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Wednesday 11 April 2018

आत्मकथा

व्याकुल पथिक 11/4/18

आत्मकथा

   एक कड़ुवा सच आज मैं कहना चाहता हूं, वह यह है कि  पत्रकारिता धर्म के मार्ग पर चलने वाले किसी भी पत्र प्रतिनिधि को जो सबसे बड़ा खतरा है , वह किससे  है !  जानते हैं आप ? यही सोच रहे होंगे न कि गुंडे -माफियाओं से या फिर पुलिस और बाहुबली सफेदपोश भी ऐसा हो सकता है। क्यों कि उत्साह से लबरेज एक युवा पत्रकार की कलम सबसे पहले इन पर ही खुलती है। मैं भी इसी दौर से गुजरा हूं। परंतु विश्वास करें , इनसे कभी खतरा नहीं हुआ मुझे । चंबल से आईं पूर्व दस्यु सुंदरी स्व० फूलन देवी, वाराणसी से आये विनीत सिंह , ददुआ के अनुज बाल कुमार पटेल और सपा के तोप समझे जाने वाले राजनेता शिवशंकर यादव पर भी खूब कलम चली थी मेरी। साथ ही वर्दी वालों से भी पंगा लेता ही रहा। यहां तक कि हमारे अखबार के संपादक जी तब चिंतित रहते थें कि यह लड़का कहीं संकट में फंस न जाए।  इन सभी पर चर्चा कभी विस्तार से करूंगा। पर यहां इतना बता दूं कि ऐसे सभी पावरफुल लोगों ने  कुछ नाराजगी के बावजूद भी मेरी लेखनी का  सम्मान ही किया। मेरे उनके मध्य संवादहीनता नहीं आने पाई। फिर खतरा किससे है मुझ जैसे पत्रकारों को !  तो वे हैं अपने ही भाई बिरादरी के लोग । जो हमकों पता भी नहीं चलने देंगे कि कब डंसने वाले हैं वे । एक पत्रकार को किस तरह से फंसाया जा सकता है। यह कमजोरी उन्हें पता जो है। सो, इन्हें पत्रकारिता जगत का जयचंद कह सकते हैं । परंतु इनका साम्राज्य भी स्थाई नहीं होता। अब मेरे ही मामले में ले न , मुझ पर पर्दे के पीछे से मुकदमा दर्ज करवाने वाला एक पत्रकार जिले से ही लापता है, दूसरा घर पर पड़ा है, तीसरे की हाल यह है की अपने ब्यूरोचीफ के पांव तले दबा कराह रहा है और अब चौथे का बड़ा साम्राज्य भी डगमगा रहा है। ऐसे पत्रकार तनिक आत्मचिंतन कर लें। मित्रों, गरीब  ईमानदार व्यक्ति को पीड़ा पहुंचा कर आप उसका और कितना नुकसान करेंगे, वह तो पहले से ही तप रहा है। मुझे ही लें , सारे संबंध, स्वास्थ्य और  हर सूख सुविधा को पत्रकारिता की  बलिवेदी पर अर्पित कर चुका हूं। यह बात किसी से छिपी नहीं है। बचपन से जिद्दी था ना , सो अवसर मिलने पर भी कलम का मोल नहीं मांगा , न ही ठेकेदार, कोटेदार ,दुकानदार बना। फिर भी भाई बिरादरी वाले मुझसे इसलिये नाराज रहते है, क्यों कि उनका जुगाड़ तंत्र  मुझे पसंद नहीं है। यदि किसी गलत व्यक्ति से उनकी मित्रता है, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं भी ऐसे लोगों को मौसेरा भाई लूं। सो मैंने जहां तक सम्भव हुआ  लिखा। पर जाहिर है कि जल में रह कर मगर से यदि वैर करुंगा ,  तो परिणाम मेरे जैसे गैर जनपद से आये पत्रकारों के लिये हानिकारक  होना तय है। परंतु जनाब आप भी षड़यंत्र सफल होने पर यूं न मुस्कुराते फिरें।

  महान समाज सुधारक संत कबीर की इस चेतावनी से जरा भय खायें। क्या सबक था उनका याद करें....

       दुर्बल को ना सताइये, वां की मोटी हाय।
       बिन सांस की चाम से, लोह भसम होई जाय।

मैं तो गरीब और ईमानदार दोनों ही हूं, अतः  मुझ जैसों को सताने का दंड स्वतः ही मिलेगा ! यह प्रत्यक्ष मैं देख रहा हूं।
    दरअसल, ऐसे लोग जो पत्रकारिता के क्षेत्र में काफी हाथ पांव मार कर भी नंबर वन नहीं बन पाते, उन्हें सदैव दूसरे चमकते सितारों से ईर्ष्या होती रहती है। अतः आपने किसी प्रभावशाली व्यक्ति के विरुद्ध कुछ लिखा नहीं कि चहकते हुये ये लोग घेरों पकड़ों, अबकि बचने ना पाये, बड़ा तेज बनता है का शोर मचाते हुये ,कान भरने पहुंच जाते है उनके दरबार में,  जिसके विरुद्ध आपकी लेखनी चली हो । ऐसे ही पत्रकार अपने बड़े बैनर का भरपूर दुरुपयोग करते हैं। वे धन की चाहत में  एक कॉकस बना लेते है।   फिर तो ऐसे कौओं के बाजार में बेचारी कोयल कहां तक अपनी प्राणरक्षा करें , या तो रण छोड़ कर भागे या फिर लड़ मरे।  मित्रों पत्रकारिता बड़ी गंदी हो गयी है, जनपद स्तर पर। सो, बड़े बैनरों से जुड़े कतिपय स्थानीय पत्रकारों की क्रास चेकिंग उस संस्थान के बड़े अधिकारियों को करवाते रहना चाहिए। हालांकि ब्यूरोचीफ बदलते रहते हैं। परंतु  दफ्तर में खिलाड़ी और भी तो होते हैं। ( शशि)

क्रमशः