मन के भाव
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प्यार पंछी से जता के
शिकार इंसान का करते हैं।
दौर ये कैसा देखो यारो
जहाँ सैयाद मसीहा होते हैं !
आग घरों में लगा के
जो चैन की नींद सोते हैं।
गज़ब सियासत देखो यारो
वे रहनुमा हमारे होते है !
शहतीर पलकों से उठा के
सुई विषभरी चुभोते हैं ।
इंद्रजाल ये कैसा देखो यारो
हम यहीं मुतमईन होते हैं !
दुनिया को बहका के जो
खुद मालामाल होते हैं ।
जमाना ये कैसा देखो यारो
वे ही पीर-फ़क़ीर होते हैं !
हंगामा खड़ा करके जो
फ़िर पर्दे में मुसकुराते हैं।
खेल कलयुग का देखो यारो
वे सच्चे साहित्यकार होते हैं !
पहचान पथिक इन्हें तनिक ,
भरोसा इनपे नहीं करते हैं ।
अनजान दर्द से आँखों के
पर क़लम के महान होते हैं !
- व्याकुल पथिक