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Tuesday 3 April 2018

व्याकुल पथिक

व्याकुल पथिक 3/4/18


पत्रकारिता में यदि मैं झोलाछाप  डाक्टर होकर भी आप पाठकों का स्नेह पा सकता हूं तो चिकित्सा जगत में भी ऐसे कर्मठ झोलाछाप डाक्टरों का मेरे नजरिये से गरीब वर्ग के लिये अपना अलग महत्व तो है ही।  मेरा मतलब है कि जो असली डिग्री धारी डाक्टर हैं, वे ही कहां कलयुग के भगवान रहे हैं अब। मरीज के आते ही महंगी दवा और जांच जब बाहर  से सरकारी डाक्टर लिख रहे हो, तो फिर प्राइवेट नर्सिंग होम और क्लीनिक खोल रखे डाक्टरों की तो पूछे ही मत,  फिर गरीब किसके पास जाए। हां ,झोलाछाप डाक्टरों को लोभ में आकर अपनी सीमा रेखा का उलंघन नहीं करना चाहिए। मुझे ही लें पत्रकारिता के लिये कोई खास अंग्रेजी नहीं आती, संस्कृत और उर्दू भी ज्ञान नहीं है। पर सरल हिन्दी भाषा में तो जनता के हितों की बात कर ही सकता हूं। बस काम और मिशन के प्रति ईमानदारी होनी चाहिए।  और एक बात जो मुझे समझ में आयी, वह यह है कि यह जो बुद्धिजीवी तबका है न , वह अपने हितों के लिये कुछ भी कर सकता है। चाहे समाज पर उसका प्रतिकूल प्रभाव क्यों न पड़े। आज पत्रकारिता के क्षेत्र में भी यही तो हो रहा है। वरिष्ठ कहलाने वाले तमाम पत्रकार अपने और अपने संस्थान के हित में अपने कलम को तोड़ मरोड़ ले रहे हैं। अखबारों का राजनीतिकरण भी हो गया है।  अब जनता के हितों के संरक्षण के लिये कलम कहां चल रही हैं।  हां अखबार के व्यवसायिक हितों को ध्यान में  रख कलम खूब चल रही है। मैंने ऐसा नहीं किया, भले ही सारे सम्बंधों कि बलि इस रंगमंच पर चढ़ा चुका हूं। यह इस त्यग का ही परिणाम है कि पत्रकारिता जगत में झोलाछाप हो कर भी इस रंगमंच पर अब  भी डट चमक रहा हूं।
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हमार नैतिक दायित्व ...

       क्या अब भी हम आप कोई सबक नहीं लेंगें। कुछ तो नैतिक दायित्व हमारा भी बनता है। समाज के प्रति और अपने गांव, शहर और देश के प्रति। हमारी आपकी जरा सी इसी गलती से ही एक हंसती खिलखिलाती बच्ची को इस तरह से  निर्मम मौत मिला है। जिसके लिये उस बोरवेल को खुला छोड़ने वाला शख्स ही नहीं हम सभी जागरूक वर्ग के लोग भी जिम्मेदार है। क्या गांव के लोग , प्रधान और  अन्य पहरुये इसकी शिकायत समय रहते नहीं कर सकते थें। और हम मीडिया वाले भी किसी हादसे के बाद ऐसे स्थानों पर अपने मतलब की खबर के तलाश में ही धमकते हैं। जबकि अखबार में हो या फिर इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के स्क्रीन पर कम से कम ऐसी जनसमस्याओं को तो प्रमुखता से उठाते ही रहना चाहिए।  कहां जर्जर तार लटक रहा है। आटो रिक्शे पर दर्जन भर से अधिक सवारी क्यों बैठे हैं। कहां गड्ढा खोद कर छोड़ दिया गया है। सरकारी बसें यात्रियों को समय से मिल रहे हैं कि नहीं।  आपूर्ति विभाग, सरकारी अस्पताल, समाज कल्याण विभाग से लेकर किसानों की समस्याओं पर अब  कितने कालम की खबरें लिखी जाती हैं, जरा पन्ना उलट कर बतायें। और जब लिखी भी जाती हैं तो यह जुगाड़ लगाया जाता है कि सम्बंधित विभागीय अधिकारी रिपोर्टर के प्रभाव में आ जाये और साहब फिर तो घोड़ा घास की आपस में दोस्ती हो जाती है।(शशि)

क्रमशः