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Sunday 1 March 2020

झुठ्ठा... !

 झुठ्ठा... !


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           ( दृश्य -1)


    नये साहब ने आते ही ताबड़तोड़ छापेमारी कर जिले को हिला रखा था.. उनका एक पाँव दफ़्तर में तो दूसरा  फ़ील्ड में होता .. जिस भी विभाग में पहुँचते ,वहाँ के अफ़सर से लेकर स्टॉफ तक पसीना  पोंछते दिखते.. उपस्थिति पंजिका और भंडारगृह पर उनकी पैनी निगाहें थीं ..।


    जनाब ! ग्रामीण क्षेत्र में लगे हैंडपंपों की पाइप तक निकलवा बोरिंग की जाँच करवाने लगते..उनकी हनक की धमक अगले दिन अख़बारों की सुर्ख़ियाँ  होतीं..।


  वे फरियादियों  और मातहतों से धर्म-कर्म की बातें भी गज़ब की किया करते थे ..।


    उधर, नये हाकिम की ईमानदारी के किस्से सुनकर नेकराम ख़ुशी से फूला न  समा रहा था..।

   

 उसे पूरा विश्वास हो गया था कि उसके मुहल्ले में चल रही तेल,घी और मसाले की नकली फैक्ट्री का भंडाफोड़ ऐसे ही अफ़सर कर सकते हैं..।


     वैसे तो , सेठ दोखीराम के काले धंधे को जानते सभी थे ..लेकिन , क्या मज़ाल कि उसके  कारख़ाने की ओर भूल से किसी परिंदे ने भी पर मारा हो..। 

   उधर, नये साहब की इस धुँआधार छापेमारी के समाचार के मध्य नेकराम  रोज़ाना ही यह बाट जोहता  कि उनका पदार्पण उसके मुहल्ले में कब होगा ..।  अब तो उनको आये भी माहभर होने को था, पर उसे आश्चर्य इस बात पर था कि उसके इलाक़े  में न तो उनका खौफ़ दिख रहा है और न ही दोखीराम के काले क़ारोबार पर कोई आँच आ रही है ..। 

  वह समझ गया कि सेठ के जुगड़तंत्र ने उसके धंधे की भनक को नये अधिकारी को  नहीं लगने दिया है..और फिर एक दिन नेकराम ने हिम्मत जुटा कर बिल्ली के गले में घंटी बांधने की ठान ली..वह सीधे जा पहुँचा नये हाकिम के दफ़्तर..।


    अफ़सर  - " हाँ , तो बोलो क्या बात है ? "


   नेकराम -" साहब , सबके सामने न बोल पाऊँगा , इसमें लिखा है...। "

   उसने हाथ में ले रखे पर्ची की ओर संकेत किया..।


 " हूँ ..!  " 

    - अफ़सर उससे वह कागज़ ले बड़े ग़ौर से देखता है ..। उसकी आँखों में एक चमक- सी आ जाती है..। 



   " साब ! मेरा नाम गुप्त रहे..  ' जल में रह मगर से बैर' लेने की मेरी औक़ात नहीं ..।"


    -  हकलाते हुये नेकराम ने अपनी चिन्ता जाहिर की थी ..। 


" अरे भाई ! चिन्ता न कर.. कल मैं स्वयं आऊँगा..। " 

   - शाबाशी देते नये साहब ने उसकी पीठ थपथपाई थी..।


   -  साहब के ठोस आश्वासन और मुखमुद्रा पर  मुस्कान देख नेकराम को पूरा विश्वास हो गया था कि अब सेठ दोखीराम के बुरे दिन आने को है । अतः  उसने जोश में आकर इस कॉकस में सम्मिलित कई कनिष्ठ अधिकारियों के नाम वाला दूसरा चिट्ठा भी उन्हें सौंप दिया था..।  


  ( दृश्य- 2 )


     हाकिम की पूरी टीम को लिए आधा दर्जन गाड़ियाँ दनदनाती हुई अलसुबह ही फैक्ट्री में जा घुसी , छापेमारी से पूर्व किसी को भनक तक नहीं लग सकी थी..। 


