आटे की थैली ग़रीब के हाथों में देकर सेल्फियाँ बनाने वाले पहले इस वीडियो पर ग़ौर करें, फ़िर मैं अपनी अपनी बात शुरू करता हूँ ...
हमें जला क्यों मुसकाते
*******************स्वास्थ्य संबंधित कारणों से भोजन बनाने की इच्छा नहीं हुई। बत्ती बुझा मैं कमरे में लेटा हुआ था कि तभी नौ बजते ही घंटा-घड़ियाल, शंखनाद, थाली और पटाख़ों की आवाज़ आने लगी। जिसे सुन मैंने जैसे ही कमरे की खिड़की खोली तो देखा कि दीपावली की तरह ही आसपास के घरों के बारजे पर असंख्य दीपक झिलमिला रहे थे। ऐसे दृश्य सुखद तब लगते हैं, जब उत्सव का वातावरण हो। लेकिन जब एक बड़ा वर्ग भूख से संघर्ष कर रहा हो, तो तेल का यह अपव्यय देख मेरी आँखें नम हो गयीं, बचपन के उन दिनों को याद कर। जब चोखा में डालने के लिए भी घर में आधा चम्मच सरसो का तेल नहीं हुआ करता था।
ख़ैर यह विचित्र रंगमंच है। जिसका रचयिता ही क्षीरसागर में रहता हो उसे क्या पता कि उसकी अनेक संतानें क्षीर बिन छटपटा रही हैं। और उसका दुग्धाभिषेक हो रहा है।
कविवर हरिवंश राय बच्चन जी की कालजयी कविता है -
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है..|
--
परंतु इस रात मानों जल रहे दीपक यह शिकायत कर रहे हो...
प्रकाश नहीं , निज स्वार्थ कहो
मनुज! हमें जला क्यों मुसकाते ?
दे दो यह तेल किसी ग़रीब को
यूँ बलिदान हमारा व्यर्थ न हो।
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हो सकता है, मेरे इस विचार से अनेक लोग असहमत हो, किंतु इस संकटकाल में मुझ जैसे निम्न-मध्यवर्गीय लोग, इस समाज में जिनका एक बड़ा वर्ग है ,जो मज़दूर की श्रेणी से तनिक ऊपर हैं, किन्तु उनसे कहीं अधिक मज़बूर हैं, उनकी आँखों में अनेक प्रश्न टंगे दिखे। ऐसे कितनों के घर में सरसो तेल की बोतल खाली हो चुकी होगी, जिस तरह से उनका जेब खाली हो गया है और सड़कों पर निराश्रित विचरण करने वाले पशुओं की स्थिति भूख से अत्यंत चिंताजनक है। बिल्कुल अधमरे से हैं। कुछ देर पूर्व मैंने इसी शाम इमरती रोड पर बूढ़े सांड़ को एक घर के चबूतरे पर पड़ी उस सूखी रोटी की ओर लपकते देखा था, जब ऐसा करने के प्रयास में उसकी टाँगें लड़खड़ा गयीं और वह गिर पड़ा था। फ़िर यह कैसा उत्सव है ? हम इतने ढेर सारे दीपक जला और पटाख़े फोड़ क्या जताना चाहते हैं।
वैसे, संक्रमण काल में दीप जलाने से हानि-कारक विषाणु जलकर भस्म होते हैं । जैसा कि हमसभी जानते हैं कि दीवाली और होली का अवसर ऋतु परिवर्तन का होता है । इसमें विषाणु सक्रिय होते हैं । इसलिए दीवाली पर दीपक तथा होली पर होलिका जलाने का विधान है। दीपक ऊर्जा का प्रतीक है। सूर्य का प्रतिनिधि है। फ़िर भी यह संदेश स्पष्ट होता कि एक से अधिक दीपक न जलाना,नहीं तो इस विपत्ति में सरसो तेल का अपव्यय होगा। तब सही मायने में यह उत्सव पर्व पर जलने वाले दीप न होकर हम भारतवासियों की आपसी एकता और आत्मबल को प्रतिबिंबित करता।
