Followers

Monday 9 December 2019

माँ तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में

रिश्ते न संभाल पाया जीवन के

माँ , तुझे ढ़ूंढता रहा अपनों में


बीता बसंत एक और जग में

जो पाया सो खोया मग में ?


माँ, स्नेह फिर से न मुहँ खोले

अरमान सभी कुचल दे उर के


दिल झर झर न बरसे सावन में

मुक्ति दे चिर विधुर जीवन से।


दिये असीम प्यार उपहार तुमने

बस एक और वरदान मुझे दे ।


बन गगन का टिमटिमाता दीपक

वह दुलार तेरा फिर से पाऊँ माँ !


तुझ जैसे कुछ लोग मिले जब

पवित्र स्नेह था उनके हिय में ।


अपराधी हूँ मैं उनका भी अब

यह तिरस्कृत जीवन हर ले माँ !


माँ , क्षमादान दिलवाना उनसे

बस इतना कहलाना इनसे ।


दुख जीवन में अनेक उठाये

माँ के प्यारे तुम सो जाओ ।


माँ , अब ना धैर्य बंधाना मुझको

मंजिल नयी न दिखाना मुझको।


करता विलाप विकल मन मेरा

प्यार से तू ही मुनिया कह दे ।


माँ , देखो आज जन्मदिन मेरा

क्यों रुलाता व्यर्थ ये सबेरा ?


तुझ बिन कौन मनाये इसको

सूना पड़ा यह दिल का बसेरा।


अस्थि- पंजर से लिपट कर माँ

कब तब तड़पू आहें भर- भर !


न मिला हँसने का अधिकार मुझे

बना पाप- अपराध जीवन भर ।


माँ ,ये हृदय मधु-कोष जो मेरा

विषधर-सा क्यों लगता सबकों ?


लुटा कर सर्वस्व जीवन अपना

न दे सका अमृत बूंद किसी को !


ना कुर्ता न पैजामा है माँ

बाबा ने ना कुछ भेजा है माँ ।


हाड़ी दादू केक न लाते

लिलुआ से बड़ी माँ न आती।


माँ , मौसी भी दूर हुई जबसे

बिखर गयी खुशियाँ जीवन से


अँखियों में अंधियारा छाया

लेखनी थम गयी जीवन की ।


पत्थर के दिल मोम न होंगे

हँसते हैं ये सब जग वाले ।


अब तो आ के गले लगा ले

देश पराया और लोग बेगाने ।


    -व्याकुल पथिक
    28 जुलाई 2019

( जीवन की पाठशाला )