Followers

Wednesday 20 February 2019

प्रख्यात समालोचक डा0 नामवर सिंह की थी अभिलाषा

*****************************
       राजनीति में जमा कूड़ों को जलाने का काम करें साहित्यकार
*****************************
      आलोचना के शिखर पुरुष समालोचक डॉ नामवर सिंह के निधन से  प्रेमघन, मतवाला, आचार्य रामचंद्र शुक्ल तथा डॉ भवदेव पांडेय की नगरी भी शोक विह्वल हुई है । यहां के विद्वान साहित्यकारों एवं प्रबुद्ध जनों ने शोक सभा कर उन्हें श्रद्धांजलि  दी। जहां तक मेरा प्रश्न है , साहित्य जगत से प्रत्यक्ष रूप से अपना कोई वास्ता नहीं रहा। पत्रकारिता में आने के बाद समाचार संकलन के लिए कभी- कभी साहित्यकारों के बड़े कार्यक्रम में जाना मेरी विवशता ही थी, क्यों कि कवि सम्मेलन और साहित्यिक चर्चा में मुझे कोई अभिरुचि तब न थी। मुझे याद नहीं है कि नामवर सिंह के आगमन के पहले मैंने कभी ऐसे किसी कार्यक्रम में अपना पूरा समय दिया और ध्यान पूर्वक मुख्य वक्ता की बातें सुनी हो।

 
   नामवर सिंह 27 दिसंबर 2000 को उग्र जन्मशती के अवसर पर मिर्ज़ापुर आए थे। उन्होंने कार्यक्रम में जो उद्गार व्यक्त किये, मैं यहां उसका उल्लेख करना चाहता हूँ। डा0 सिंह तब कहा था कि छोटे-छोटे शहर और कस्बों जहां से हिंदी साहित्य बना है, हमें इन छोटे शहरों का साहित्यिक इतिहास लिखना है। हां , एक तरह का गजेटियर तैयार करना होगा एवं हो सके तो इस का आरंभ मिर्ज़ापुर से ही हो ,तो बहुत अच्छा है ।उन्होंने यहां की साहित्यिक क्षमता का जिक्र करते हुए तब कहा था कि गंगा की भांति ही हिंदी साहित्य की गंगा को भी काशी जाने से पूर्व मिर्ज़ापुर से होकर गुजरना पड़ता , यदि मिर्ज़ापुर ना होता तो काशी के साहित्य की गरिमा वैसी नहीं होती । लायंस स्कूल के बिरला प्रेक्षागृह में नामवर सिंह ने अपने प्रथम आगमन पर यह भी कहा था कि उग्र जी आग लगाना और कूड़ा जलाना दोनों ही जानते थे और अब भी अपनी जन्मशती पर वे मानो ऐसा ही संदेश दे रहे हैं । उन्होंने कहा था कि हम साहित्यकारों को भी राजनीति में जमा कूड़ों को जलाने का काम करना चाहिए । उन्होंने कहा था कि वह हिंदी साहित्य में खासकर अपने गद्य के लिए पहचाने जाते हैं और स्वयं उनको (नामवर सिंह) भी आलोचना की बारीक सोच उग्र जी से ही मिली थी।
       एक बड़ी बात नामवर सिंह ने तब और कही थी , वह यह कि ब्राह्मण विद्वेष में जलते हुए लोगों को वे उग्र जी कि वह पंक्ति सुनाना चाहेंगे,  जिसमें उसने स्वयं को शूद्र कहने में संकोच नहीं किया था, क्यों कि उनके विचारों से शूद्र ब्राह्मण का पूर्व रूप है।  ठीक वैसा ही जैसे मूर्ति का पूर्ण रूप अनगढ़ पत्थर होता है। जिसकी अनगढ़ता में विश्व विराट की मूर्तियों की संभावनाएं सुरक्षित रहती है, जो मूर्ति में नहीं होती।
    डा0 सिंह वर्ष  2001 और 2003 के बीच हिंदी गौरव डॉ भवदेव पांडेय के बुलावे पर दो बार यहाँ आये थें। आचार्य रामचंद्र शुक्ल , प्रेमघन, डॉ काशी प्रसाद जायसवाल ,पांडेय बेचन शर्मा "उग्र" , महादेव प्रसाद सेठ और बंग महिला आदि से जुड़ी इस साहित्यिक भूमि पर आ कर उन्हें प्रसंता हुई थी।
  स्व0 डा0 भवदेव पांडेय के पुत्र व साहित्यकार सलिल पांडेय ने बताया कि डॉ नामवर सिंह जब यहां आए तो उच्चस्तरीय साहित्यिक कार्यक्रमों में जी खोलकर सिर्फ सम्मिलित ही नहीं हुए बल्कि वाराणसी और मिर्जापुर के बीच साहित्यिक सेतु का निर्माण भी किया था । पहली बार डॉ नामवर सिंह  साहित्य एकेडमी द्वारा आयोजित साहित्यिक कार्यक्रम में डॉ भवदेव पांडेय के 'साहित्य के निर्माता पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' मोनोग्राफ के लोकार्पण के लिए आए थे । लायन्स स्कूल के खचाखच भरे कार्यक्रम में लगभग डेढ़ घण्टे के उद्बोधन से वे भारतेंदु मण्डल के नगर मिर्जापुर को साहित्य जगत के शीर्ष स्थान पर पहुंचा गए । अत्यंत सम्प्रेषणीय शैली में उनका उद्बोधन रहा । नई कविता एवं नई कहानी में आधुनिकता-बोध से डॉ नामवर सिंह ने अपने अभियान में इस जिले को भी सम्बद्ध किया । उनका वक्तव्य अत्यंत सहज ही नहीं बल्कि ठहाकों के साथ रहा । डॉ नामवर सिंह प्रगतिवादी चिंतन के थे लेकिन स्थानीयता को यहां उन्होंने पूरा सम्मान दिया।  वे मां विन्ध्यवासिनी धाम गए । मां विन्ध्यवासिनी का दर्शन भी किया तथा रत्नाकर होटल में आकर उन्होंने आगन्तुक रजिस्टर में अपने विचार भी लिखे । उन्हें दर्शन कराने में वर्तमान विधायक श्री रत्नाकर मिश्र  तीर्थ पुरोहित की भूमिका में थे । इसके बाद 2003 में डॉ सिंह पुनः डॉ भवदेव पांडेय की पुस्तक 'आचार्य रामचंद्र शुक्ल : आलोचना के नए मानदंड' का लोकार्पण लायन्स स्कूल में ही किया।  यहां वे भारतेंदु मण्डल के प्रमुख सदस्य प्रेमघन जी की तिवराने टोला स्थित कोठी, गऊघाट में महादेव प्रसाद सेठ 'मतवाला' के उस भवन को देखा जहां सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और 'उग्रजी' सम्पादन कार्य करते थे । वे नारघाट स्थित शहीद उद्यान भी गए । वहां क्रांतिकारियों को नमन किया तथा लाला लाजपत राय स्मारक पुस्तकालय के रजिस्टर पर विचार भी लिखे । डॉ नामवर के साथ काशी का साहित्यजगत का हुजूम भी था जिसमें उनके छोटे भाई श्री काशीनाथ सिंह, श्री गया सिंह, श्री चौथीराम यादव सहित दर्जनों लोग थे । दोनों बार डॉ नामवर सिंह लोकार्पण कार्यक्रम के बाद डॉ भवदेव पांडेय के तिवराने टोला स्थित आवास पर आए । घण्टों बैठे तथा डॉ पांडेय के अन्वेषी चिंतन को उल्लेखीय कहा ।