   सेठ दोखीराम का चेहरा सफेद पड़ गया था..।  देर शाम तक मीडियावाले भी बाइट के लिए डटे रहे ..। ख़ासा मजमा लगा हुआ था मुहल्ले में..।


   तमाशाइयों में कोई कहता कि आज तो गया  यह सेठ काम से.. सुना है कि बड़ा कड़क अफ़सर है नया साहब  ..। सरकारी वेतन को छोड़ ऊपरी कुछ लेता नहीं..। 


   तो वहीं कुछ बुद्धिमान लोग मुस्कुराते हुये इनसे सवाल करते कि हाथी के खाने का दाँत देखा है क्या तुमने ? 


    छापेमारी टीम के प्रस्थान के पश्चात नेकराम रातभर इसी सोच में करवटें बदलता  रहा कि जरा देखा तो जाए कि सेठ के विरुद्ध पुलिस ने क्या मामला दर्ज किया है..।

     

             ( दृश्य-3)


        अगले दिन सुबह समाचार पत्रों को देखते ही नेकराम का मुख  मलिन पड़ जाता है..।


  " हे भगवान ! यह कैसे हो गया.. ?  नहीं - नहीं ऐसा नहीं हो सकता है.. !!"



- नेकराम बुदबुदाता है..।


   उसी नये अफ़सर के हवाले से छपी इस ख़बर 

 ' आल इज ओके ' के साथ उसे यह भी पढ़ने को मिला था कि किसी पड़ोसी ने द्वेष भावना से धर्मात्मा सेठ के विरुद्ध झूठी शिकायत की थी..।


    साथ ही  समाचार पत्रों में आगे यह भी लिखा हुआ था कि सेठजी का नागरिक अभिनंदन  ' भ्रष्टाचार मिटाओ ' संस्था के बैनर तले किया जाएगा.. जिस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्वयं नये साहब ही होंगे..और दोखीराम जी नये साल में अपनी फैक्ट्री की ओर से किये जाने वाले धर्मार्थ कार्यों जैसे निर्धन कन्याओं का विवाह , गरीब मेधावी छात्रों को आर्थिक मदद और मुहल्ले में स्थित मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए मोटी रक़म देने की घोषणा इसी मंच से करेंगे..।

    पासा उलटा पड़ा देख , नेकराम अज्ञात भय से सिहर उठा था ..।


    सप्ताह भर बाद  नेकराम पर दुष्कर्म का मामला दर्ज हो जाता है.. हालाँकि उसपर लगा आरोप  बिल्कुल झूठा था ..परंतु वह जेल चला जाता है.. बंदीगृह में विक्षिप्त- सा हो गया था  नेकराम.. जुगाड़तंत्र ने उसके स्वाभिमान को बड़े ही निर्दयता से कुचल दिया गया था.. ।


    यहाँ तक कि कोर्ट-कचहरी के खर्च और आरोप लगाने वाली महिला से सुलह- समझौता करने में उसका घर तक बिक जाता है..।


   घर खाली कर जब वह जा रहा होता है..तो मुहल्ले वाले तंज़ कसते है.. बड़ा तोप बन रहा था ससुरा..। 

   राम - राम ! ऐसे धर्मात्मा सेठ को फंसा रहा था..अब भुगते अपने करनी का फल..।

  

    मुहल्लेवासियों के मुख से ऐसे कठोर वचन सुन नेकराम की आँखें डबडबा गयी थीं..उसका हृदय यह कह चीत्कार कर उठा था कि उसने तो सबकी भलाई के लिए  ही इतना बड़ा खतरा मोल लिया .. और उसके साथ हुये इस अन्याय का प्रतिकार न सही, पर यह तिरस्कार क्यों कर रहे हैं ये सभी ..? 


..अपने ही मुहल्ले में पल भर ठहरना भी अब उसके लिए भारी पड़ रहा था..।


     वह समझ चुका था कि नये साहब की ईमानदारी पर उसका विश्वास ही झूठा था .. !


  अन्यथा यह तथाकथित सभ्य समाज उसे "  झुठ्ठा " क्यों कहता...?


       - व्याकुल पथिक