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Thursday 3 May 2018

बुद्ध की खोज

व्याकुल पथिक

      बुद्ध की खोज !
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      बुद्ध पूर्णिमा पर इस बार न जाने क्यों मन की व्याकुल कुछ अधिक ही बढ़ गयी थी। स्वयं से बार बार एक ही सवाल कर रहा था कि कब मुक्त होंगे तुम उस मोह से, जो तुम्हें एक रंगमंच पर कैद किये हुये है। हालांकि यहां भी जो अपने कार्य के प्रति  मेरा प्रेम और समर्पण है, वह मेरे विचार से उत्तम ही है। परंतु यह राह मुझे उस गणतव्य तक कभी नहीं पहुंचा पाएगी, जहां मैं जाना चाहता हूं। सच कहूं तो, मैं बुद्ध को पढ़ना नहीं, बल्कि स्वयं में देखना चाहता हूं ।

         महादेव की समाधि मुद्रा, बुद्ध की ध्यान मुद्रा और कबीर की वाणी इन तीनों ने ही मेरे मन को सदैव आह्लादित एवं आनंदित  किया है।  मैं इनके करीब रहना चाहता हूं। परंतु इनके जैसा हो नहीं पाता। फिर भी प्रयत्न कर रहा हूं। दरअसल होता यह कि जब- तक मन चैतन्य होता है , तब-तक तन की चदरिया मैली ही नहीं पुरानी भी पड़ चुकी होती है। ऐसे में इस पुरानी चादर की अधिक धुलाई करने का प्रयास करेंगे, तो दाग छुटने के स्थान पर चारद के फटने का खतरा अधिक रहता है। सो, मध्य का मार्ग ही हम अपना सकते हैं।

          कभी-कभी सोचता हूं कि सीमित लोगों से अत्यधिक प्रेम करने की अपेक्षा असीमित लोगों में उसे बांटा होता, तो वियोग का वह दर्द होता ही क्यों।  सिद्धार्थ गौतम ने भी तो यही किया था न ! राजमहल, सुंदर पत्नी और नवजात पुत्र के प्रेम से बाहर निकल अपने प्रेम को  सर्वसमाज के लिये समर्पित कर दिया था। इसी समर्पण से एक साधारण सा राजकुमार प्रेम एवं करुणा का प्रतिबिंब बन गया, वह बुद्ध हो गया। विचित्र विडंबना है कि तमाम उपदेशक ज्ञान बांट रहे हैं, मुक्ति का मार्ग बतला रहे हैं, कर्म पथ को परिभाषित कर रहे हैं। कोई इनसे यह पूछे कि  स्वयं भी कभी इन राहों पर चलने का प्रयत्न किया है क्या। सिद्धार्थ ने बुद्ध बन कर तभी उपदेश दिया था, जब उन्हें उस ज्ञान की अनुभूति हो गई थी, जिसकी खोज में वे अपना सारा सांसारिक वैभव त्याग कर निकले थें।
     तभी तो बुद्ध आज भी शुद्ध है... और ये हजारों उपदेशक समाज में कोई भी परिवर्तन लाने में इसीलिए नाकाम हैं, क्यों कि वे चुराया हुआ ज्ञान बांट रहे हैं ! पुस्तकीय ज्ञान के कथावाचन से हम सच्चा उपदेश नहीं बन सकते हैं और न ही औरों को राह ही दिखला पाएंगे। यदि ऐसा सम्भव होता तो, तथागत ने यह नहीं कहा होता -
   " अप्प दीपो भव " ।

    वे भी मोक्षदाता बन जातें, परन्तु यह कार्य उन्होंने हम पर छोड़ दिया है। पर हम मठों में बुद्ध को खोजने लगें, पुस्तकों में उन्हें ढूंढने लगें , इसीलिए एक और बुद्ध फिर नहीं खोज सकें अब तक !

 (शशि) 3/5/18