हम समानता की बात करते हैं, इसके लिये लड़ते-झगड़ते हैं । लेकिन, मुझे एक बात समझ में नहीं आती है कि फिर मानव द्वारा निर्मित ईश्वर के दरबार में अमीर-गरीब, खास और आम भक्त को लेकर अमूमन यह भेदभाव क्यों होता है। गोविंद और गुरु के उपासना स्थलों पर जाने से यदि हमारे जैसे आम आदमी को दोयम दर्जे का भक्त (दर्शनार्थी) कहलाने का दंश सहना पड़े। और यहां माता के दरबार में वीआईपी दर्शनार्थी हमें यह कह मुंह चिढ़ाते दिखें कि देखों पगले तुम घंटे भर से नंगे पांव तपती भूमि पर खड़े हो । आसमान अंगारा उगल रहा है, फिर भी धीर- वीर बने अपनी आस्था की परीक्षा दे रहे हों । वहीं देखों न हम वीआईपी भक्तों की किस्मत, वातानुकूलित लग्ज़री वाहन से यहां आते हैं और तुम आम भक्तों को दूर ही रोक प्रशासन, पुलिस के और पुजारी के सहयोग से हम खास भक्तों को चटपट सीधे गर्भगृह में इंट्री( प्रवेश) मिल जाती है। तुम हो कि बेचारा बने हमें मंदिर परिसर में टुकुर- टुकुर ताकते रहते हो। वैसे , वीआईपी भक्तों से भी ऊपर वी वीआईपी दर्शनार्थी भी होते हैं। जैसे ,राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, सत्ता पक्ष के शीर्ष नेता , बड़े उद्योगपति, बड़े सिने स्टार , जब वे आते हैं तो उनकी सुरक्षा और व्यवस्था का हवाला देकर पूरा मंदिर परिसर ही खाली करवा लिया जाता है। वह भी उनके आगमन के काफी पहले से।
मैं अपने जनपद के प्रसिद्ध सिद्धपीठ विंध्यवासिनी धाम में वर्षों से कुछ ऐसी ही व्यवस्था दर्शन- पूजन को देख रहा हूं। आम दर्शनार्थी यहां अकसर ही दुर्व्यवहार के शिकार होते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, दक्षिण भारत और भी देश के विभिन्न प्रांतों से ये गरीब देवी भक्त यहां शक्तिपीठ पर तमाम आर्थिक, शारीरिक कठिनाइयों को सहते हुये आते हैं, किंतु उन्हें उनकी आस्था की परीक्षा के दौरान जब दोयम दर्ज का भक्त यहां ठहरा दिया जाता है तो असहनीय वेदना पहुंचती है।
विगत चार जुलाई को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह एवं अपने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को विंध्यवासिनी धाम में दर्शन पूजन करना था। सो, अति विशिष्ट दर्शनार्थी होने के कारण उनकी सुरक्षा व्यवस्था के लिहाजा से मंदिर परिसर खाली करवाना लाजिमी भी है। इन्होंने दर्शन- पूजन दोपहर पौने दो बजे के आसपास किया । परंतु सुरक्षा व्यवस्था का हवाला दे प्रातः दस बजे से ही मंदिर जाने का मार्ग तक खाली करवा लिया गया। यह कैसा अन्याय है आम भक्तों के साथ। खैर विंध्य पंडा समाज के अध्यक्ष राजन पाठक ने जब देखा कि इन विशिष्ट जनों को दर्शनार्थ आने में विलंब है , वहीं हजारों आम देवी भक्त मार्ग रोके जाने से इस उमस भरे मौसम में बिलबिला रहे हैं। तो उन्होंने आलाअफसरों की सम्वेदनाओं को झकझोरा, तब जाकर दोपहर पौने बारह बजे मंदिर से दूर खड़े इन दर्शनार्थियों को गर्भगृह में प्रवेश का अवसर मिला।