परंतु अपनी ढपली, अपना राग। यह भी कैसा दौर है कि हर कोई समाजसेवी बना खड़ा है। जिसका फ़ोटो छपा वह खुश , जिसका न छपा वह नाखुश । अख़बारों की अपनी सीमा है, पर यहाँ दानवीर कर्ण एक नहीं अनेक हैं। जो असली हैं, वे पर्दे के पीछे हैं , जिन्हें दिखावा पसंद है। वे सोशल मीडिया के खिलाड़ी हैं। परंतु निम्न मध्य वर्ग के तमाम ऐसे ज़रूरतमंद लोग हैं। जिन तक किसी दानदाता की नज़र नहीं पहुँच रही है। अप्रैल की पहली तारीख़ जिनके लिए अप्रैल फूल सा ही रहा । जेब खाली पर मीडिया में समाजसेवियों का फ़ोटो छपा जो मिला। अब ऐसे स्वाभिमानी लोग भी जब याचक बन उनके सामने आये , उनका दान ग्रहण करते हुये फ़ोटो खिंचवाने के लिए घरों से बाहर सड़कों पर हाथ फैलाएँ खड़ा हो , तभी उनकी कोई सुधि लेगा। अब तो बस ऐसा ही लग रहा। अरे ! समाजसेवियों अपने पड़ोस में देखों , तुम भी कइयों को जानते होगे , इनमें से कोई किसी प्राइवेट स्कूल में अध्यापक होगा। पाँच हजार रुपया ही उसका वेतन होगा और कोई किसी किराना दुकान का नौकर होगा , वह भी इतना ही पाता होगा। कुछ गल्ला और सब्जी वहाँ भी दे दो मित्र , पर जानता हूँ यह भी कि तुम ऐसा नहीं करोगे , क्यों कि वहाँ तुम्हारे दानवीरता का प्रदर्शन नहीं होगा। तुम्हारे सोशल मीडिया का व्यापार नहीं होगा।
क्यों न दो किलो आटा और आधा- आधा किलो चावल - दाल साथ में आलू और जिस घर में ईंधन की व्यवस्था नहीं हो , वहाँ कुछ लकड़ी पहुँचा दी जाए ? यह सहायता पैकेट किसी निम्न -मध्यवर्गीय परिवार के लिए प्यासे को जल पिलाने जैसा पुण्यदायी होगा। परंतु ऐसा करने की कितनों ने सोचा है। कुछ कर भी रहे हैं, परंतु वे उसका प्रदर्शन नहीं करते हैं।मीडिया में दिखावा उन्हें पसंद नहीं हैं। यह तो मीडिया का काम है कि सच्चे दानवीरों को वह स्वयं ढ़ूंढे। भोजन का पैकेट तो उन लोगों के लिए है , जिनके पास कोई साधन नहीं है। मसलन, रेलवे स्टेशन , मंदिरों पर भीख मांगने वालों के लिए, मजदूरों के लिए, उन राहगीरों के लिए जो लॉकडाउन में फंसे हैं। परंतु जिनका अपना घर है। उन्हें यह लंच पैकेट नहीं , अनाज की थैली मिलनी चाहिए। प्रशासन-पुलिस जो भी सहायता कार्य कर रहा है, वह सराहनीय है, परंतु जो समर्थ हैं, उन्हें अपने अड़ोस- पड़ोस दृष्टि डालनी चाहिए। एक -दो निम्न मध्यवर्गीय लोगों के घर भी वे अन्नदान कर आते हैं, तो यह गुप्त दान उनके लिए सौ लंच पैकेट बांटने से अधिक पुण्यदायी होगा। वैसे भी कहा गया है कि दान इस प्रकार देना चाहिए कि दाहिना हाथ दे तो बायें हाथ को पता भी न चले। इसे ही गुप्तदान कहा गया है। हम सें बढ़कर कौन है, जनता तुम हमें पहचान लो, गर विश्वास ना हो तो फ़ोटो देख कर जान लो। जिस भय से निम्न- मध्य वर्ग के लोग हाथ नहीं फैला रहे हैं कि कहीं कोई उनका भी वीडियो नहीं बना ले। उनका जो स्वाभिमान पर्दे के पीछे सुरक्षित है, ये उसका तमाशा न बना ले।
सरकार कहती है कि मुफ़्त राशन देगी। पर कितना, एक यूनिट पर पाँच किलोग्राम चावल मात्र। इससे अधिक मुफ़्त गल्ला लेने के लिए निम्न- मध्यवर्गीय लोग शासन द्वारा तय शर्त पूरा नहीं कर सकते हैं और न ही श्रमिक वर्ग की तरह उन्हें सरकारी एक हजार रूपये का लाभ मिलेगा।
मित्रों ! सरकार को ऐसी कोई व्यवस्था देनी चाहिए ,जिससे सभी राशन कार्डधारकों के लिए प्रति यूनिट के हिसाब से गल्ले का ऐसा एक मुफ़्त पैकेट हो। जिसमें गेहूँ/ आटा , चावल और दाल के साथ ही सरसो तेल की एक छोटी बोतल भी हो।
अब जबकि इनके परिवार की आर्थिक स्थिति इस लॉकडाउन में पूरी तरह से डाँवाडोल है। यदि आप और हम इस वर्ग के दर्द को पहचान नहीं रहे है, तो ऐसी समाजसेवा और ऐसे उत्सव मनाने का अधिकार हमें किसने दिया है ?
