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Tuesday 21 April 2020

मदद की गुहार

बिना राशनकार्ड कैसे भरेगा पेट 

    किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार..
इस वैश्विक महामारी में शासन-प्रशासन और 
 आमजन सभी की कुछ ऐसी ही मंशा है और होना भी चाहिए। वह मनुष्य ही क्या जिसके हृदय में ऐसी विपत्ति में भी संवेदना न जगे। वह मानव ही क्या जो भूख से संघर्ष कर रहे लोगों का किसी प्रकार से सहयोग नहीं कर सके। धन से न सही, तो वाणी अथवा लेखनी से भी हम ऐसे असहाय लोगों के लिए कुछ कर सकते हैं। इन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ किस प्रकार से मिले, यह मार्गदर्शन भी इनके लिए किसी संजीवनी से कम नही है ? लेकिन , इसके लिए सियासी व्यापार से ऊपर उठकर जनप्रतिनिधियों को पहल करनी होगी।
      विडंबना यह है कि अभी तक लंचपैकेट पैकेट बाँटने अथवा भोजन करवाने के अतिरिक्त अन्य कोई ठोस प्रयास किसी ने नहीं किया है। परंतु इससे न तो ऐसे वर्ग के स्वाभिमान की रक्षा होगी ,न ही उसकी क्षुधा तृप्त होगी। आप स्वयं विचार करें कि एक वक़्त के लंच पैकेट से क्या होगा ?
      अब चलते हैं सरकारी योजनाओं की ओर, क्यों कि लॉकडाउन के दौरान कोई भी भूखा न रहे, इसके लिए उत्तरप्रदेश सरकार ने मुफ़्त अनाज योजना शुरू की है। जिसके अन्तर्गत इसी महीने की 15 तारीख़ से राशनकार्ड पर प्रति यूनिट पाँच किलोग्राम चावल निःशुल्क दिया जा रहा है। मानों यह ग़रीबों के लिए किसी दुर्लभ निधि से कम नहीं है। 
    सरकार ने कहा है कि किसी को भूखे रहने नहीं दिया जाएगा,किन्तु जिनके पास राशनकार्ड नहीं है ,उनका क्या होगा ? यदि उसे इस मुफ़्त चावल योजना का लाभ तत्काल नहीं मिलेगा,तो क्या वह भूखे नहीं रहेगा ? भूख क्या राशनकार्ड वालों को पहचानता है ? ऐसे व्यक्तियों के मन को खंगालने की कोशिश यदि जनप्रतिनिधि करते, तो आज सरकारी अनाज के लिए वे यूँ न भटकते, किन्तु इन्हें ढांढ़स देने वाला कोई नहीं है।  
     शोर तो यह भी मचा है कि जिनके पास राशनकार्ड नहीं है, सरकार उन्हें भी निःशुल्क चावल देगी। पता नहीं इसमें कितनी सच्चाई है। जिला प्रशासन की ओर से कोई आधिकारिक जानकारी इस संदर्भ में कोटेदारों को प्राप्त नहीं है। 
    अपने मीरजापुर जनपद में इन दिनों क्या हो रहा है।यही न कि जिन असहाय लोगों के पास राशनकार्ड नहीं है ,वे आधार कार्ड लेकर भटक रहे हैं। इस उम्मीद से कि शायद उन्हें भी मुफ़्त अनाज का लाभ मिल जाए अथवा वे इस ग़लतफ़हमी के शिकार हैं कि आधार कार्ड दिखला देने से उन्हें निःशुल्क चावल मिल जाएगा?
  ग़रीबी और बेकसी की ज़िंदा तस्वीर बने ऐसे मेहनतकश लोगों के समूह से कोटेदार परेशान हैं, ज़िम्मेदार अफ़सर पहली बुझा रहे हैं और जनप्रतिनिधि मौन हैं। किसी भी रहनुमा के पास इतनी भी फुर्सत नहीं है कि वे ऐसे ज़रूरतमंद लोगों के संदर्भ में शासन- प्रशासन से वार्ता करें। यदि राशनकार्ड नहीं है, तो क्या इन्हें भूखे छोड़ दिया जाए ? 