यदि मैं अपनी बात कहूं तो इसी विशिष्ट दर्शनार्थी व्यवस्था के कारण जब कभी भी समाचार संकलन के लिये महामाया के दरबार में जाता हूं, तो गर्भगृह में जाने की जगह इच्छा हुई तो माता जी का झांकी से दर्शन कर लेता हूं। यह आम और खास दर्शन व्यवस्था के विरुद्ध मेरी अपनी भावना है कि लम्बी कतार में खड़े आम भक्त की आस्था को पत्रकार होने के नाते वीआईपी दर्शन का लाभ लेकर कुचलने का कार्य मैं कदापि नहीं करूंगा। नहीं तो पंडा समाज के वरिष्ठ पदाधिकारी और पुलिस अधिकारी सभी मेरे पहचान वाले हैं। सो, उनके स्नेह के कारण मैं भी चाहूं, तो व्यवस्था भंग कर इस वीआईपी दर्शन सुविधा का लाभ निश्चित ही ले सकता हूं।
लेकिन, महामाया के दरबार में दर्प से भरा मानव यदि अपनी माया (धन, प्रभाव एवं जुगाड़) का चमत्कार दिखलाएं, तो उससे बड़ा नादान कौन है। यदि इतनी ही आसानी से सुलभ दर्शन देने की मंशा होती तो फिर पहाड़ों की चोटियों पर धर्मस्थल- उपासना स्थल क्यों स्थापित करते हमारे पूर्वज! जरा विचार करें इसपर भी । मैं तो सदैव स्वयं अपने को आम आदमी के आसपास रखने का प्रयत्न करता हूं और हर वीआईपी व्यवस्था का प्रतीक विरोध अपने तरीके से करता रहता हूं। वह भोजन हो, रहन- सहन हो या फिर दर्शन ही क्यों न हो।
शशि
जी शशि जी, आपके बाज़िब सवालों की बौछार ने झकझोर दिया। बहुत सटीक आकलन है। पर इतना तो तय है न प्रभु की भक्ति या कृपा धन के बल पर खरीदी नहीं जा सकती।
ReplyDeleteमाना इन मंदिरों से हमारी आस्था हमारा अस्तित्व जुड़ा है पर हम तो मानते है सर्वव्यापी असीम कृपावान भगवान मंदिरों में नहीं हैं। धन के बल पर कृपा प्राप्त करना आस्था का झूठा ढकोसला के सिवा कुछ नहीं।
आपकी लेखनी सच में प्रभावशाली है।
बहुत सारी शुभकामनाएं मेरी कृपया स्वीकार करें।
जी धन्यवाद श्वेता जी, जो आपको मेरा यह सवाल पसंद आया, चूंकि मैं स्वयं को आम आदमी के करीब रखने का प्रयास करता हूं। इसलिए मैंने विंध्याचल देवी धाम में देखा कि गरीब श्रद्धालु घंटे डेढ़ घंटे तक भी किस तरह से लम्बी कतार में खड़े रहते हैं और जुगाड़ वाले खास भक्तों को किस तरह से आम भक्तों को ढेल कर वीआईपी दर्शन करवाया जाता है। कम से कम एक स्थान तो मानव निर्मित ऐसा हो जहां इंसानों में फर्क न हो, यदि यह उपासना स्थल भी धन, प्रभाव और जुगाड़ के हवाले रहा, तो फिर आम आदमी को निश्चित ही ठेस पहुंचता है। उसकी आस्था आहत होती है।
ReplyDeleteजहां तक मेरी लेखनी का सवाल है,तो मैं बहुत कम शिक्षा प्राप्त हूं। न ही किसी अच्छे लेखक को बहुत पढ़ा हूं और साहित्यिक भाषा का तो बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। फिर भी आप जैसी पहचान वाली लेखिका ने स्नेह दिया, तो यह मेरे लिये बड़ी बात है।
जी,आपकी विनम्रता है जो आप मुझे इतना मान दे रहे हैं।
Deleteमेरी पहचान कुछ नहीं है आप सबों का स्नेह है सब।
जी, शशि जी कम शिक्षित होने से या साहित्यिक भाषा का सीमित ज्ञान से आपके विचारों के संप्रेषण में कोई फर्क नहीं पड़ता है। आपकी सोच की उर्वरता की शिक्षा पर निर्भर नहीं।
आपकी विनम्रता को नमन।
सादर।
जी पुनः धन्यवाद इस उत्साहवर्धन के लिये
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