फ़ना निज़ामी कानपुर के शब्दों में मैं तो इतना कहना चाहता हूँ-
अंधेरों को निकाला जा रहा है
मगर घर से उजाला जा रहा है।
- व्याकुल पथिक
स्थिति दिन-प्रतिदिन और भयावह होती जा रही है शशि जी और ऐसे ही यदि लॉकडाउन जारी रहा तो हमारे देश में महामारी से ज्यादा भूख और बेरोजगारी इन्सानों की जान ले लेगी। निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की मानसिक प्रताड़ना दिन प्रतिदिन बढती जा रही है किन्तु एक आशा है कि 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन समाप्त हो जायेगा । यदि ये लॉकडाउन बढ़ गया तो स्थिति और भी विकट रूप धारण कर लेगी।
ReplyDeleteजी , यदि दिखावा ही करना है, तो जितनी सामग्री दान- सहयोग में दे रहे हो, उसका वीडियो बना ले, परंतु किसी को लंच पैकेट थमाने की फ़ोटोग्राफ़ी न हो तो यह अधिक बेहतर होगा ।
ReplyDeleteवैसे जहाँ तक जानकारी मिल रही है लॉकडाउन और बढ़ेगा।
प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार प्रवीण भैया।
दिल निकाल कर रख दिया आपने शशि जी. एक एक बात सही है, मार्मिक है और स्थित भयावह है. लोग दिखावा करने से बाज नहीं आ रहे हैं. बस किसी तरह सोशल मीडिया वे हीरो बनकर उभरना चाहते हैं कि बस किसी तरह से किसी की तारीफ मिल जाए .
ReplyDeleteजी मीडिया में हीरो बनने वाले, अपनी नेकी खो रहे हैं। उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आपका आभार , प्रणाम।
Deleteप्रतिष्ठित पटल पर स्थान देने के लिए आपका अत्यंत आभार।
ReplyDeleteसटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteजी आभार
Deleteसटीक
ReplyDeleteआपका अत्यंत आभार भाई साहब।
Deleteजी बिल्कुल प्रेरणादायक प्रतिक्रिया है आपकी, अब जबकि ऐसा लग रहा है कि लॉकडाउन की अवधि बढ़ सकती है, तो इस वर्ग को कैसे सम्मानजनक राहत सामग्री पहुँचायी जाए, इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteआपका अत्यंत आभार मेरे लेख में निहित बातों के समर्थन एवं चर्चा को विस्तार देने के लिए🙏
शशि भाई , इन दिनों कुछ ज्यादा ही व्यस्त हूं,उन कारणों पर गौर
ReplyDeleteकर रहा हूं कि यह दुखद स्थिति
समाप्त हो सके ,इसी लिए आप की
एकाध पोस्ट नहीं देख पाया।
लोग अनाप शनाप तरीकों से
पैसा बना लेते हैं, ध्यान रहे कमाने
की बात नहीं कर रहा हूं,तो उनको
लगता है थोड़ा नाम भी कमा लिया
जाए ,प्रचार भी मिल जाए,सभा
सोसायटी में ऊंची कुर्सी प्राप्त हो
सके।
भर्तृहरि ने कहा था,
yasyasti वित्तम स नर: कुलीन:,
स पंडित: स श्रुति वान गुनग्य:,
सैव वक्ता स च दर्शनीय:,
सर्वे गुणा: कांच नम आश्रयंती।
यह व्यंग्य है, संस्कृत में हास्य रस तो है व्यंग्य के तौर पर शून्य है,
यह व्यंग्य है,
सर्वे गुणा: कहो या गुनाह कहो
एक ही बात है।देश इतना साधन
संपन्न है कि एक परिवार भूखे पे ट
