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Saturday 4 April 2020

बुधुआ की हिमाक़त

   बुधुआ की हिमाक़त
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  सोशल डिस्टेंस.. सोशल डिस्टेंस..! भीड़ मत लगाओ ..कोई खाली हाथ नहीं लौटेगा..धैर्य रखो..!!
       नगर सेठ घोंटूमल के आते ही उसके सिपहसालारों ने राहत सामग्रियों से भरी गाड़ी के इर्द-गिर्द कोलाहल मचा रहे ग़रीब - ज़रूरतमंद लोगों को घुड़कते हुये क़तारों में व्यवस्थित करना शुरू कर दिया था। वहाँ पहले से ही खड़े फ़ोटोग्राफ़रों के कैमरे क्लिक -क्लिक की आवाज़ के साथ हरक़त में आ जाते हैं। वीडियोग्राफ़ी भी शुरू हो गयी थी।
   कोरोना के भय से लॉकडाउन के इस साँसत में भोजन के ये पैकेट इन दीनदुखियों के लिए किसी खजाने से कम नहीं थे । अतः बच्चे- बूढ़े सभी लंच पैकेट थामे घोंटूमल का जयगान करते हुये अपने ठिकाने की ओर बढ़ते जा रहे थे। सेठ की दानवीरता और इन ग़रीबों की दीनता के सजीव चित्रण के लिए छायाकारों ने अपनी ओर से कोई क़सर नहीं छोड़ रखी थी । उन्हें पक्का विश्वास था कि ऐसे चित्रों को देख कंजूस सेठ इस बार उनके तय पारिश्रमिक में किसी प्रकार की कटौती नहीं करेगा, क्योंकि सोशल मीडिया पर इनके माध्यम से उसके कार्यों की सराहना तो होगी ही, अख़बारों में भी सेठ की मानवीयता का गुणगान होना तय है । ऐसे संकटकाल में शहर में प्रतिदिन एक हजार लंच पैकेट वितरित  करवाने की ज़िम्मेदारी घोंटूमल ने आलाअफ़सरों संग हुए वार्तालाप में स्वयं पर ले ली थी। 
   कहा तो यह भी जा रहा है कि देश पर आये संकट में सेठ की इस राष्ट्रभक्ति को देख कलेक्टर साहब बहुत प्रभावित हैं। सो, लॉकडाउन समाप्त होने के पश्चात सेठ के नागरिक अभिनंदन में उनकी भी उपस्थिति रहेगी । 
     उधर, भीड़ से कुछ दूर खड़े बुधुआ की चौकन्नी आँखें सेठ की हर गतिविधियों पर टिकी हुई थीं। वह देख रहा था कि रंग बदलने की कला में पीएचडी कर रखा घोंटूमल किस तरह से इंसानियत का हवाला देकर जनसेवक बना हुआ था। वह परोपकार की बातें तो ऐसी कर रहा था कि मानों उससे बड़ा धर्मात्मा इस धरती पर दूसरा कोई नहीं हो । उसके प्रशस्तिगान करने वालों की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही थी। 
    यह सब नौटंकी देख बुधुआ का श्वास घुट रहा था। और अधिक देर तक यहाँ खड़ा होना उसके लिए असहनीय था। इस समाजसेवा के पीछे घोंटूमल की क्या मंशा है , भला उससे छिपी भी कैसे रह सकती थी। कभी वह भी उसका वफ़ादार कारिंदा जो था । ऐसे परोपकारी सेठ की सेवा में होने का उसे बड़ा गुमान था। 
    लेकिन उस दिन अख़बारों में अपने सेठ के छपे फ़ोटो को देख उसपर ऐसा वज्रपात हुआ कि उसने दुबारा कभी उसके बंगले की ओर रुख़ नहीं किया। घटना नोटबंदी के बाद की रही। जब दिल्ली के एक आलीशान होटल से घोंटूमल अपने अन्य सात साथियों के साथ पकड़ा गया था। साथ ही कई बक्सों में भरे पाँच सौ के वे नोट मिले थे, जो प्रतिबंधित थे। पकड़ा गया यह रैकेट इन्हीं नोटों को पड़ोसी देश नेपाल में भेज इनके आधे मूल्य पर अदला -बदली करता था। नोटों के ढेर के मध्य घुटनों के बल बैठे मुँह छुपाते अपने सेठ को देख लज्जा से उसका सिर झुक गया था। भारतीय मुद्रा के साथ हेराफेरी यह राष्ट्रद्रोह का मामला था। घोंटूमल और उसके साथियों को महीनों बाद जमानत मिली थी। तभी से वह अपने कालिख पुते चेहरे को पुनः चमकाने का अवसर ढ़ूंढ रहा था। 
   लेकिन ,आज वहीं देशद्रोही सेठ घोंटूमल हर किसी की दृष्टि में शहर का सबसे बड़ा समाजसेवी बना हुआ है। कोरोना जैसे वैश्विक महामारी में शासन-प्रशासन का सहयोग करने के लिए उसकी राष्ट्रभक्ति की सराहना चहुँओर हो रही है। उसे इस संकटकाल में इस शहर का भामाशाह बताया जा रहा है। जबकि उसने कई बैंकों का करोड़ों रूपया दबा रखा है। उसकी योजना सफल हो रही थी । आगामी इलेक्शन में उसे किसी प्रमुख राजनैतिक दल से टिकट मिलना तय है। यह कोरोना और लॉकडाउन उसके लिए वरदान से कम नहीं है। 
  हाँ, अब वह राष्ट्रद्रोही नहीं राष्ट्रभक्त कहा जाएगा। इस शहर का माननीय कहलाएगा । यहसब देख बुधुआ को लगता है कि उसके कलेजे में किसी ने भाला भोंक दिया हो। कैसे करे वह इस तथाकथित राष्ट्रभक्त को बेनक़ाब। बिल्कुल निस्सहाय सा वह अब भी वहाँ बेबस खड़ा था। 
  कैसे समझाए इस भीड़ को कि वह तो सिर्फ़ नाम से बुद्धु है , परंतु उनसब की बुद्धि क्यों मारी गयी है कि देशद्रोही और देशभक्त में फ़र्क तक नहीं समझ पा रहे हैंं।
    तभी सेठ की निगाहें उससे टकराती हैं। घोंटूमल वहीं से आवाज़ लगाता है- " अरे ! बुधुआ दूर क्यों खड़ा है। तू भी लेते जा दो पैकेट। "
  उसने देखा कि पीछे से भी कोई कह रहा था "-- बड़े भाग्यवान हो भाई , इस भीड़ में भी यह धर्मात्मा सेठ तुम्हें नाम लेकर पुकार रहा है। "
   यह देख बुधुआ उसका पोल खोलने की चाह में अपना होश खो बैठता है। परिणाम उसकी आँखों में भय की परछाई डोल रही थी । वह बेतहाशा भागे जा रहा था और भीड़ मारो-मारो इस झुठ्ठे को, कह पीछा किये हुये थी। 
  एक राष्ट्रभक्त को देशद्रोही कहने की हिमाक़त जो उसने की थी। 

     -व्याकुल पथिक