    अंतिम बार डॉ नामवर सिंह वर्ष 2008 में मिर्जापुर पारिवारिक दृष्टि से आए । उनके समधी श्री वाई पी सिंह उन दिनों बाणसागर परियोजना में सहायक अभियंता थे । उनके बुलाने पर सिंचाई डाक बंगले में आए । डॉ भवदेव पांडेय को भी डाक बंगले पर बुलाया।  उन्हें लेने वर्तमान समय में सिद्धार्थ नगर में अधिशासी अभियंता के पद पर तैनात श्री धर्मेंद्र कुमार सिंह आए तथा वाराणसी तथा मिर्जापुर की साहित्यिक धाराओं को डाक बंगले पर मिलाया । इस प्रकार त्रिकोणधाम के लिए विख्यात मिर्जापुर में डॉ नामवर सिंह की यह तीन यात्राएं महत्त्वपूर्ण रहीं । उनके निधन से दो आंखों से ही नहीं बल्कि चिंतन की तीसरी आँख से अश्रुधारा यहां भी बहती दिख रही है । डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान भी शोक विह्वल है ।वहीं एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन यहां शहीद उद्यान में ही किया गया ।इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार वृजदेव पांडेय ने  नामवर सिंह को इतिहास पुरुष बताते हुए कहा कि आलोचना के क्षेत्र में वे नये-नये सूत्र गढ़ते थे ।वे किसी भी पुस्तक को तत्कालीन सामाजिक परिवेश और मानवीय मूल्यों की कसौटी पर रखकर देखते थे । उन्होंने कहानी नई कहानी लिखकर नई कहानी के क्षेत्र में अविस्मरणीय कार्य किया । वे ऐसा मानते थे कि नई कहानी के जनक निर्मल वर्मा थे। निर्मल वर्मा की कहानी परिंदे को नई कहानी की प्रथम रचना उन्होंने माना। साहित्यकार भोलानाथ कुशवाहा ने उन्हें बेजोड़ समालोचक बताते हुये कहा कि वे जब तक रहे शीर्ष पर रहे।
  साहित्यकार गणेश गंभीर ने कहा कि उनके पास नामवर सिंह जी द्वारा दिया गया उग्र जी का मोनो ग्राफ है, जो उनके द्वारा सदिनांक हस्ताक्षरित है ।तथ्य का सत्यापन साहित्य अकादमी के निमंत्रण -पत्र से भी किया जा सकता है ।यह भी कि उन्होंने भी उग्र के नाटक महात्मा ईसा पर आलेख पाठ भी किया था ।इस कार्यक्रम में देश के कई साहित्यकार शामिल हुए थे ।
      डा0  नामवर सिंह को मैंने देखा था ,
सुना था और उनकी बातें अच्छी भी लगी थीं। अतः ब्लॉक जगत का सदस्य होने के लिहाज से, मैं उनकी अभिलाषाओं को साहित्य जगत को पुनः अवगत कराते हुए अपनी ओर से यह श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा हूं।