नहीं सो सकता, एक बंदा लाइलाज
दम नहीं तोड़ सकता ,एक बच्चा
अशिक्षित नहीं रह सकता, एक प्रतिभा अंधेरे में नहीं खो सकती,
पर हम एक ऐसे दौर में हैं जहां
भूख आंखों में उ त र आई है,
दलाल तंत्र योजनाओं का लाभ
हड़प ता है और कुछ दान पुण्य
कर के दानवीर कहलाने का सुख
प्राप्त कर लेता है।
वास्तविक दानी नुमाइश नहीं करते।हम आप भी आंखें फोड
कर समाज को कुछ दे रहे हैं
और ना तो आवास वाले हैं,
ना ही सरकार से किसी तरह का
अनुग्रह प्राप्त करने की सोचते हैं,
हमारे कुछ भाई बहुत कुछ प्राप्त
कर लेते हैं,आप उनकी निगाह में
हंसी के पात्र हो जाओगे।
ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे दे तो यह
देश अपने पौरुष, अपनी मेधा,
अपनी क्षमता से अपने साथ साथ
आधी दुनिया का पेट भर सकता है।
- अधिदर्शक चतुर्वेदी , साहित्यकार
बहुत ही सटीक है
ReplyDeleteआपका आभार ।
Deleteशशि भाई,पूरी कोशिश करूंगा कि अपना मनुष्य धर्म निभा सकूँ. शेष राजनीतिक तमाशों पर कुछ नहीं कहना. आप संकेत में सब कह गये. पर स्थिति चिंताजनक है. महामारी तो खतरा है. भूख की बीमारी तो जान लेने पर आमादा है.एक हिस्सा ऐसा भी है. जिसे इस संकट की घड़ी में भी गिद्ध कर्म ही उचित जान पड़ता है. पर ताली-थाली,दिया-बाती एकदम उल्लास के साथ करता है. बस थोड़ी मिठाई की व्यवस्था भी हो जाती तो दीवाली पूरी हो जाती.आखिर अपनी निष्ठा जो साबित करनी थी.गरीब की किसे पड़ी है.
ReplyDeleteउचित कहा आपने सलीम भाई,
ReplyDeleteराजनीति एवं स्वार्थ से ऊपर जो इस संकटकाल में भी न उठ सका वह मानव कहलाने योग्य नहीं है।
सही समस्यायों को टटोलती रचना। इस समय समाज के सभी तबकों को हाथ बताने के लिए तत्पर होना चाहिए और हो भी रहे हैं लोग। लोग किरायेदारों से किराया नहीं ले रहे हैं। काम वाली बासियों को पूरे पसीसे दे रहे है। ट्यूशन टीचर को भो पैसे दे रहे हैं। लेकिन यह काम बड़े पैमाने पर होना चाहिए।
ReplyDeleteजी बिल्कुल,
Deleteसभी को उदारता का परिचय देना ही चाहिए, यही मानवीयता है। दानदाता और याचक के रूप में एक दूसरे को प्रस्तुत करने यदि हम बचेंगे, तभी हमारा राहत कार्य सफल होगा।
प्रतिक्रिया के लिए अत्यंत आभार।
🙏
अति सुंदर सर जी 🙏 🌹
ReplyDeleteएक ब्लॉगर के रुप में आपका स्वागत और आभार।
Delete[08/04, 08:06] अजीत श्रीवास्तव एडवोकेट: बहुत शानदार बड़े भाई समाज को आइना दिखाता है आपका पोस्ट।
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
