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Thursday 12 March 2020

भाईचारा

   
                     भाईचारा

    शहर का वातावरण बिल्कुल सामान्य था। सभी अपने दिनचर्या के अनुरूप कार्यों में लगे हुये थे। यहाँ के शांतिप्रिय लोगों के आपसी भाईचारे की सराहना पूरे प्रदेश में थी। बाहरी लोग इस साँझा विरासत को देख आश्चर्यचकित हो कहते थे - "वाह भाई! बहुत खूब ,आपके शहर की इस गंगा- जमुनी संस्कृति को सलाम ।"
  और उधर नेताजी इसे लेकर ख़ासे परेशान थे। वे नहीं समझ पा रहे थे कि इतने सुलझे हुये नगरवासियों के मध्य कैसे फूट डाली जाए । उन्हें अपनी राजनीति की रोटी जो सेकनींं थी । अब तो आम चुनाव की आहट भी सुनाई पड़ने लगी थी और हाल यहाँ यह था कि चुनावी लहर नापने वाली मशीन का पारा तनिक भी ऊपर नहीं खिसक रहा था। 
      सतारूढ़ दल के राजनेता काम बोलता है का जुमला उछाले हुये थे,तो विपक्ष ने इन्हीं कथित विकास कार्यों पर घेराबंदी कर रखी थी, पर वोटर ख़ामोश थे, क्योंकि जनता को किसी ने भी फीलगुड का एहसास नहीं करवाया था । अतः दोनों ही तरफ के राजनेता स्वार्थ भरे प्रेम का गंगाजल छलका कर हार मान चुके थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि पिटे हुये इन पासों से चुनाव में जीत कैसे हासिल करे। 
     मंत्रणा कक्ष में हितैषियों संग नेताजी सिर झुकाए बैठे हुये थे। और तभी एक कुटिल मुस्कान उनके चेहरे पर आती है। जिसके साथ ही सभा विसर्जित हो जाती है। 

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      दो दिन पश्चात एक बड़े धार्मिक समारोह में जुलूस के साथ एक मज़हब के लोग दूसरे संप्रदाय बाहुल्य क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। अचानक  धार्मिक नारा लगाने वालों के स्वर की तल्खी बढ़ जाती है। कुछ ही देर में पत्थरबाजी और आगजनी भी होने लगती है। जुलूस संग धार्मिक दुर्व्यवहार की ख़बर तेजी से पूरे शहर में फैलती है।  युवाओं का एक बड़ा तबका दोनों तरफ से मोर्चा संभालने के लिए सड़कों पर आ डटता है। आपसी भाईचारे पर सीना फुलाने वाले लोग अब हिंदू और मुसलमान में बंटे हुये होते है । जिधर देखो भय की परछाई आंखों में डोल रही थी । दम तोड़ते छटपटाते जिस्मों को देख मानवता चीत्कार कर उठी थी। स्थिति नियंत्रण के लिए कई स्थानों पर उपद्रवियों संग पुलिस का संघर्ष जारी था।

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   और उधर ,नगर के उस प्रसिद्ध कॉफी-हाउस में नेताजी टीवी स्क्रीन पर नज़र टिकाए चुस्कियाँ ले  रहे थे। अब उनका काम सचमुच बोल रहा था..। 
      तभी विपक्षी दल के प्रत्याशी की भी उसी कॉफी-हाउस में एंट्री होती है। जैसे ही दिनों की निगाहें मिली हैं, उनमें आक्रोश के स्थान पर अद्भुत आत्मीयता दिखती है। "भाई साहब " और "भाई जान" के अभिवादन के साथ दोनों एक ही मेज पर आमने-सामने बैठ  ठहाका लगा रहे होते हैं। वे कहते हैं  - " जनाब ! इस बेवकूफ़ जनता के लिए हम-आप क्यों अपने रिश्ते खराब करे। इलेक्शन कोई जीते ,पर यह कॉफी हाउस वाला हमारा भाईचारा कायम रहना चाहिए ..!" 
     पर जनता इन दोनों प्रतिद्वंद्वी नेताओं के ख़ामोश भाईचारे से कल भी अंजान थी और आज भी है..!!
        
             -व्याकुल पथिक

चित्रः गूगल से साभार