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Tuesday 3 July 2018

"पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर




 

     इन दिनों मैं फिर से और ठीक से जीवन जीने की  कला सीख रहा हूं। वैसे, तो वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करने की कोई अधिक तैयारी मुझे नहीं करनी है, क्यों कि पहले से ही घर-परिवार से बहुत दूर खूबसूरत मुसाफिरखाने में जो सुकून से रहता हूं। रोटी, कपड़ा और मकान की चिन्ता नहीं है। परंतु पिछले माह से मेरे जीवन में एक बड़ा परिवर्तन यह आया है कि मेरे पास रचनात्मक कार्य करने को पर्याप्त समय है।  सो, लगातार ज्वर की पीड़ा सहने के बावजूद मैं अपनी मुस्कान को आमजन को समर्पित करना चाहता हूं। अपनी कलम से खुलकर उनका समर्थन करना चाहता हूं । उनके दर्द को अपनी पीड़ा समझना चाहता हूं। वैसे, तो मैं कोई ढ़ाई दशक से जनसमस्याओं को ही अपने समाचार पत्र में उठाता आ रहा हूं। पर अब उनके और करीब आना चाहता हूं।
  एक खूबसूरत गीत की यह पंक्ति

"किसी का दर्द मिल सके ले तो उधार "

    इस बंजारे राही से बहुत कुछ कहना चाहती है। यह तभी सम्भव है जब मैं बचपन वाली अपनी मुस्कान को फिर से हासिल कर लूं। ताकि यह पथिक अपनी व्याकुलता से ऊपर उठ सके। अकेलेपन से एकांत की इस यात्रा में मेरे वानप्रस्थ जीवन में फिर किसी के प्रति कोई मोह न हो, यह सुनिश्चित कर रहा हूं । मेरे लोभ मुक्त जीवन का सबसे बड़ा राज क्या है, जानते हैं आप ? बस इतना ही मैं सदैव यह याद रखता हूं कि जब वर्ष 1994 में वाराणसी स्थित अपने घर से निकाल था, तो तन पर कपड़े के सिवाय कुछ भी नहीं लेकर आया था। वहां अटैची और अलमारी में पड़े तमाम समानों में कीड़े लग गये होंगे ही। मेरा छोटा सा कमर मेरी अब भी प्रतीक्षा कर रहा होगा और यदि दादा के मकान में मैंने अपना अधिकार मांगा होता, तो शहर में तीन मंजिला मकान मायने रखता है। जरा सोचे जब मैंने इन सब का त्याग कर दिया तो फिर इस छोटे से मीरजापुर नगर में उस लक्ष्मी के पीछे क्यों भागना , जिसके कारण ही गृहलक्ष्मी नहीं मिली हो मुझे । हां, दूसरों में खुशियां अवश्य बांट सकता हूं, वह भी बिल्कुल मुफ्त में। अपने लम्बे संघर्ष को सार्थक मोड़ देकर  अपनी लेखनी के माध्यम से मित्र- बंधुओं और आमजन का मनोबल निश्चित ही बढ़ा सकता हूंं मैं, क्यों कि इन सब नेक कार्यों के लिये मेरे पास प्राप्त समय है। और मेरा सामाजिक दायरा भी पत्रकार होने के कारण कुछ अधिक बड़ा ही है।मेरे प्रति यहां के तमाम लोगोंं में यह विश्वास है कि मैं सत्य की राह पर हूं। इन सभी ने मेरे लम्बे संघर्ष और प्रलोभन मुक्त जीवनशैली को
करीब से देखा है। फिर भी वर्षों बाद मिले इस खाली समय को मैं विवाह- बारात , मेला और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के कार्यक्रम में शामिल हो गया अपना समय बिल्कुल भी नष्ट नहीं करना चाहता हूं। आज ही रात एक क्लब के द्वारा बड़ा आयोजन है। भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह उसमें मुख्य अतिथि हैं , स्नेही जनों का अनुरोध था कि अब जब सायं मेरा अखबार नहीं आ रहा है, तो मैं भी इस कार्यक्रम में आऊं। पर मैं अपने एकांत को अनावश्यक भंग नहीं कर सकता, अतः ब्लॉग लेखन में जुटा हूं। कल 4 जुलाई को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की महत्वपूर्ण बैठक है। समाचार संकलन के लिये हम पत्रकार  दिनभर वहां विंध्याचल क्षेत्र में ही रहेंगे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदि बड़े नेता आ रहे हैं। वैसे तो साहित्यप्रेमी कहलाने के लिये अलंकारों से सजे बोझिल पुस्तकों को पढ़ने में भी मेरी कोई रुचि नहीं है, न ही धार्मिक ग्रंथों में। हां, रेणु दी की सजीव कहानियां मुझे जरुर पसंद और और ब्लॉग पर कुछ अन्य वरिष्ठ सदस्यों की भावनाओं से भरी कविताएं  मेरे व्यथित मन को शांति प्रदान करती हैं। पर जीवन की इस नयी पाली में मेरी जो बड़ी परीक्षा है वह यह कि मुस्कुराते हुये औरों के व्यथित हृदय को सांत्वना देना अपनी लेखनी, अपने कर्म और पथ के माध्यम से...
गोपालदास" नीरज" की कविता की यह सुंदर पंक्ति देखें-

" पंथ पर चलना तुझे तो मुस्कुराकर चल मुसाफिर"
शशि