[08/04, 08:06] अजीत श्रीवास्तव एडवोकेट: एक है दान करना, दूसरा है पुण्य करना। दान से भी पुण्य का ज्यादा महत्त्व है। पुण्य कर्म निस्वार्थ सेवाभाव का कर्म है। पुण्य कर्म दिखावा नहीं होता है लेकिन दिल से होता है। दान दिखावा भी होता है, दिल से भी होता है। पुण्य कर्म अर्थात् आवश्यकता के समय किसी आत्मा के सहयोगी बनना अर्थात् काम में आना।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमैंने जब आपके विचारों और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में हो रही मोदी जी की आलोचना के बारे में बताया तो महानुभाव ने कहा--- मिश्र जी जरूर आप किसी देशद्रोही ग्रुप/ प्रधानमन्त्री द्रोही ग्रुप से जुड़े हैं।मैंने तो आदरणीय को समुचित उत्तर दिया,अभी तक जबाब नहीं दे पाए हैं, किन्तु शशि जी स्वस्थ लोकतन्त्र में आलोचना को द्रोह समझने की जो दुष्प्रवृत्ति वर्तमान सत्ताधीशों के द्वारा विकसित की जा रही है, वह देश के भविष्य के लिए अत्यन्त भयावह है।ब्रह्माकुमारी में हम लोगों को बताया गया है कि 1936 से 2036 के बीच सम्पूर्ण विश्व महा परिवर्तन से बदल जाएगा। विश्व के अन्य हिस्सों में परमाणु युद्ध ,वैश्विक महामारी जैसी विभीषिका और भारत में civil war और प्राकृतिक आपदाओं से भयंकर उत्पात होगा।
ReplyDelete- प्रदीप मिश्र,विन्ध्याचल
शब्दो को पिरोकर उनसे तीर बनाकर आपने ऐसा बाण चलाया की छुटभैये दान बीरो का दम्भ ही नष्ट हो गया , सोशल मीडिया के कारण हर ब्यक्ति पत्रकार हो गया है परंतु शब्दो की गरिमा नही सिख पाए लोग ,स्वार्थ ने लोगो की मति को भरम में डाल रखा है क्यो की प्रसिद्धि का नशा अफीम के नशे की तरह होता है डोज बढ़ता ही जाता है ।
ReplyDelete- अखिलेश मिश्र, पत्रकार।
यथार्थवादी रचना, यह समय है कि सभी के दुख साझा किये जाये बिना किसी दिखावे के। ज्योत्सना मिश्रा
ReplyDeleteJi bahi sb, bahut sahi. Bejubaan Janwaron ko to paani ke bhi laale pad gaye hain shahari kshetron me.🙏🏻🌹 वरिष्ठ अधिकारी तिवारी जी की प्रतिक्रिया
बहुत ही सुन्दर भईया शशि जी
- महंत संकटमोचन मंदिर मीरजापुर
बड़ी विचित्र परिस्थति है, किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति है ।
आपने जो लिखा है, वेदना है। सच्चाई है। दान की प्रवृति का विवेचन है।दान के स्वभाव के अनुसार दानवीर सदैव पर्दे के पीछे रहता है और जो पैकेट देकर सेल्फी ले रहे हैं या तो वे पर्दे के पीछे रहने वालों के प्रतिनिधि है या दान प्रवृत्ति से अज्ञान है। दान का स्थाई भाव कभी नहीं बदलता। हां, कुछ संचारी भाव विचलित अवश्य करते हैं लेकिन अन्ततः उचित परिणाम नहीं दे पाते हैं। इनका विरोध भी होता है जैसा कि हो भी रहा है। पहली बात गरीब और असहाय में अन्तर है। गरीब वो जिसके पास सब कुछ है लेकिन वह उसकी उपयोगिता नहीं करता जबकि असहाय वह है जिसको आवश्यकता होता है लेकिन कतिपय कारणों से कार्य सम्पन्न नहीं कर पाता और उसकी आवश्यकता बनी रहती है।
