बातें उपनिरीक्षक श्री यादव को पहेली-सी लगी। अतः उन्होंने उससे इस अवस्था में अर्जुनपुर गाँव से शहर आकर इतना कठोर परिश्रम करने का कारण जानना चाहा।
   
   वृद्धा ने स्वाभिमान से कहा- ''जब तक भुजाओं में बल है , तब तक वह मेहनत- मशक्कत से  पीछे क्यों हटे।"

    नारी दिवस पर उस अनपढ़ वृद्धा की कर्मठता के समक्ष दरोगा जी नतमस्तक थे । वे मन ही मन बुदबुदाते हैं कि "काश !  किसी विशेष दिवस पर ऐसी भी महिलाओं को प्रतिष्ठित मंच से सम्मान मिलता।"

    और तभी श्री यादव को ख्याल आता है कि वृद्धा भूखी भी हो सकती है। प्रतिउत्तर में जब उसने सकारात्मक मुद्रा में सिर हिलाया तो चौकी प्रभारी श्री यादव ने बड़ी  आत्मीयता से उस वृद्ध मैया को भोजन ग्रहण करवाया । इस पर बुढ़िया की आँखें छलक उठीं। वह दरोगा बाबू को अपने संतानों से भी कहीं अधिक दुआ देती है।

   आज नारी दिवस पर किसी स्त्री का एक पुरूष के हाथों यह सबसे बड़ा सम्मान था।
           
            - व्याकुल पथिक