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Sunday 12 January 2020

तुम ऐसे क्यों हो

  जीवन की पाठशाला से
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नज़रों में न हो दुनिया तेरी
हौसले को गिराते क्यों हो

यादों के दीये जलाओ मगर
रोशनी से  मुंह छिपाते क्यों हो

 तेरी नज़्मों में अश्क हो गर
 ग़ैरों को ज़ख्म दिखाते क्यों हो

 इंसानों की नहीं ये बस्ती है
 मुर्दों  को जगाते क्यों हो

 तेरी क़िस्मत में मंज़िल नहीं
 दोस्ती को आजमाते क्यों हो

 है सफर में अभी मोड़ कई
 पथिक ! राह भुलाते क्यों हो

 वक्त के साथ यूँ बढ़ते चलो
 ग़म को प्यार जताते क्यों हो

जो न हुये थे कभी अपने
दिल उनपे  लुटाते क्यों हो

    - व्याकुल पथिक