ReplyDeleteशशि भाई, गरीब थैला लेने वाला नहीं है,क्योंकि गरीबी का सम्बन्ध दिल से होता है। हाँ, वह असहाय जरूर है। और दाता का स्थान सदैव ऊंचा होता है। जिसके पास जो नहीं होता, वह वहीं चाहता है। सेल्फी सम्मान की चाह में वहीं लेते हैं जिसके पास उसकी कमी होती है। पैकेज लेने वाला उन्हें वह दिला देता है और उसे पैकेट मिल जाती है। यह तो एक व्यापार है जिसको आपने दूसरे नजरिए से देख लिया है। जिसके वजह से भौतिक सम्मान मिला, वह भी दाता है। आवश्यकताओं का अदान प्रदान को दान कैसे कहे जबकि इसकी परिभाषा ही कुछ इतर है।
हरिकिशन अग्रहरि प्रवक्ता
शशि भाई आपका लेख---हमें जला क्यों मुसकाते हो--पढा, चिंतन अत्यंत हृदय ग्राही मार्मिक रहा, इसी सच्चाई की तलाश मै कई दिनों कर रहा हूँ,अपने शुभचिंतको के बीच राजनीतिक रोटियां का लंच पैकेट बाँटते लोगों को फोटोग्राफी करवाते देखा, साहब की नजदीकी पाने की लालसा वश साहब के सहयोग मे लंच पैकेट इकट्ठा कर सेल्फी करते देखा, और तो और एक ऐसा बेसहारा का नजारा भी देखा, जो कि लाकडाउन मे दो रोटी के बिना भी भूखे पेट राह पर चलते देखा, पर कही नही इनके खातिर समाज सेवी देखा। आपका दर्द भर चिंतन किसी मुंशी प्रेम चन्द से कम नही ।आपका हार्दिक अभिनंदन, मेरे पास शब्द अब नही मिल पा रहा, जो कि आपका आभार कर सकू।वैसे नामी गिरामी पत्रकारों को सक्षम अधिकारी के साथ बैठकी की फोटोग्राफी भी देखा, लेकिन अफसोस ,कि उनको समाज की ऐसी दशा पर आप जैसा ऐसा कुछ लिखते नही देखा।
ReplyDeleteआपका लघु भ्राता---सत्य देव प्रसाद द्विवेदी ,दैनिक भास्कर हलिया।
भैया जी , निश्चित रूप से समाज में गरीबों , वंचितों का मजाक उड़ाना सर्वथा अनुचित है।
ReplyDeleteचंद्रांशु गोयल,अध्यक्ष होटल एवं लॉज एसोसिएशन
आज शायद यहीं मानवता मानवता की परिभाषा बन चुका है बड़ेभाई,आपकी यह लेखनी निश्चित ही समाज के दान दाताओं के लिए एक सबक है।
ReplyDeleteआपका अत्यंत आभार, राजू भाई
Deleteकटु सत्य है, शशि भईया शब्दो का अभाव है छोटे भाई के पास क्या लिखूं 🙏
ReplyDelete- राजीव शुक्ला।
अति सुंदर, मार्मिक दिल को छू जाने वाला विचार।
ReplyDeleteवास्तव में आज समाज में जिस तरह से लोग एक दूसरे की मदद और परोपकार का काम "छपास रोग" से पीड़ित होकर कर रहे हैं, वह नि:संदेह परोपकार का कार्य नहीं कहा जा सकता है।
यह स्वार्थ का कार्य कहा जाएगा जो उपयुक्त है, क्योंकि यह अपने परोपकार भरे कार्यों को समाज में दिखाना चाहते हैं। फिर ऐसे परोपकारी कार्यों का क्या औचित्य बनता है? विचारणीय है।
निसंदेह आपके इस लेख और वीडियो से समाज के ऐसे लोगों को सीख लेनी चाहिए
जो 100 ग्राम का सहयोग कर 20 मीडिया ग्रुपों में फोटो वायरल करते हैं।
संतोष देव गिरि
(स्वतंत्र लेखक/पत्रकार)
ऐसी संकट की घडी में अति आवश्यक है साधनहीनों के बारे में सोचना ! पर साथ ही जितना बन सके खुद भी सहायता का हाथ बढ़ाना जरुरी है, बिना किसी को दोष दिए या आकांक्षा किए !
