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Wednesday 20 June 2018

स्मृतियों के अटूट बंधन में है जीवन की राह




सारा प्यार तुम्हारा,
 मैंने बांध लिया है आंचल में।
तेरे नये रूप की नई अदा,
हम देखा करेंगे पल पल में।
 
    सच बताऊं मैं आपकों कि मुझे इस तरह के गीत इसलिये भाते हैं, क्यों कि अपनों की स्मृतियों को ये ताजगी देते हैं। हमारी भावनाओं , सम्वेदनाओं और मानव प्रेम के लिये सिर्फ वैराग्य की कामना से मन बोझिल हो जाएगा। सतनाम का जाप और इन कर्णप्रिय गीतों का कर्मफल मेरी दृष्टि में भिन्न नहीं है।हां, मन के भाव समय-समय पर भिन्न अवश्य होते हैं। प्रेम और करुणा ही जीवन है। यही हमारी जीवन शक्ति है। यदि ऐसे गीतों का मुझे सहारा नहीं मिला होता, तो जिन परिस्थितियों से मैं गुजरा हूं और आज जिस चिन्ता मुक्त जीवन की ओर अग्रसर हूं, तब वह व्याकुलता मुझे जीवन मुक्त करने की राह पर ले ही गयी होती। परंतु इन गीतों में मुझे अपनों का प्यार समाहित दिखा। मां, बाबा, दादी, मौसी और भी कुछ ऐसे लोग जो जाने-अनजाने मेरे जीवन में आये, उन स्मृतियों का अटूट बंधन मेरा जीवन रक्षक बन गया। आज मुसाफिरखाने में एक पथिक के रुप में मैं जिस वैराग्य की अनुभूति कर रहा हूं। स्वाथ्य, धन और भोजन तीनों के ही लोभ से बिल्कुल मुक्त हूं।  मेरे व्याकुल मन को तब ज्ञान की भाषा समझ में नहीं आयी थी। सो, अपने इस वेदना में अपनों को ढूंढने के लिये इन गीतों का सहारा लिया। जिसमें सफल हुआ। अन्यथा एक गृहस्थ नामी कथावाचन द्वारा खुदकुशी करने का प्रकरण हमारे सामने हैं। हमने ऐसा तो नहीं पढ़ा कभी कि कृष्ण के विरह में गोपियों ने प्राण त्याग दिये हो, क्योंकि कृष्ण संग स्मृतियों का अटूट बंधन जो था उनका। जीवन में एक ऐसा मंच हम जरुर तैयार रखें, जहां अपनों के वियोग के बावजूद हम उस पर नृत्य कर सकें, रुदन कर सकें। ये गीत और ब्लॉग लेखन दोनों ही मेरे नीरस जीवन में अमृत कलश की तरह है। बेशक यह ब्लॉग मैं अपने लिये लिख रहा हूं और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग क्या सोच रहे हैं। मैं यहां बिल्कुल खुले मन से लिखता हूं। इसके लिये कुशल लेखक होना आवश्यक नहीं है। हां, शब्दों में भाव होना चाहिए। ताकि हम जब भी अपनी इस डायरी के पन्नों में अपनी तस्वीर देखें, तो दर्पण की तरह हो, न की उसमें कोई बनावटीपन हो, हां एक मुस्कान अवश्य हो। बस आज इतनी सी बात कहनी है। अब अपनी गीतों की नगरी में वापस लौट रहा हूं, शुभ रात्रि।

 मधुबन खुशबू देता है, सागर सावन देता है
जीना उसका जीना है, जो औरों को जीवन देता है
सूरज न बन पाए तो, बन के दीपक जलता चल
फूल मिले या अंगारे, सच की राहों पे चलता चल ...(शशि)