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Friday 11 May 2018

हमारी मुस्कान हमारी पहचान

व्याकुल पथिक

             हमारी मुस्कान हमारी पहचान
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         हर इंसान अपने में एक अलग कहानी है, बिल्कुल सच्ची कहानी है  !  जो हमारे लिये आत्मकथा है, वह औरों के लिये कहानी है। आत्मकथा लेखन हमारे अतीत की न सिर्फ खट्टी मीठी यादों से हमें सराबोर करता है, वरन् हमें आत्मावलोकन का भी भरपूर अवसर देती है। वह एक ऐसे पड़ाव पर हमें ला खड़ा करता है, जहां हम अपने कर्मपथ की दुर्गम राह आसान कर सकते हैं । भूतकाल की गलतियों का भान होने पर हम स्वयं में सुधार लाने के साथ ही दूसरों का मार्गदर्शन भी कर सकते हैं।  पत्रकारिता को लेकर इसीलिए बहुत कुछ मैंने पूर्व में लिखा भी था, क्यो कि ढ़ाई दशक से वहीं तो मेरा सबकुछ है...न बंधु ,न परिवार, न घर, न स्वास्थ्य और ना ही धन ...
       सब-कुछ घर पर छोड़ कर बनारस से 25 वर्ष पूर्व निकला था, तो यहां मीरजापुर में दो चीजें लेकर आया था। एक स्वस्थ तन और दूसरा चेहरे पर मुस्कान। अच्छे स्वास्थ्य ने मुझे पैदल ही मीरजापुर की सड़कों पर, गलियों में भटकने के लिये प्रर्याप्त उर्जा दिया, पर सदैव मुस्कुराते रहने की मेरी आदत ने यहां के लोगों के करीब मुझे लाया। यदि चेहरे पर हमारे मुस्कान है, तो निश्चित ही हमारी वाणी भी मधुर होगी , इसमें संदेह नहीं है। और सारे संबंधों का मूल यह वाणी ही तो है ! इसके अतिरिक्त कर्मपथ पर बढ़ने के लिये दो और गुण हमारे पास होने चाहिए,  सच्चाई और ईमानदारी। असत्य का मायाजाल स्वयं हमकों ही व्याकुल करता रहेगा। इससे एक अज्ञात भय बना रहता है। हम सभी ऐसे दौर से कभी ना कभी गुजरते हैं, परंतु इस झूठ के आवरण का जितना शीघ्र हो सके, त्याग कर देना चाहिए, अन्यथा हमारी मुस्कान हमसे छीन जाएगी। मैं ऐसे सारे अवसाद भरे दौर से गुजर चुका हूं। इसीलिये यह पैगाम बांट रहा हूं कि औरों के सामने मुस्कुराते रहिये ! अनाड़ी पिक्चर का मुकेश साहब का वो गीत याद है न -
   किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, किसी के वास्ते हो तेरे दिल में...

    यदि हम दर्द में हैं , तो भी हमें जोकर फिल्म में रंगमंच पर राजकपूर के विदूषक के अभिनय को देख मुस्कुराते रहना सीखना होगा। जीवन के इस रंगमंच पर मैंने भी इस महान विदूषक(जोकर) से बड़ी सीख ली है। हम सभी जानते है कि हमारा दर्द कोई नहीं बांटेगा। फिर क्यों न उसे अपना साथी बना  मुस्कुराते रहें। मुस्कान सच्ची हो, बनावटी हो, थकान भरी हो, दर्द भरी हो ... यह सामने वाले को पता नहीं लगे, यही तो एक अच्छे विदूषक का कर्म है ! वर्ष 1998 में मलेरिया का गलत उपचार होने से अपना स्वस्थ शरीर ही नहीं कई अपनों को भी खोने के बाद आज भी उसी तरह मैं मुस्कुराते आपकों मिलूंगा , जीवन के सफर में यही मेरी पहचान है !

(शशि)12/5/18