ReplyDeleteजी बिल्कुल, बिना किसी प्रचार के चुपचाप, जैसा कि कादर खान कह रहे हैं।
Delete
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार(०९-०४-२०२०) को 'क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?'( चर्चा अंक-३६६६) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
आपका अत्यंत आभार।
Deleteबहुत सामयिक और पते की बात कही है आपने।
ReplyDelete--
"यह विचित्र रंगमंच है। जिसका रचयिता ही क्षीरसागर में रहता हो उसे क्या पता कि उसकी अनेक संतानें क्षीर बिन छटपटा रही हैं। और उसका दुग्धाभिषेक हो रहा है।"
आपका अत्यंत आभार।
ReplyDeleteआपका कथन सर्वदा ही सत्य रहा है।ईस्वर भी लगता है अभी मनुष्य की परीक्षा ले रहा है।इंसान के इन्शानियत भूल जाने का दंड सीखा रहा है शायद।उनका क्या होगा जो ईश्वर के इस ईशारे को शायद अभी भी नही समझ पा रहे है।समाज के कल्याण में ही अपना कल्याण है न जाने कब समझेंगे सारे।
ReplyDeleteहे ईश्वर सबका कल्याण करे।यही प्रार्थना कर सकता हु अभी तो।🙏
बिल्कुल सही कहा आपने मनीष जी, परंतु समझना तो होगा ही , प्रतिक्रिया के लिए आभार।
Deleteभोजन बाटते हुए तस्वीर न लें!हम निमित्त मात्र हैं,अन्नदाता नही हालात गम्भीर हैं स्थिति आपातकाल हैं,लोग भूखे हो सकते हैं लाचार नही एहसान नही एहसास दे अपने होने का।
ReplyDeleteयही सच्ची इंसानियत हैं।
💥💥✒️राज मंगल तिवारी
एक -एट बात सोलह आने सच है आपकी शशि भाई ।मेरी भी कोशिश है कि कम से कम , किसी एक -दो ही सही जरूरतमंद की मदद कर सकूँ ।
ReplyDeleteजी आभार शुभा दी।
Deleteबहुत शानदार बड़े भाई समाज को आइना दिखाता है आपका पोस्ट।
ReplyDelete����������������
एक है दान करना, दूसरा है पुण्य करना। दान से भी पुण्य का ज्यादा महत्त्व है। पुण्य कर्म निस्वार्थ सेवाभाव का कर्म है। पुण्य कर्म दिखावा नहीं होता है लेकिन दिल से होता है। दान दिखावा भी होता है, दिल से भी होता है। पुण्य कर्म अर्थात् आवश्यकता के समय किसी आत्मा के सहयोगी बनना अर्थात् काम में आना।
आपका अत्यंत आभार अजीत जी।
Deleteबहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति शशि भाई।
ReplyDeleteजी आपका अत्यंत आभार दी।
Deleteशशि भाई सरकार द्वारा प्रेरित कथित प्रकाश पर्व पर आपने समाज हित में जो चिंता जाहिर की है वह बहुत सही है | पर मैं एक दीपक को भले उसमें दिखावा शामिल है - बुरा नहीं मानती हाँ ज्यादा पाखंड के मैं भी खिलाफ हूँ | दीपक हमारे जीवन का एक प्रेरक संस्कार है | आज लॉकडाउन के रूप में जड़ता झेल रहे समाज में थोड़ी चेतना भरने के लिए इसका आह्वान किया गया था पर लोगों ने सीमायें लांघकर पटाखे भी फोड़े जिसका मैं समर्थन नहीं करती | महामारी का दंश झेल रहे समाज के लिए ये न्यायोचित नहीं | समाज के शोषित वर्ग के लिए आपकी चिंता जायज है आप जनप्रतिनिधि जो ठहरे | उससे भी बढ़कर एक संवेदनशील इंसान | आप जैसे शुभचिंतकों के जरिये ये वर्ग जरुर लाभ पाता रहेगा यही आशा है |
ReplyDeleteजी रेणु दी,
Deleteक्या उचित और क्या अनुचित,इसके लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को सुनने का प्रयत्न हमें करना चाहिए।