    मैं जिस होटल में रहता हूँ , वहाँ काम करने वाले युवक मुकेश अपने मुहल्ले की एक विधवा स्त्री और एक पुरूष को साथ ले गत मंगलवार को मेरे पास आया। महिला के चार बच्चे हैं।इनमें से एक दिव्यांग है। जीविकोपार्जन के लिए वह कुछ घरों में मज़दूरी करती है। किराये के मकान में रह कर पाँच लोगों का पेट पालना आसान तो नहीं होता न ? उसके पास जो राशनकार्ड से संबंधित कागज़ात  हैं ,वह किसी कारण मान्य नहीं है। अब क्या करे यह लाचार महिला ? वार्ड के सभासद से लेकर उन तथाकथित समाजसेवियों और राजनेताओं ने इतना भी पहल इस महिला के लिए नहीं किया कि उसके राशनकार्ड की वैधता में जो भी औपचारिकता शेष है, उसको पूर्ण कराने लिए जिलापूर्ति विभाग से वार्ता करतें । वे फ़िर क्या ख़ाक समाजसेवा कर रहे हैं ? कब होगा इन्हें अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान ? 
      वहीं, दूसरे निर्धन व्यक्ति के पास राशनकार्ड नहीं था,वह आधार कार्ड लेकर भटक रहा है। लेकिन,कोटेदार क्या करें ? बिना किसी सरकारी आदेश के वह चावल कैसे दे सकता है ?
  तो फ़िर क्या ऐसे व्यक्तियों को सरकार के विशाल अन्नभंडार से कोई लाभ नहीं मिलेगा ? क्या ऐसी विपत्ति में देश के एक नागरिक के रूप में सरकारी गल्ले पर इन दोनों का अधिकार नहीं ? यह  कैसी विडंबना है। ऐसे ही राशनकार्ड विहीन कुछ लोग आपूर्ति विभाग गये ,तो वहाँ यह कह उन्हें वापस कर दिया गया कि यह आपदा विभाग का मामला है। होटल स्वामी चंद्रांशु गोयल जो नगर विधायक के प्रतिनिधि भी हैं, ने इस संदर्भ में नगर मजिस्ट्रेट से वार्ता की' जिसपर उन्होंने बताया कि इनके लिए आपदा विभाग से ऐसे कोई सुविधा नहीं है। हाँ, ऐसे निर्धन वर्ग के लोग शहरी क्षेत्र में नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी कार्यालय और ग्रामीण क्षेत्रों में उप जिलाधिकारी के दफ़्तर पर जाकर फ़ार्म भर दें। उन्हें एक हजार रुपये मिलेगा। इस जानकारी पर श्री गोयल ने नगरपालिका अध्यक्ष मनोज जायसवाल से वार्ता की , तो उन्होंने बताया कि 16 अप्रैल तक सभी 34 सौ ऐसे फ़ार्म भरे जा चुके हैं।  अब क्या करे ये दोनों ? क्या भूखे रहे या दूसरों की दया पर निर्भर रहे ? 
   है कोई ऐसी सरकारी मदद जिससे इन्हें तत्काल ससम्मान अन्न मिले ?  इस यक्ष प्रश्न पर आप सभी विचार करें। हर जनप्रतिनिधि इस पर चिंतन करे कि यदि राशनकार्ड नहीं है, तो कोई ज़रूरतमंद क्या करें ?  क्या प्रशासन, पुलिस और समाजसेवियों के द्वारा कभी-कभार प्राप्त एक लंचपैकेट से इनका काम चलेगा ? क्या वे लोग जो अकर्मण्य और कायर नहीं हैं, इस लॉकडाउन में भिक्षुकों सा व्यवहार करें ? क्या इनकी इस समस्या का कोई समाधान नहीं ?
कुछ तो बोलें ज़नाब ! आप भी ?

      इन दिनों ऐसी कोई व्यवस्था होनी चाहिए कि जो भी व्यक्ति अपना आधार कार्ड लेकर जाए, उसे उसी वार्ड के कोटेदार से तत्काल पाँच किलोग्राम चावल निःशुल्क मिल जाए। कोरोना के साथ भूख से भी तो जंग इन्हें लड़ना है। 

       फ़िलहाल, मैं इन दोनों के लिए इतना ही कर सका कि एक समाजसेवी को इनकी समस्या से अवगत करवा दिया। उन्होंने चावल, दाल और नमक का पैकेट लेकर स्वयं मेरे पास आए। वे नगर के एक प्रमुख अंग्रेज़ी माध्यम विद्यालय के स्वामी हैं। और अपने सेवाकार्य के प्रचार- प्रसार से दूर रह कर ऐसे संकट के समय में अनेकों निराश्रित लोगों की सहायता कर रहे हैं। ऐसे सच्चे जनसेवकों को मेरा नमन । अन्यथा मेरे जैसे एक साधारण पत्रकार में इससे अधिक क्या सामर्थ्य, किन्तु हृदय व्यथित है कि हजारों लोग जिनके पास राशनकार्ड नहीं है, उनपर और उनके मासूम बच्चों पर इन दिनों क्या गुजर रहा होगा ? निस्सहाय हो ग़ैरों के समक्ष वे हाथ क्यों फैला रहे हैं? जिससे उनका स्वाभिमान आहत हो। इस तरह दूसरों पर आश्रित होना भौतिक ही नहीं मानसिक पराधीनता भी है।
  तो क्या जीना इसी का नाम है कि वे यह कह ईश्वर को पुकारे -
   जाएँ तो जाएँ कहाँ 
 समझेगा, कौन यहाँ, दर्द भरे दिल की ज़ुबाँ..। 
    
  है कोई ऐसा सच्चा कर्मयोगी ,जो इनकी इस समस्या का निराकरण करे ? लॉकडाउन में इनके जीवन पर छाए कष्टों का अनुभव करे।

            -व्याकुल पथिक